हनुमत कृपा
अनुभव
"सूखे पेड़ की ड़ार डार है रस की भरी पिचकारी "
ग्रीष्म काल में भारत के और शीतकाल में अमरीका के पेड़ पौधे
पत्र पुष्प विहीन होकर एकदम सूखे से दिखते हैं ! लेकिन , इन व्रक्षों की, निर्जीव दिखने वालीं सूखी टहनियों में "आशामृत" बारहों महीने प्रवाहित होता रहता है !
इसी प्रकार ,हम प्राणियों के जीवन में आये निराशा के शुष्क क्षण केवल बाहर से ही सूखे दीखते है ! विश्वास करिये प्रियजन बड़ी से बड़ी निराशा की घड़ी में भी "आशा" की तीसरी सरस्वती धार हमारा साथ नहीं छोडती !खेद है क़ि साधारण प्राणी उस अदृश्य अम्रूत निर्झर को पहचान नहीं पाते !लेकिन आस्थावान पर
यथासमय भागवत कृपा होती ही है
"आस की दामिनी दमका देगी यही बदरिया कारी"
भैया के जीवन गगन पर घिरी
निराशा की काली घटाओं में आशा की दामिनी दमकी और धीरे धीरे भैया को समझ में आ गया क़ि उन्हें क्या करना चाहिए ! उन्होंने बाबूजी की कम्पनी में मेनेजेर का पद सम्हाल लिया ! प्रातः दस से सायं पाँच बजे तक काम करना था !दफ्तर घर के पास ही था ! काफी समय मिलता था ! अपने फिल्मी सपने साकार कर पाने की आशा में बड़े भैया ने play back singing की तैयारी में बाकायदा "केलकरजी से सुगम शाश्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी ! बड़े भायी के नेतृत्व में ह्म तीनो भाई बहनों का रियाज़ भी जोर शोर से चालू हो गया
बड़े भैया हर चार छे महीने मे फिल्मों में अपनी तकदीर आजमाने के लिए बंबई आतेजाते रहते थे जिसके कारण उनका रियाज़ तो बीच बीच में रुक जाता था लेकिन ह्म तीनो का रियाज़ चलता रहा !
प्रियजन बम्बई में भैया को मिली उस भयंकर निराशा के बाद
इस संगीत शिक्षा द्वारा ही हमारा मनोबल पुष्ट हुआ और सच तो यह है क़ि श्री महाबीर जी की कृपा से ही हमे संगीत की देवी माँ सरस्वती शारदा की असीम करूणा आजीवन प्राप्त होती रही !
ज्यों ज्यों आगे बढ़ेंगे देखेंगे क़ि कैसे कैसे सुफल मिले इस साधना से !
क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव :"भोला"
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