हनुमत कृपा
अनुभव
(गतांक से आगे)
"ॐ "
अपने युग के जाने माने महापुरुषों , महात्माओं एवं शोधकर्ताओं से हमने सुना है कि
हजारों वर्ष पूर्व जब विश्व पर पशुता का एकछत्र आधिपत्य था तब पर्वतों की कन्दराओं में लुकी छुपी ,विशिष्ट मानवता अपने पुरुषार्थ और तपोबल से निज संरक्षण हेतु मानव क्षमताओं के विकास एवं उत्थान के विविध उपाय खोज रही थी ! उस जमाने की प्रदूषण मुक्त "प्रकृति" की प्रयोगशाला में प्रभुप्रदत्त नैसर्गिक संसाधनों से अनुसन्धान कर के विश्व के इसी भूखंड (भारत)के ऋषि मुनियों ने जो सत्य उजागर किये वे आज हजारों वर्ष बाद भी पूर्णतः प्रासंगिक है !वैज्ञानिक दृष्टि से भी आज की परिस्थिति में वे सब उतने ही खरे उतर रहे हैं जितने तब थे !
हजारों वर्ष पहले अर्जित उस ज्ञान को आज का संसार "वेद, पुराण, उपनिषद ,भागवत, रामायण,आदि ग्रन्थों के नाम से जानता है ! ऐसे सद्ग्रंथों में सबसे पुरातन है "चार वेद" जो सबसे महत्वपूर्ण भी हैं ! कठिन साधना और अनवरत तपस्या के बाद महर्षियों और मुनियों की अलौकिक अनुभूतियों के फलस्वरूप उनके मुखारविंद से अकस्मात ही विभिन्न वैदिक ऋचाएं प्रस्फुटित हुईं थीं ! कहते हैं क़ी उस समय लिखा पढ़ी की सुविधा नहीं थी अस्तु श्रुति ,स्मृति ,उपनिषद एवं पौराणिक कथानकों के सहारे इस ज्ञान को आम जनता तक पहुंचाया गया !उन्होंने जो "अनहद नाद" सुना उसका प्रसाद इन सद्ग्रंथों के रूप में समस्त मानवता को दिया गया !
इक धुन सहज उपजती है जब साधक करते जाप
"अनहद नाद" कहाती है वह मन करती निष्पाप
अनहद से है "ॐ" उपजता और प्रगटता ज्ञान
वेद ऋचाएं सहसा पड़ती हैं साधक के कान
(जीव जब अपनी सभी वृत्तियों को वश में कर के हरि चिन्तन मे लग जाता है तब उसे शून्य से आता हुआ "अनहद नाद" सुनाई देता है ! इस "अनहद नाद" में "न केवल "ॐ" प्रगट होता है बल्कि उसके साथ साथ वैदिक ऋचाएं भी सुनायी देंतीं हैं )
" ॐ "
ॐ है जीवन हमारा ,ॐ प्राणाधार है !
ॐ है कर्ता विधाता ॐ पालनहार है !!
ॐ है दुःख-शोक नाशक ,ॐ परमानंद है !
ॐ है बल-बुद्धि धारी , ॐ करुनाकंद है!!
ॐ है गुरु मन्त्र जपने से रहेगा शुद्ध मन !
प्रखर होगी बुद्धि औ लग जायगी हरि से लगन!!
ॐ के जप से हमारा ज्ञान बढ़ता जायेगा !
अंत में यह ॐ हमको मुक्ति तक पहुंचाएगा!!
(एक पारम्परिक रचना)
प्रियजन ,हमारे गुरुदेव ने तो छूट दे दी है क़ि हम उस "परम"को "राम" नाम से भी पुकार सकते हैं ,आवश्यक नहीं क़ि हम उन्हें "ॐ" से ही संबोधित करें , महाराज जी ने कहा है :
सर्वाधार ओमकार जो निराकार बिन पार
उसे राम श्री राम कह नमूँ मैं बारम्बार
(स्वामी सत्यानन्द सरस्वती )
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क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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