शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ ५

हनुमत कृपा
अनुभव  
                                                 साधक साधन साधिये
                                   साधन - "नाम जपते रहो काम करते रहो" 

प्रियजन !संत रैदास जी की संतत्व प्राप्ति की "साधना" जिस एकमात्र सूत्र से बंधी थी वह था उनका "काम  करता रहूँ , नाम जपता रहूँ"  वाला सिद्ध यंत्र  ! इसके अतिरिक्त किसी और साधन का उपयोग उनके जीवन में कहीं दृष्टिगत नहीं होता ! वह प्रातः से रात्रि तक अपने ठीहे पर बैठे जूते सिलते गांठते ,फर्मे पर चढाते उतारते ,उनपर मोम और रंग का मिश्रण  घिसकर उन्हें चमकाते और काशी के अपने साधू साहूकार ग्राहकों को प्रसन्न कर के अपनी आजीविका कमाते थे ! बड़े से बड़े गंगा स्नान के पर्व पर भी वह गंगा स्नान करने नहीं जाते थे , काशी विश्वनाथ मंदिर के द्वार तक भी वह कभी नहीं गये ! हाथ में माला लिए जाप करते करते ग्राहकों से बात करते हुए अथवा आँख मूंदे ,योगासन में बैठ कर ध्यान लगाते हुए भी किसी ने उन्हें कभी नहीं देखा !और आप यह तो जानते ही होंगे कि उनके आसन तले गंगा मैया स्वयं प्रगट हुईं !

संत रैदास जी के द्वारा सिद्ध किया भगवत कृपा प्राप्ति का यह सरल साधन क्या ह्म नहीं अपना सकते ?

मेरे अतिशय प्रिय पाठक गण ,आज नए वर्ष -"२०११" का पहला दिन है ! चलिए आज के दिन ह्म एक संकल्प करें कि ह्म ,और कोई साधन न कर पायें तो ,कम से कम ,आज से ही रैदासजी का "काम करता रहूँ , नाम जपता रहूँ " वाला साधन करना तो शुरू ही कर दें ! हमे पूरा भरोसा है क़ि इस सरल-साधारण-साधन से प्रसन्न होकर ह्मारे प्रियतम प्रभु ह्म पर भी अपनी  कृपा दृष्टि अवश्य डालेंगे और हमारा भी कल्याण सुनिश्चित हो जायेगा ! 

So, once again, wishing  a VERY VERY HAPPY NEW YEAR to all of you and 
Praying that we are blessed with wisdom to "WORSHIP while WORKING" 

very sincerely ,
V. N. SHRIVASTAV "BHOLA" 
78, Clinton Road, Brookline. MA 02445 ,(USA)


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