गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 3 6

हनुमत कृपा
अनुभव 
(गतांक से आगे)                                  "ॐ"  

यह अनुमान लगाना असंभव है कि कितने हजार,लाख अथवा करोड़ वर्ष पूर्व इस सृष्टि (universe) का निर्माण हुआ ! लेकिन इसके तो प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध हैं कि हजारों वर्ष पूर्व भारत के ब्रह्मज्ञानी ऋषि मुनियों ने प्रकृति की प्रयोगशाला में उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करके ,अनेकानेक दिव्य अनुभव किये और अपनी अनुभूतियों के आधार पर उपलब्ध इस ज्ञान के  अपूर्व भंडार को  उन्होंने मानवता की जानकारी  और  उन्नयन के  के लिए  धरोहर के रूप में छोड़  दिया  .! 

अनुभूतियों के आधार पर उन दिव्यदृष्टा ऋषि -मुनियों ने बताया कि अदृश्य  विद्युत् अथवा ध्वनि तरंगों के अपने सूक्षतम  स्वरुप में आपस में एक दूसरे से टकराने से सृष्टि का  निर्माण हुआ ! इस टकराव से जो प्रचंड ऊर्जा प्रगट हुई उसके ताप को और जो मधुर ध्वनि लहरी उठी उसके  माधुर्य को  ह्मारे महर्षियों ने अनुभव किया ! उस ध्वनि को उन्होंने "ब्रह्मनाद"की संज्ञा दी !कालान्तर में यही  नाद "ॐ" नाद हुआ और उस नाद में ही अन्तोगत्वा उन्हें  वैदिक सूत्रों की शब्दावली सुनायी पड़ी जो आगे चल कर वेद ,पुराण ,उपनिषद आदि ग्रन्थों में निबद्ध हुई !

कालानुक्रम की  दृष्टि से हिन्दू धर्म के इन मूलभूत ग्रंथों में  श्रेष्ठतम है आद्य ग्रन्थ "वेद" जो हजारों वर्षों से संहिता ,ब्राह्मण एवं  उपनिषद को संजो कर आज भी भारत क़ी अनमोल  सांस्कृतिक धरोहर है ! वैदिक धर्म में परिवर्तन आने पर देवी-देवताओं की उपासना चालू हुई और उसको बढावा देने के लिए "पुराणों" का जन्म हुआ ! महाभारत तथा रामायण में इतिहास के रूप में हमारी तत्कालीन सांस्कृतिक  परम्पराओं तथा मान्यताओं का दिग्दर्शन हुआ !
क्रमशः 
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प्रियजन !उपरोक्त कथन कपोल कल्पित नहीं है ! सत्य है पर  ह्ममें से अधिकाधिक लोगों को इसका ज्ञान नहीं है ! मैं केवल अपने अनुभव से कह रहा हूँ कि मैंने अपनी स्कूल  कालेज की पढ़ाई मेंAtomic Theory तो पढ़ी थी लेकिन हजारों वर्ष पहले  इस विषय की भारतीय ऋषियों की खोजों के विषय में कुछ भी नहीं पढ़ा था ! घर में मेरे माता पिता तथा  स्वजनों ने भी मुझे कोई ऎसी जानकारी नहीं दी थी !,

आपने देखा पाश्चत्य  वैज्ञानिकों ने जो तथ्य अभी १९ वीं और २० वीं शताब्दी A.D.में जाना वह भारत के ऋषि-मुनियों ने हज़ारों वर्ष पूर्व जान लिया था ! हद्द तो ये है क़ी अब यहाँ अमेरिका के मनीषी भारत के इस महान ज्ञान भंडार की सार्थकता की सराहना करते हैं लेकिन अधिकतर भारतवासी अभी भी अपनी उन पुरातन उप्लाबधियों से अनिभिज्ञ हैं मेरी  प्रार्थना है प्रियजनों क़ी आप हमारी तरह भूल न करें ,अपने बच्चों को इन सब तथ्यों से अवगत कराते रहें !


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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