हनुमत कृपा
अनुभव
"साधक साधन साधिये"
"साधन"
अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए एक साधक को
जो साधना करनी होती है
उसे ही "साधन" कहते हैं !
गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी सत्यानन्द जी महराज ने लगभग ६५ वर्ष तक विभिन्न भारतीय धर्म-शास्त्रों का गहन अध्ययन और अनुसरण करने के उपरांत भी अपने "इष्ट" का दर्शन न कर पाने पर सन १९२५ में अपनी आंतरिक प्रेरणा से ,परम शांति एवं परमानंद की प्राप्ति के लिए हिमांचल के डलहौजी नामक स्थान के एकांतवास में कुछ काल तक अनवरत साधना की !
इस तपश्चर्या के फलस्वरूप उनके अंत:करण में "राम कृपा का अवतरण" हुआ!उनके सन्मुख एक ज्योति प्रगट हुई और एक दिव्य ध्वनि में "राम" शब्द निनादित हुआ! महाराज जी को "सर्वशक्तिमान परमात्मा" के "परम सत्य ज्योतिर्मय स्वरूप"का दर्शन हुआ और उन्होंने उस "परम अस्तित्व" के दिव्य "ब्रह्मनाद" के श्रवण का आनन्द भी लिया |
डलहौज़ी में वहाँ के जानकार महापुरुषों से हमने स्वयं सुना है क़ी उस "ब्रह्मनाद" एवं "दिव्य ज्योति" की स्वानुभूति से स्वामी जी महराज का अन्तरमन अखंडानंद से भर गया और वह महाप्रभु चैतन्य के समान आकाश क़ी ओर दोनों बांह उठाये मतवाली मीरा के समान नृत्य करने लगे ! यही नहीं उन्होंने वहीं पास में भौचक्के खड़े एक प्रत्यक्ष दर्शी को खींच कर अपने गले लगा लिया और बड़ी देर तक उसके साथ,हाथ में हाथ डाले कीर्तन गाते रहे और नृत्य करते रहे !
इस तपश्चर्या के फलस्वरूप उनके अंत:करण में "राम कृपा का अवतरण" हुआ!उनके सन्मुख एक ज्योति प्रगट हुई और एक दिव्य ध्वनि में "राम" शब्द निनादित हुआ! महाराज जी को "सर्वशक्तिमान परमात्मा" के "परम सत्य ज्योतिर्मय स्वरूप"का दर्शन हुआ और उन्होंने उस "परम अस्तित्व" के दिव्य "ब्रह्मनाद" के श्रवण का आनन्द भी लिया |
डलहौज़ी में वहाँ के जानकार महापुरुषों से हमने स्वयं सुना है क़ी उस "ब्रह्मनाद" एवं "दिव्य ज्योति" की स्वानुभूति से स्वामी जी महराज का अन्तरमन अखंडानंद से भर गया और वह महाप्रभु चैतन्य के समान आकाश क़ी ओर दोनों बांह उठाये मतवाली मीरा के समान नृत्य करने लगे ! यही नहीं उन्होंने वहीं पास में भौचक्के खड़े एक प्रत्यक्ष दर्शी को खींच कर अपने गले लगा लिया और बड़ी देर तक उसके साथ,हाथ में हाथ डाले कीर्तन गाते रहे और नृत्य करते रहे !
उस समय का हिन्दू समाज मत-मतान्तरों के विवादों एवं विभाजनकारी मतभेदों के जाल में बुरी तरह उलझा हुआ था ! "परम कृपा स्वरूप परमात्मा" के आदेशानुसार स्वामीजी ने उस "ब्रह्मनाद" से प्रेरित होकर बिखरते हुए भ्रमित जन मानस का मार्गदर्शन करने का बीड़ा उठा लिया ! महाराज जी ने तभी से जन जन को "राम नाम महामंत्र" का दान देने का संकल्प कर लिया !
साधकों को नाम दान देते समय आज भी गुरुजन ,स्वामी जी महराज द्वारा स्थापित परिपाटी का अनुसरण करते हुए,नये साधकों को साधना क़ी "वह विधि"-वह "साधन" सविस्तार बताते हैं जिसके द्वारा उनके हृदय में भी "राम कृपा-अवतरण " हो और अखंड आनन्द प्रवाहित हो |
इस विशिष्ट "साधन" पर और अधिक प्रकाश मैं अपनी क्षमता के अनुसार अगले संदेशों में डालूँगा ! अभी हमारी आज की राम राम स्वीकार करें ! कल फिर भेंट होगी ही !
निवेदक :- व्ही, एन, श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road, Brookline , (MA 02445,USA)
साधकों को नाम दान देते समय आज भी गुरुजन ,स्वामी जी महराज द्वारा स्थापित परिपाटी का अनुसरण करते हुए,नये साधकों को साधना क़ी "वह विधि"-वह "साधन" सविस्तार बताते हैं जिसके द्वारा उनके हृदय में भी "राम कृपा-अवतरण " हो और अखंड आनन्द प्रवाहित हो |
इस विशिष्ट "साधन" पर और अधिक प्रकाश मैं अपनी क्षमता के अनुसार अगले संदेशों में डालूँगा ! अभी हमारी आज की राम राम स्वीकार करें ! कल फिर भेंट होगी ही !
निवेदक :- व्ही, एन, श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road, Brookline , (MA 02445,USA)
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