सोमवार, 29 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 8

हनुमत कृपा
अनुभव  

१९४३ में "शकुन्तला" - "शांताराम जी " के "राज कमल कला मंदिर" द्वारा निर्मित पहली  टेक्नीकलर फिल्म रिलीज़ हुई ! सम्पूर्ण भारत में इस फिल्म का ज़ोरदार स्वागत हुआ  !कलकत्ते के चित्रा सिनेमा में उस फिल्म ने  लगातार लगभग २०० सप्ताह तक चल कर एक नया रेकोर्ड कायम किया ! फिल्मी दुनिया में इस फिल्म की धूम मच गयी ! हीरोइन "जयश्री" ,प्रोड्यूसर डायरेक्टर -"व्ही .शांताराम जी" और संगीत निदेशक "वसंत देसाई" की ख्याति में इस फिल्म ने चार चाँद लगा दिए ! एक्टरों में चन्द्र मोहन , मदन मोहन,के नाम सुनने में आये थे !


लेकिन इस फिल्म में ह्मारे बड़े भैया का कोई  अता पता  नहीं था ! वह इस फिल्म में कहीं दिखायी ही नहीं दिए !  वह न महाराज  दुष्यंत के रोल में दिखे न  ऋषि विश्वमित्र के ,न आश्रम के किसी  शिष्य  की भूमिका  में ही दिखाई दिए !

गांधी जी के असहयोग आन्दोलन को दबाने  के लिए अपनायी ब्रिटिश सरकार की दमन  नीति से भयभीत हो कर बाबूजी -अम्मा ने बार बार तार भेज कर ,और बंबई के  अपने जान पहचान के लोगों से जोर डलवाकर बड़े भैया को वहाँ से वापस कानपूर बुला लिया ! शर्म के मारे मैं यह बात बहुत दिनों तक अपने स्कूल के दोस्तों से छुपाये रहा  !  कैसे कहता उनसे ?  


तब मैं वयस में बहुत छोटा था ,नौवीं कक्षा में पढ़ता था , मुझे दुनियादारी का ज्ञान नहीं था अस्तु बड़ी बड़ी अहंकार भरी बातें मैंने अपने मित्रों से ,उस समय की थीं जब बड़े भइया को  व्ही. शांताराम जी ने  अपनी  "शकुंतला" में भाग लेने के लिए ,अभिनेता के रूप में चुन लिया था !अब किस मुहं से उन्हें बताता क़ि बड़े भैया  बंबई छोड़ कर वापस कानपूर आ गये ! उनके हाथ में आयी हुई वह अप्रत्याशित सफलता अनायास ही उनके हाथों से सरक गयी  ! भैया कितने  निराशा हुए होगे आप उसका अनुमान लगा सकते हैं ! उनके तो सारे सपने एक झटके में ही टूट चुके थे !


आप कहेंगे क़ि उपरोक्त कथन में श्री हनुमान जी की कौन सी कृपा निहित है ? बताउंगा  
प्रियजन ,थोड़ा धैर्य रखें ..


निवेदक  : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

शनिवार, 27 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 7


ह्नुमत कृपा 
अनुभव

नहीं गिन सकूंगा मैं उपकार "उनके" 
दया इस कदर "वह" किये जा रहे हैं !!

हरिक सांस मेरी है सौगात "उनकी",
उन्ही  के  सहारे   जिए  जा    रहे हैं !! 

प्रार्थी -दासानुदास- "भोला" 
====================================
मेरे आतिशय प्रिय स्वजन ,
जय जय जय श्री राम  ,,

ह्म दोनों आज  के इस विशेष दिन "उनको" याद कर के अपना अनुग्रह व्यक्त कर रहे हैं "उन्हें" धन्यवाद दे रहे हैं और "उनसे" प्रार्थना कर रहे क़ि "वह" अपनी कृपा दृष्टि आप सब पर और सम्पूर्ण जीव जगत पर इसी प्रकार सदा सर्वदा बनाये रहें !

स्काइप  पर आज सब राम परिवार  वालों से राम राम होगी ही !

आज का संदेश केवल इतना ही ! 

आशीर्वाद ,शुभ कामनाएं ,स्नेह स्वीकार करें !

हम दोनों  
श्रीमती डॉक्टर कृष्णा एवं व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"


शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 6


हनुमत कृपा  
अनुभव 

महाराज जी की बड़ी कृपा है हम पर ! उनकी अनंत करुणा है ! कैसे ?सुनिए ! कृपा निधान श्री हनुमान जी महाराज ने मेरा गर्व चूर्ण किया ,इससे बड़ी और कौन  कृपा कर सकते  है वह ह्म पर ! महाराज तुम्हारी जय होवे !
प्रियजन,जानना चाहेंगे क़ि काहे का अहंकार था मुझे ! तो सुनिए  
१९४२ के "भोला बाबू"  (यानी क़ि मैं ) - उम्र १३ वर्ष मन ही मन  बड़े बड़े मंसूबे बना रहा था !बड़े भैया जयश्री  के साथ शांताराम जी की फिल्म शकुन्तला में काम करेंगे उनका खूब नाम होग़ा तो उनके छोटे भाई (यानी क़ि मुझे) कम से कम हीरोइन अथवा हीरो के छोटे भाई का रोल तो मिल ही जायेगा !और मैं "बंधन"के मास्टर  सुरेश की तरह हिरोइन लीला चिटनिस  के छोटे भाई के रोल में नई सायकिल पर घंटी बजाते बजाते स्कूल जाऊंगा और स्कूल के मास्टर हीरो अशोक कुमार के साथ मिल कर प्रदीप जी की यह अम्रर रचना गा  गा  कर देश के नौजवानों को जगाऊंगा और उन्हें जीवन पथ पर आगे  बढने को प्रोत्साहित करूँगा .

चल चल रे नौजवान , कहना मेरा मान मान !!
चल रे नौजवान ----
दूर तेरा गाँव ,और थके पांव- फिर भी तु हरदम ,आगे बढ़ा कदम ,
रुकना तेरा काम नहीं , चलना तेरी शान .
चल रे नौजवान  ----
तू  आगे    बढ़े  जा ,  आफत  से  लडे  जा ,  
आंधी हो या तूफ़ान , फटता हो आसमान ,
रुकना तेरा काम नहीं ,  चलना तेरी शान,
चल चल रे नौजवान , कहना मेरा मम मान  !!
-------------------------------------------------------------------------
क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 225

ऐसे विश्व विख्यात सिने जौहरी श्री व्ही .शांताराम जी ने भली भांति कसौटी कर के, नाप जोख करके , हर तरह से परख कर ,हमारे बड़े भैया को अपनी "शकुन्तला" में कोई अति महत्वपूर्ण रोल निभाने के लिए सिलेक्ट कर लिया था ! शांताराम जी ने कहा था क़ि वह बड़े भैया को शकुन्तला में कोई न कोई अति महत्वपूर्ण रोल अवाश्य देंगे ! उन्हें जयश्री जी के अपोजिट, महाराजा दुष्यंत का रोल मिल सकता था , मेनका के साथ विश्वमित्र का रोल अथवा शकुंतला के पिताश्री "कणव ऋषि" का रोल भी मिल सकता था !

कानपूर में ह्म सब बंबई से प्राप्त उपरोक्त उत्साहवर्धक समाचार सुन कर बहुत प्रसन्न थे t अम्मा बाबूजी के मन में बड़े पुत्र से बिछड़ने की थोड़ी कसक थी लेकिन ह्म छोटे बच्चों में बड़ा उत्साह था ! थोड़ा बहुत अहंकार तो हमे हो ही रहा था क़ि ह्मारे बड़े भैया हीरो बन रहे थे ! स्कूल में भी विद्यार्थी हमे अधिक मान सम्मान देने लगे थे !

अपने - (मेरे निजी बारह तेरह वर्षीय) मन में तो बहुत सारे गुलगुले फूट रहे थे ! मैं नित्य प्रति भगवान जी से बड़े भैया की सफलता की प्रार्थना करता रहता था ! यह केवल भात्र प्रेम से प्रेरित नहीं था ! कितनी ही निजी आकांक्षाएं उस प्रार्थना में निहित थीं जो आपको कल बताउंगा !

१९४२ के "भोला बाबू"  (यानी क़ि मैं ) - उम्र १३ वर्ष मन ही मन  बड़े बड़े मंसूबे बना रहा था !बड़े भैयाजयश्री  के साथ शांताराम जी की फिल्म शकुन्तला में काम करेंगे उनका खूब नाम होग़ा तो उनके छोटे भाई (यानी क़ि मुझे) कम से कम हीरोइन अथवा हीरो के छोटे भाई का रोल तो मिल ही जायेगा !और मैं "बंधन"के मास्टर  सुरेश की तरह हिरोइन लीला चिटनिस  के छोटे भाई के रोल में नई सायकिल पर घंटी बजाते बजाते स्कूल जाऊंगा और स्कूल के मास्टर हीरो अशोक कुमार के साथ मिल कर प्रदीप जी की यह अम्रर रचना गा  गा  कर देश के नौजवानों को जगाऊंगा और उन्हें जीवन पथ पर आगे  बढने को प्रोत्साहित करूँगा .

चल चल रे नौजवान , कहना मेरा मान मान !!
चल रे नौजवान ----
दूर तेरा गाँव ,और थके पांव- फिर भी तु हरदम ,आगे बढ़ा कदम ,
रुकना तेरा काम नहीं , चलना तेरी शान .
चल रे नौजवान  ----
तू  आगे    बढ़े  जा ,  आफत  से  लडे  जा ,  
आंधी हो या तूफ़ान , फटता हो आसमान ,
रुकना तेरा काम नहीं ,  चलना तेरी शान,

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 3

जय श्री राम

मेरे परम प्रिय स्वजन ,
जय जय राम

दो दिन से कुछ तकनीकी गडबडी के कारण आप तक अपना सन्देश पहुँचा नहीं पाया ! सच मानिये प्रियजन उसके कारण मैं बहुत दुखी हूँ :

कैसे करूं बया कि मैं कितना उदास हूँ
जो बात है कहनी, नहीं कह पा रहा हूँ मैं !!

ऐसा नशा चढा दिया सद्गुरु ने नाम का
लगता है कि जन्मों से पिए आ रहा हूँ मैं !!

मजबूर ये कमाले मोहब्बत तो देखिये
वो सांस भर रहे हैं जिए जा रहा हूँ मैं !!

मैं यंत्र हूँ चलता हूँ मैं बस उनके सहारे
हर काम नाम ले के किये जा रहा हूँ मैं
बस उनका नाम ले के जिए जा रहा हूँ मैं

यहाँ अमेरिका में मेरे गेजेट गुरुजन मेरी पूरी मदद कर रहे हैं !आज का यह सन्देश किसी दूसरी विध से भेज रहा हूँ ! आशा है श्री रामाज्ञा से अन्जनिसुत हनुमान जी विद्युत वेग से इसे आप तक पहुंचा देंगे !

पेश्तर इसके कि ये भी कहीं खो जाये मैं अपने स्थानीय गेजेट गुरु से अनुरोध करूँगा कि वह इसे प्रेषित कर दें !

प्रियजन ! कथा रुकी नहीं है.चल रही है ,चलती रहेगी !

सांस सांस में प्यारे प्रभु का सुमिरन करते रहिये ,अपनी प्रत्येक कृति में उनका दर्शन करिये .प्रत्येक ध्वनि – स्वर में
कथा के शब्द सुनिए .

------ क्रमशः

निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव “भोला”

शनिवार, 20 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 2

हनुमत कृपा अनुभव

चलिए देखें कि १९४२ में जब बड़े भैया के साथ चौपाटी में ये घटना घटी तब देश की स्थिति कैसी थी !

प्रियजन ,हमारे राष्ट्र पिता बापू द्वारा चलाये शांति पूर्ण असहयोग आन्दोलन का बर्बरता से दमन करने की अपनी पशुवत क्षमता प्रदर्शित करने के लिए अंग्रेज सरकार ने उस दिन,चौपाटी पर ही नहीं वरन देश के विभिन्न भागों में निहत्थी भारतीय जनता पर बड़े बड़े ज़ुल्म किये ! सब प्रकार से हमे दुःखी करके उन्होंने यह लोकोक्ति सही साबित कर दी क़ि "पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं "

देशविदेश में खाद्य सामग्री के प्रचुर भंडार होते हुए भी भारतीयों को भूखा मरने प़र मजबूर किया गया ! देश के अनाज के भंडार जला दिए गये ! अमेरिका से आयातित गेहूँ भारत पहुंचने ही नहीं दिया , अन्यत्र भेज दिया गया ! हमें याद है एक अमरीकी जहाज़ का गेंहू तो हिंद महासागर में डाल दिया गया था ! पूरा देश एक भयंकर भुखमरी के कगार प़र खड़ा था ! बंगाल में दुर्भिक्ष से हजारों लोग भूख से प्राण गँवा चुके थे ! इसके अलावा "महात्मा गांधी जिंदाबाद " का नारा लगाने भर से लोगों को बड़ी बेरहमी से पीटा जाता था और !जेलों में डाल दिया जाता था !

हमारी जन्म भूमि ,बलिया की स्थिति थोड़ी भिन्न थी ! बलिया के ,नौजवान शेर नेता "चीतू पाण्डे" ने अंग्रेजों की दमन नीति से खीझ कर उन्हें "गुरिल्ला लड़ाई " में ऐसा फँसाया कि उनके नाक में दम हो गयी ! यहाँ तक कि कुछ दिनों के लिए उन्होंने बलिया को अंग्रेजी शासन से मुक्त ही करा लिया ! बलिया जेल के सभी राजनैतिक कैदी छोड़ दिए गये ! कलेक्टर साहिब और पुलिस कप्तान ने जिले की बागडोर कांग्रेसियों के हाथ में सौंप दी और उनसे आज्ञा ले ले कर राज काज चलाने लगे ! लेकिन दोबारा बलिया प़र कब्ज़ा कर लेने के उपरांत अंग्रेजों ने जो दमन नीति अपनाई और जितने जघन्य अत्याचार किये उन्हें याद करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! 


अंग्रेज़ी सरकार के हाथों नाना प्रकार के कष्ट झेल कर भी अधिकाश भारतवासी अपनी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय भावना से प्रेरित हो विश्व कल्याण हेतु प्रार्थना करते रहे
ॐ सर्वेषाम स्वस्तिर भवतु , सर्वेषाम शांतिर भवतु , 
 सर्वेषाम पूर्णं भवतु सर्वेषाम मंगलम भवतु " तथा 
 "ॐ शांति शांति शांति" 
इन वेद मन्त्रों के उच्चारण से अदम्य सहनशक्ति ,शांतिप्रियता,एवं निष्काम सेवा करने की प्रवृत्ति अर्जित कर शांति प्रिय भारतीय अपने शोषक शासक की भी सेवा करने को सदा तत्पर रहे ! इसी भावना से प्रेरित हो उन्होंने उस समय चल रहे विश्व युद्ध (द्वितीय) में अंग्रेजों के साथ कंधे से कंधा मिला कर दुश्मनो से लड़ना स्वीकार किया !

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 1

हनुमत कृपा
अनुभव  

जीवन रक्षा के लिए बड़े भैया "मगनोलिया आइसक्रीम" और U.P. के "चौरसिया पान" की बड़ी वाली अस्थायी दूकानों (किओस्क्स) के बीच की गली में छुप कर खड़े हो गये ! वहाँ पर कुछ स्त्रियाँ पहले से ही अपने भयभीत बच्चों के साथ दुबक कर खड़ी थीं ! दूकानदारों ने बत्तियां बुझा दीँ थी ! इस कारण पुलिस वाले उन्हें देख नहीं पाए ! वहाँ खड़े सभी लोग  सांस रोके हुए अपने अपने इष्ट देव की याद कर रहे थे ! बड़े भैया भी बड़ी तन्मयता से मन ही मन कुल देवता श्री हनुमान जी को मनाने का प्रयास कर रहे थे :-

जय हनुमान संत हितकारी , सुन  लीजे प्रभु विनय हमारी !
जन के काज बिलम्ब न कीजे ,आतुर  दौरि  कष्ट हर लीजे !
पायं परों कर जोरि मनावों ,यहि अवसर अब केहि गोहरावों !
उठु उठु  चलु तोहि  राम दोहाई,  पायं परौं  कर  जोरि मनाई !(बजरंग बान से)
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वेगि  हरौ  हनुमान महाप्रभु  जो  कछु  संकट  होइ हमारो !
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो !!(तुलसीदास)

दास की ऎसी करुण पुकार सुन कर कुलदेव हनुमानजी बहुत विलम्ब नहीं कर पाए ,और ह्म तो यही कहेंगे क़ि "संकटमोचन"  की कृपा से   थोड़ी देर में  ही चौपाटी का माहौल सामान्य हो  गया ! सरकार ने वहाँ से पुलिस का बन्दोबस्त उठाने का निश्चय लिया और शीघ्र ही उनकी आखरी टुकड़ी भी चौपाटी से हटा ली गयी !पुलिस के जाते ही चौपाटी की बची खुची भीड़ भी धीरे धीरे छंटनें लगी ! दूकानों में ताले लगने लगे ! बड़े भैया भी बड़ी सावधानी से दायें बांयें देखते ,साथ वाली महिलाओं और बच्चों के झुण्ड में शामिल हो कर लुकते छिपते ,चौपाटी से बाहर निकल गये !भगवान की दया से उन्हें कोई चोट चपेट नहीं आयी थी,वह शारीरिक दृष्टि से पूरी तरह स्वस्थ थे पर सायं के उस कटु अनुभव के कारण 
उनका मनोबल बहुत क्षीण हो गया था !

चौपाटी की घटना के कारण "बेस्ट" की बसें और "लोकल" ट्रेने दोनों ही बंद हो गयी थीं ! भैया  सोंच में पड़ गये ,वह अब कैसे अपने अस्थायी निवास (lodge ) पहुँच पायेंगे ? उन्हें  कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ! उनका सिर चकरा गया !उन्हें कानपुर में भी अकसर सिर दर्द होता था और चक्कर भी आते थे !ऐसे में तुरंत ही उन्हें पलंग पर लिटा दिया जाता था डॉक्टर बुलाये जाते थे ,और अच्छे से अच्छा उपचार चालू हो जाता था ! यहाँ बंबई मे
वह निसहाय थे , कहाँ जाएँ क्या करें ?


क्रमशः :
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
७८,क्लिंटन रोड , ब्रूक्लाइन .(एम् ए) यू एस ए  

बुधवार, 17 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 0

हनुमत कृपा  
अनुभव 

अगस्त १९४२ के  वे दिन बहुत महत्वपूर्ण थे !  बम्बई की एक विशाल जन सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी का ब्रिटिश सरकार से असहयोग करने का प्रस्ताव सर्व सम्मति से मंज़ूर कर लिया था ! इसके फलस्वरूप बापू के नेतृत्व में पूरे देश में "अंग्रेजों भारत छोडो" नाम से एक शांति पूर्ण आन्दोलन (QIIT INDIA MOVEMENT)  का श्री गणेश हुआ !उस आन्दोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आनन् फानन दफा १४४ और Defence of India Rules नामक एक दमन कारी कानून देश भर में लगा दिया ! आम जनता पर बर्बरता से लाठी चार्ज हुए और कहीं कहीं तो गोलियां भी चलीं! कांग्रेस के बड़े छोटे सभी नेता जेल मे डाल दिए गये !जन साधारण ने भी बड़ी तादाद में गिरफ्तारी दी ! 

उस शाम जब भैया ओपेरा हाउस से चौपाटी पहुंचे उस समय वहाँ कांग्रेस की असहयोग आन्दोलन से संबंधित एक बड़ी रेली चल रही थी! भैया तो एक मात्र फिल्म स्टार बनने का संकल्प संजो कर कानपूर से बम्बई आये थे ! उन्हें राजनीति से कोई लेना देना कभी भी नहीं था ! वह केवल फिल्मों मे अपना केरिअर बनाने के विषय में ही सोचते थे !,आस पास संसार में क्या हो रहा है उससे उनका कोई सरोकार नहीं था !


भेलपूरी का दोना अभी उन्होंने हाथ में लिया ही था क़ि वहाँ भगदड़ मच गयी ! जनता का एक जबर्दस्त रेला दरिया के ज्वार (High tide) के समान लहरा कर"अंग्रेजों भारत छोडो", "महात्मा गाँधी क़ी जय" और  "वन्दे मातरम" ,के नारे लगाता  हुआ उनकी तरफ ही आ रहा था ! जनता के पीछे पुलिस का घुड़सवार दस्ता बंदूक ताने उन्हें खदेड़ रहा था और सैकड़ों पैदल सिपाही बर्बरता से लाठी भांजते हुए निहत्थे नागरिकों के हाथ पैर तोड़ने की धमकी दे रहे थे ! "भागो ,भागो,पुलिस आयी" की पुकार और भागती हुई जनता के आर्तनाद से चौपाटी का वातावरण बड़ा उत्तेजक हो गया था !


बड़ी मनौतियों और मेहनत से कमायी ,तिजोरियों में बंद संपत्ति के समान भैया नें तब तक एक बहुत ही संरक्षित जीवन (Protected Life) जिया था ! कानपूर में ,पढाई छोड़ने के बाद वह सुबह से शाम तक कमरा बंद करके हारमोनियम पर स्वर छेड़ कर घंटों गाना गाते रहते थे ! इसके सिवाय उन्हें और कोई दूसरा काम था ही नहीं! कानपूर में वह घर से अधिक बाहर निकलते ही नहीं थे !सडकों पर क्या क्या होता है ,कैसे उपद्रव और अपराध होते रहते हैं वह इन सब से अनिभिग्य थे !


उस दिन भैया ने हिंसा का जो वीभास्त दृश्य चौपाटी पर देखा वैसा उन्होंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था ! वह घबडा कर सोचने लगे :" ये सब क्या है ? मैं कैसे फंस गया ?अब मेरा क्या होग़ा ? क्या करुं? कहाँ जाऊं ?


क्रमशः 
निवेदक:व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
!

सोमवार, 15 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 9

हनुमत कृपा 
अनुभव  

है कृपा  बरसा  रहा जिस धरनि पर  हनुमान   
फिर भला उस खेत का हो क्यों नहीं कल्यान 


बलिया में हरवंश भवन के आँगन वाले हनुमान जी की ध्वजा तले बारह वर्ष तक की हुई भावभरी प्रार्थनाओं के फलस्वरुप हमारी अम्मा को  प्राप्त हुए "बड़े भैया" उनके लिए किसी अनमोल "मणि" से कम न थे ! सो जब बहुत प्यार उमड़ता था तब वह उन्हें बड़े दुलार से "मन्नीलाल" कह कर पुकारती  थीं ! इतना प्यार करतीं थीं अम्मा उनसे क़ि वह भैया से थोड़े समय का भी बिछोह सहन नहीं कर सकती थीं ! पर "ऊपरवाले" (Navigator) की योजना के अनुसार बड़े भैया को अम्मा से दूर जाना था ,वह बंबई गये और वहाँ श्री हनुमान जी की कृपा से उन्हें पहली कोशिश में ही सफलता भी मिल गयी !


अम्मा ने भैया को बंबई इस विश्वास से भेजा था क़ि वह उलटे पाँव वहाँ से लौट आएंगे !सब जानते थे क़ि वह घर की सुख सुविधा छोड़ कर बहुत दिन बाहर नहीं रह सकेंगे ! उन दिनों ,पिताश्री को भी मैंने बार बार यह कहते हुए सुना था क़ि हफ्ते "दो हफ्ते बम्बई की पक्की सडकों पर जूते घिस के ,दादर अंधेरी, मलाड में  स्टूडियोज में धक्के खा के बबुआ लौट ही आयेंगे!" धोबी तलाव में  नुक्कड़ वाले इरानी रेस्तोरांत की चाय मस्का पाव आमलेट या   वर्ली में "फेमस बिल्डिंग" के बाहर ,फुटपाथ की दुकानों पर  और चलती फिरती गाडिओं पर बिकने वाली डालडा वनस्पती घी में तली मिर्च मसाले से भरी बम्बैया पाँव भाजी वह बहुत दिनों तक नहीं झेल पायेंगे !
  
भैया को फिल्म जगत में सहजता से मिली उनकी सफलता  से अम्मा बाबूजी प्रसन्न तो थे पर बम्बई की फिल्मी चमक धमक में उनके बिगड़ जाने का डर उनके मन से निकल नहीं पा रहा था ! किसी प्रकार उन्हें जल्दी ही कानपूर वापस बुला लेने की प्रबल इच्छा उनके मन में जम कर बैठी हुई  थी! अपनी प्रत्येक प्रार्थना में वे इष्टदेव हनुमान जी से यही अर्ज़ करते थे क़ि कोई अनिष्ट होने से पहले भैया बंबई छोड़  कर कानपूर लौट आयें !


 प्रभात" से अलग होने के बाद शांताराम जी द्वारा स्थापित की गयी ,नयी फिल्म कम्पनी "राजकमल कला मंदिर" के दफ्तर में ,उनकी नई हीरोइन (latest discovery) "जयश्री" के पदार्पण से वैसे ही काफी चहल पहल मची रहती थी पर अब उन्हें लेकर बनने वाली "शकुन्तला" के मुहूर्त की तैयारी के कारण वहाँ की रौनक और भी बढ़ गयी थी ! प्लान ये था क़ी  बरसात के बाद नवरात्रि में शूटिंग शुरू होगी !


जून जुलाई की भयंकर बम्बैया वर्षा और उमस ने भैया को त्रस्त तो किया लेकिन उनसे वह निरुत्साहित नहीं हुए ! शांताराम जी की फिल्म मे काम करने का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात थी ! वह किसी प्रकार भी यह सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहते थे ! अपनी सफलता की कामना लिए वह बिना नागा निश्चित दिनों पर मुम्बादेवी, सिद्धविनायक ,हाजीअली , हनुमान जी एवं महालक्ष्मी मंदिर अवश्य जाते थे !


अगस्त के पहले सप्ताह में एक दिन ओपेरा हाउस सिनेमा से निकल कर समुद्र की  ठंढी  हवा का आनंद लेने और भेलपूरी खाकर नारियल का पानी पीने के इरादे से वह चौपाटी क़ी
तरफ  मुड गये ! वहाँ काफी रौनक भी थी ,रोज़ से कहीं अधिक भीड़ वहाँ जमा थी ! ज़रूर आज यहाँ कोई खास बात है ! वह सोचने लगे -------


क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

शनिवार, 13 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 8

हनुमत कृपा
अनुभव  

आइना ये तो बताता है  मैं  क्या  हूँ   लेकिन 
आइना  ये नहीं कहता ,   कि कौन है मुझमें  (नूर)
About ourselves - we know only as much as is reflected in the mirror.The mirror does not show the ONE who hides within us - ONE who drives us and steers us
through the maize of this life.

जीव अपने विषय में उतना ही जानता हैं जितना वह आईने में दिखता है या जितना आस पास के जीव उसको बाहर से जाँच कर उसे बताते हैं ! जीव के अन्तर में छुपा बैठा वह "परम उदार-कृपालु " Navigator जो उसे ------टोक देता है कदम जब भी गलत उठता है
दुर्भाग्यवश जीव उसे पहचानता ही नहीं  !

सोलह वर्ष के बड़े भैया के आईने में जो दिखाई दिया उसके अनुसार उन्होंने अपने भविष्य की योजना बनायी और उनके गुरुजनों को उस परिस्थिति में जो अनुकूल लगा उन्होंने वैसा ही किया ! वैसी व्यवस्था की गयी जिससे भैया को उनका मनवांछित फल मिल जाये ! पर भैया के अंतर में बैठे उस "सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान"  के "मास्टर प्लान" में उनके लिए क्या था वह न तो भैया जानते थे और न उनके मानवीय शुभचिंतक !

बड़े भैया के संकल्प - सिद्धि के आसार बम्बई पहुँचते ही नजर आने लगे ! उन दिनों प्रसिद्ध फिल्म निर्माता "व्ही.शांताराम जी" अपनी नयी फिल्म "शकुन्तला" के लिए कलाकारों का चयन कर रहे थे ! ऐतिहासिक और धार्मिक चित्रों के उस जमाने के हीरो "साहू मोदक" "चन्द्रमोहन","प्रेम अदीब", "अरूण" (आज के हीरो "गोविंदा" के पिता) आदि से कहीं अधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व और आकर्षक स्वरूप वाले भइया अपनी सुंदर गायकी और हिन्दी भाषा के शुद्ध उच्चारण के कारण पहले ही साक्षात्कार में बाजी मार ले गये और शांताराम जी ने उन्हें "शकुन्तला" में भाग लेने के लिए स्वीकार कर लिया !

बम्बई से तार आया ! कानपुर का सूटरगंज वाला घर "लाल विला" खुशिशों से भर गया ! गंगातट के "हनुमानजी" और " भोले बाबा " के मंदिर में श्रद्धा सहित प्रसाद चढ़ाया गया और बड़े प्रेम से मोहल्ले के घर घर में वितरित किया गया ! जितनी खुशी ह्म लोगों ने मनायी उतनी खुशी तो शायद ,१७ वर्ष पूर्व ,भैया के (12 years belated) जन्म दिन पर भी नही मनाई गई होगी ! (प्रियजन ,ह्म यह बात गारंटी से तो नहीं कह सकते  क्योंकि ह्म तो भैया के जन्म के ५ वर्ष बाद पैदा हुए थे)

निर्माता निर्देशक ने फिल्म की मुहूर्त के लिए दुर्गापूजा वाली नवरात्री की सप्तमी तिथि का  निश्चय लिया ! तैयारियां जोर शोर से चल पड़ी! स्क्रिप्ट , डायलोग, वेशभूषा  तथा सेट डिज़ाइन पर युद्ध स्तर से काम होने लगा ! और तभी------------- क्रमशः

निवेदक:  व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road ,BROOKLINE  (MA -02445 , USA)


शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 7

 हनुमत कृपा- अनुभव 

हम बड़े भैया की कथा कह रहे थे!आज भी उन्ही की कथा होगी क्योंकि "ऊपरवाले"ने हरी झंडी उसी लाइन पर गाड़ी ले जाने को दी है ! आप की भी आज्ञा हो तो आगे चलें,,,,,,
चित्रकला ,आधुनिक संगीत और लेखन आदि में तो वह पारंगत थे ही साथ साथ वह एक अति स्वरुपवांन व्यक्तित्व के धनी थे! गौरवर्ण सुडौल काठी ,घने ,काले, घुंघुराले बाल, कागज़ी बादाम सा धवल सन्तुलित नाकनक्शे दार चेहरा ! अड़ोसी पड़ोसी ,स्कूल के मित्रगण ,निकट और दूर के संबंधी खास कर जान पहचान के युवक - युवतियां हर समय उन्हें घेरे रहते थे !उनके स्कूल  के मित्रों में सबसे प्रिय थे ,नगर के दो उच्च शिक्षसन्स्थानो के मराठी मूल के अध्यापकों के पुत्र अशोक हुब्लीकर और वसन्त अठावले ! मोहल्ले की गली में ईंटों के विकेट बना कर लकड़ी के तख्ते के बल्ले से क्रिकेट खेलना उन्हें पसंद नहीं था ! खाली समय में वह ग्रामाफोंन पर नये नये फिल्मों के गाने सुनते थे और उस के साथ साथ गा कर सीख लेते थे !
स्कूल में ,१९३७ से १९४१ तक बड़े भैया अपने आकर्षक व्यक्तित्व और संगीत कला के कारण हमेशा प्रशंसकों से घिरे रहते थे ! वह अपनी मित्रमंडली को नयी फिल्मों की कहानियाँ और गाने सुनाते थे और "सिने संसार" की ताज़ी खबरे बताते थे !  मित्रमंडली की हर ऎसी बैठक के बाद भैया के मित्रगण एक स्वर में  उन्हें बम्बई जा कर फ़िल्मो  मे काम करने की मन्त्राणा देते थे !
यहाँ एक विशेष बात बता दूँ , विवाह के बारह वर्ष बाद तक ह्मारे अम्मा पिताश्री  निःसंतान थे !!ह्मारे भैया लम्बी प्रतीक्षा कराके के ,बड़ी मनौतियों के फलस्वरूप मिले थे !प समझ सकते हैं कि इसीलिये  कुछ न कुछ विशेषता तो उनमें थी ही ! हमारे माता पिता के लिए वह "कोहिनूर" हीरे के समान अनमोल थे ! कभी कभी पिताश्री उन्हें Prince of Wales  कहकर पुकारते थे ! उनकी सारी इच्छाएं व्यक्त करने से पहले ही पूरी कर दी  जातीं थीं !अस्तु ,१७ वर्ष की छोटी अवस्था में ही उन्हें  सन.१९४१-४२ में सिनेमा जगत में प्रवेश करने के लिए  बंबई जाने की अनुमति मिल गयी !

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"




गुरुवार, 11 नवंबर 2010

जय जय जय कपिसूर # 2 1 6

हनुमत कृपा - निज अनुभव
HANUMAAN's GRACE - EXPERIENCE

प्रियजन ! किसी कथा के प्रारंभ में उसके अंत का अनुमान नहीं लग सकता.! कथा की समाप्ति पर ही उसमे निहित नैतिक उपदेश उजागर होता है ! चलिए बड़े भैया की कथा आगे बढायें !ह्मारे भैया केवल संगीतज्ञ ही नहीं थे ! वह लेखन में भी प्रवीण थे !मुझे याद आ रहा है ,१९३४-३५ में जब वह ११ -१२ वर्ष के थे और मैं  ६-७ वर्ष का ,वह घर से ह़ी एक  हस्त लिखित मासिक बालोपयोगी पत्रिका निकालते थे ! उस पत्रिका में समाचारों के अतिरिक्त ज्ञान विज्ञानं धर्म और सिनेमा की जानकारी होती थी ! हिन्दी बोलती फिल्मे (talkies) हाल में ही भारत में चालू हुईं थीं ,उनके latest समाचार भी वह उस पत्रिका में देते थे ! कैसे ? (पिताश्री कानपुर के रीगल और निशात टाकीज के पार्टनर थे !सिनेमा के मेनेजर भैया को नयी फिल्मों के पोस्टर ,पेम्फलेट और चित्र आदि समय समय पर पहुंचाते रहते थे ) 


पत्रिका पढने वालों में सर्वप्रथम थे ह्म उनके तीनो भाई बहेन ! लगभग ६- ७ वर्ष का मैं ,मेरी बड़ी दीदी जो ह्म से दो वर्ष बड़ी हैं और हमारी छोटी बहेन जो तब साल भर की थी ! इसके अतिरिक्त उनके मित्रगण और अडोस पडोस के बालवृन्द मांग मांग कर उसे पढ़ते थे !तब  मुझे हिन्दी का अक्षर ज्ञान तो था पर मेरे लिए उस पत्रिका के सब विषयों को समझ पाना कठिन था !अस्तु जितना वह जानते थे,वह सब हमे बता देने के लिए और मुझे Well Informed बनाने के लिए वह मुझे अपने डेस्क पर साथ में बैठा कर अपनी मैगज़ीन का एक एक पृष्ठ  पढ़ कर सुनाते और समझाते थे ! इसके अतिरिक्त पिताश्री के म्योर मिल वाले बंगले के ड्राइव वे पर ,सायंकाल सूर्यास्त के बाद अंगुली पकड़ कर मुझे टहलाते हुए गृह नक्षत्रों,आकाश गंगा ,सप्त ऋषि एवं ध्रुव तारे के दर्शन करवाते थे और उनसे सम्बंधित जानकारी देते थे !इस प्रकार बारह वर्ष की छोटी अवस्था में वह मुझे अपनी छत्र छाया में रख कर अपने अनुभवों द्वारा  मेरी प्रभु दत्त प्रतिभाओं  का उन्नयन करन चाहते थे ! 


पाठकगण यह ब्लॉग मूलतः मेरी "आत्म कथा" है जिसे मैं अपने प्यारे प्रभु की आज्ञा से उनसे ही प्राप्त प्रेरणा के सहारे लिख रहा हूँ ! उनका कहना है क़ि प्रत्येक जीवन कथा में कुछ न कुछ अनुकरणीय होता ही है और वह मुझसे वही लिखवा रहे हैं जिसे वह उचित मानते हैं! हमारे बड़े भैया के जीवन में भी उन्होंने जो कुछ अनुकरणीय जाना मुझसे लिखवा दिया !   आज इतना ही शेष a,गले अंकों में क्रमशः 


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"



बुधवार, 10 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 5




हनुमत कृपा - अनुभव 


प्रायः ह्म यह शिकायत करते हैं क़ि हमे वह नहीं मिला जिसे पाने की पूरी योग्यता ह्ममें है ! दुखों से घबडा कर कभी कभी ह्म भगवान पर भी दोषारोपण कर देते हैं ! ह्म उनसे यह जानना चाहते हैं क़ि ह्म को ही क्यों इतने कष्ट मिल रहे हैं ,हमने तो इस जन्म में ऐसा कोई पाप नहीं किया जिसकी सज़ा मुझे अभी मिल रही है !  


प्रभु की कृपा से प्राप्त सत्संगों में गुरुजनों से सुने श्रीमद्भागवत गीता के प्रवचनों से हमे यह ज्ञान हुआ क़ि जीव अपने पिछले जन्म में जो भी शुभ -अशुभ कर्म करता है उनके फल स्वरूप ही उसके अगले जन्म के कर्मों का चयन होता है !इसके अतिरिक्त पिछले जन्म का अपना शरीर छोड़ते समय उसके मनमें जो भाव शेष रहते हैं (जिन्हें वह अंत तक छोड़ नहीं पाता ), उन्ही वासनाओं और अतृप्त तृष्णाओं को अपने मन में संजोये हुए  जीव अपने अगले नये शरीर में प्रवेश करता हैं !


अंतिम समय तन त्यागता जिस भाव से जन व्याप्त हो 
उसमे  रंगा  रह  कर  सदा ,      उस  भाव  ही को प्राप्त हो !! (गीता-अ-.८ श्लोक -६ ). 


उपरोक्त सूत्र एकदम सत्य है ! हमे भी अपने पूर्व जन्मों के संचित कर्मों और अंतकालींन   भावनाओं के अनुरूप इस जन्म में एकतरफ जीवनयापन के लिए "चर्म शोधन" का कर्म मिला और  दूसरी तरफ ,जन्म जन्मान्तर के संचित पवित्र संस्कारों के कारण हमें इस जन्म में ईश्वर भक्ति ,गायन संगीत,साहित्य स्रजन ,शेरोशायरी आदि विरासत में मिले !


हमारी माँ बिहार की थीं और उनकी रहनी सहनी बंग प्रदेश की कलात्मक -संस्कृति से बहुत प्रभावित थीं! बिहार के भोजपुरी गीत और बंगाली भाषा में रबिन्द्र संगीत और "बाउल" के भक्ति गीत एवं "मीराबाई" के भजन वह बहुत शौक से गाती थीं!  हमने माँ से बहुत बचपन में सुना था टैगोर का यह प्रेरणा दायक गीत  "जोदी तोमर डाक शुने केउ ना आशे तोबे एकला चलो रे " यह वह गीत था जिसने राष्ट्र पिता "बापू" को सत्याग्रह में अकेले ही जूझ पड़ने की प्रेरणा दी थी ! 


अम्मा की ममतामयी गोदी में खेल खेल कर ह्म चारोँ भाई बहेन,जन्म से ही कला की विविध विधाओं -लेखन, चित्रान्कन ,गायन, नर्तन आदि के उपासक बने ! हमारे बड़े भैया उस जमाने के प्रसिद्ध गायक "के .एल सहगल " के और बड़ी बहेन "कानन देवी" की दीवानी थीं ! दोनों स्वयं भी बहुत सुंदर गाते थे !भाई साहेब की आवाज़ बिलकुल "सहगल"  जैसी थी और दीदी की  आवाज़ "कानन" जैसी  ! भाईसाहब "न्यू थीएटर" की १९३५ वाली पुरानी फिल्म "देवदास" के  गीत ," दुःख के अब दिन बीतत  नाहीं "और "बालम आये बसों मोरे मन में " बड़े भाव से ,इतना सुंदर गाते थे क़ि सुनने वाले रो पड़ते थे!  कहते हैं क़ि यदि वह पर्दे के पीछे से गाते तो लोगों को "सहगल" का भ्रम हो जाता था! 


मुझे १९८८ - ८९ की एक घटना याद आ रही है ! १९८५ में भाई साहब का स्वर्गवास हुआ ! ३-४ वर्ष बाद मैं एक बार इंग्लॅण्ड गया,! वहां उच्चायुक्त के एक अधिकारी (जो  हमारे रिश्तेदार भी थे)  हमे लेने एयर पोर्ट आये ! लम्बी ड्राइव थी इस लिए उन्होंने अपनी कार में "सहगल" के गानों का एक केसेट बजाया ! बीच में एक गाना बजा  "तडपत बीते दिन रैन"!  पुराने गाने मुझे भी अच्छे लगते हैं !मैं ध्यान से सुनता रहा !उन्होंने पूछा " भैया बताएं किसने गाया है यह ?" मैंने सहजता से उत्तर दिया "के .एल .सहगल और कौन ?"!   वह खिलखिला कर हंसते हुए बोले "भैया आप भी धोखा खा गये ,नहीं पहचाना ,ये आपके बड़े भैया की आवाज़ है! में जब १९८३ में भारत गया था मैंने टेप करके इसे " सहगल" के ओरिजिनल गानों की टेप के बीच में उतार लिया!आप ही नहीं सभी धोखा खा जाते हैं "!  ह्मारे भाई साहेब वर्षों तक आकाश वाणी के सुगम संगीत कार्यक्रमों में भाग लेते रहे !


ह्म क्या बनना चाहते हैं क्या बन जाते हैं ,आगे देखें ......क्रमशः


निवेदक :वही. एन. श्रीवास्तव "भोला" ..
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मंगलवार, 9 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 4




हनुमत कृपा - अनुभव


पिताश्री के समक्ष उनके इष्टदेव महावीर जी ,साकार प्रगट हुए ! एक साधारण ग्रामीण के रूप  में  अवतरित हो कर उन्होंने उनका मार्ग दर्शन किया! उन्होंने वह अख़बार  भी  अति नाटकीय ढंग से उपलब्ध कराया जिसमें उस एकमात्र  विलायती सिलेबस वाले स्कूल का विज्ञापन  था जिसे पिताश्री ज्वाइन कर सकते थे !और उन्होंने पिताश्री को अभयदान देकरलगभग धकेल कर बड़े पिताश्री के पास भेजा! एकमात्र  उन देवपुरुष की मंत्रणा के कारण ही ह्मारे पिताश्री का जीवन संवरा ! हनुमत कृपा का यह अनुभव ह्मारे पिताश्री एवं ह्मारे समूचे परिवार के लिए अविस्मरनीय  है! - यहाँ यह मनन करने योग्य है क़ि मेरे समक्ष मेरे कुलदेवता साकार तो नहीं आये पर उनके शब्द मेरे पिताश्री की वाणी में सूक्ष्म रूप में  अवतरित होकर मेरा मार्ग दर्शन कर गये !जानते हैं प्रियजन पिताश्री ने अपने इष्ट देव श्रीहनुमान जी की प्रेरणा से मुझे वही मन्त्रणा दी जैसी "उन्होंने" पिताश्री को दी थी! पिताश्री ने मुझे बताया क़ि हनुमान जी के प्रतिरूप उन ग्रामीण बाबा जी ने उनसे क्या कहा था !










केवल इस जन्म के ही नहीं पिछले अनगिनत जन्मों के ह्मारे निजी और ह्मारे वंशजों के समाहित कर्मों एवं संस्कारों का मिश्रित फल ह्म अपने वर्तमान जीवन में अनुभव करते हैं !विभिन्न जन्मों में की कमायी के आधार पर सब प्राणियों को जीवन में विलग विलग कर्म करने पड़ते हैं! 

कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता !संसार मे जीवों  को अपने अपने प्रारब्धानुसार और विगत जन्मों की कमाई के आधार पर वर्तमान जन्म में  जीवन जीने के विभिन्न साधन सुविधाएँ प्राप्त होती हैं .!आवश्यक नहीं क़ि एक परिवार  में सभी प्राणी एक से गुणों अवगुणों के स्वामी हों ,एक से काम करें,एक सी कमाई करें !इसलिए वर्तमान काल में ,प्यारे प्रभु ,तुमसे जो कार्य करवाना चाहते हैं उसे सहर्ष स्वीकार कर ,उसे प्रभु का आदेश, प्रभु की सेवा मान कर अपनी पूरी योग्यता ,बल बुद्धि लगा कर करो! अन्तोगत्वा वह परम पुरुष, सर्व शक्तिमान तुम्हारा हाथ बटा कर तुम्हे सफलता प्रदान करवा देगा !


१९१५ में ह्मारे पिताश्री खानदानी लिखापढ़ी का पेशा छोड़ कर मिल कारखाने में "रंगरेज़" का काम करने जा रहे थे और १९५० में मैं 




अपने मन पसंद कार्य भजन गीत रचना गायन निदेशन और शिक्षण के सुवासित कलात्मक कार्यों से हटकर उसके बिल्कुल  विपरीत अतिदुर्गन्धमय  चर्मशोधन का कार्य करने जा रहा था !

एक २० वर्ष का होनहार  युवक जिसकी हिन्दी गीत रचनाएँ तब आकाशवाणी के प्रमुख कलाकारों द्वारा गायीं जाती थीं, जिसके प्रतिभाशाली शिष्य आकाशवाणी व फिल्मों के  नामी गायक बने ,एकाध फिल्मों एवं केसेट कम्पनियों के संगीत निदेशक भी बन गये वह युवक रोज़ी रोटी के चक्कर में  Leather Industry में Apprenticeship करने जा रहा था !     


इष्ट देव ने पिताश्री को हरी झंडी दिखायी थी और "उनकी" ही प्रेरणा से पिताश्री  ने मेरा मार्ग दर्शन किया !सद्गुरु और इष्टदेव की कृपा से पिताश्री Unpaid Apprentice से अपनी कम्पनी के Chairman cum Managing Director बने और मैं भी एक साधारण  Under Training Officer से Leather Expert to the Government of -----(a South American Country)  बना  तथा अन्तोगत्वा पिताश्री के समान ही मैं भी भारत के सबसे बड़े सरकारी     चर्म शोधन कारखाने का C.M.D बना ! प्यारे प्रभु की इस असीम कृपा के लिए उनसे केवल इतना ही कह सकता हूँ  


मेरे प्रभु "तेरे गुण उपकार का पा सकूं नहीं पार, 
रोम रोम कृतग्य हो करे सुधन्य पुकार "



सोमवार, 8 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 3

हनुमत कृपा 


पिताश्री के अनुभव

चलिए कथा आगे बढायें ,कुछ पिछली बातें भी ,याद दिलाने के लिए दुहराउंगा! लगता है आज श्री हनुमान जी प्रसन्न हैं,और आगे की कथा सुनाने की आज्ञा वह दे रहे हैं !सुनिए 
जज,मजिस्ट्रेट, एडवोकेट,वकील मुख्तियार अध्यापको के परिवार के,और श्री चित्रगुप्त वंशीय मुंशियों के होनहार सपूत हमारे पिताश्री "रंगरेज़"  बनने जा रहे थे !खानदान में ,पडोसिओं में ,जाति बिरादरी वालों में.काफी मजाक उड़ा !हितेषियों ने सहानुभूति जताते हुए भोजपुरी भाषा में कहा " राम राम कायथ हो के रंगरेजी करिहें ! ई ता अच्छा भेल की महाबीर जी के किरपा से इनके बियाह भा गईल बा ,ना ता के  देत इनका के आपन लडकी   HE IS LUCKY AS HE IS ALREADY MARRIED,OTHERWISE HE WOULD HAVE REMAINED A BACHELOR FOR ALL HIS LIFE.WHO AMONGST KAYASTHAS WOULD HAVE GIVEN  HIS DAUGHTER TO THIS 'RANGREZ' ? )  स्वयं मेरी माँ  ने ऎसी बातें घर के आँगन में जमा हुई सहांनुभूती दर्शाती बिरादरी  की महिलाओं से बहुत दिनों तक सुनीं!  ऐसा था हमारे समाज का चिंतन और ऐसी थीं हमारी मान्यताएं तब उस जमाने -१९१५-१६ में !


मैं जब १९५० में हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के COLLEGE OF TECHNOLOGY से ग्रेजूएशंन कर के घर आया तब  मेरे जीवन में भी कुछ ऎसी ही समस्या आ गयी जैसी मेरे पिताश्री को रंगरेजी की पढायी करते समय हुई थी.! ऐसा हुआ था क़ि ---मैं अपने परिवार का छोटा और अविवाहित पुत्र था इस कारण,सर्विस पर मुझे कानपूर से कहीं दूर भेजने के लिए घर वाले तैयार न थे ! और हालत यह थी क़ि उन दिनों पूरे विश्व के "जॉब मार्केट" में भयंकर मंदी चल रही थी ! अपने देश मे आज़ादी प्राप्ति के बाद के ३ वर्ष में ,१९५० तक मंत्री बने नेताओं की कृपा से आवश्यकता से अधिक लोग सरकारी कामों में लग चुके थे ! कानपूर की निजी कम्पनिया और मिलें भी बंद हो रहीं थीं ! कहीं भी नौकरियां उपलब्ध नहीं  थीं ! हमारे पिताश्री की कम्पनी में मुझे टाइम पास करने के लिए एक जॉब ऑफर किया गया जो मैंने अस्वीकार कर दिया ! इस प्रकार कितने महीने गुजर गये !

महीनों की बेकारी के बाद एक सरकारी LEATHER FACTORY  से मुझे OFFICERS APPRENTICE की जॉब का ऑफर आया ! परिजन भूले नहीं थे क़ि पिताश्री की रंगाई की  पढाई के पीछे कितना हल्ला गुल्ला मचा था ! मेरे "चरम शोधन" कार्य में लगने पर मेरा क्या हश्र होगा इसकी चिंता सबको सताने लगी ! लोगों को यह  डर लगने लगा क़ि यदि चमडा कारखाने में गया तो भोला कुंवारा ही रह जायेगा !बिरादरी में कोई उसको अपनी कन्या नहीं देगा!पर मैं जानता था क़ि  "संकटमोचन श्री हनुमान जी" जो भी करेंगे हमारे लिए हितकर होगा!! मेरी अर्जी उनके दरबार में लगी हुई थी !

रविवार, 7 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 2

हनुमत कृपा
के अनुभव

प्रियजन ! हम सबने अपने अपने ढंग से, अपनी अपनी इच्छा शक्ति,मनोबल ,सामर्थ्य के अनुरूप कल "लक्ष्मी पूजन" के पर्व पर "माँ" को मनाने का प्रयास किया !करोडपतियों ने लाखों ,लखपतियों ने हजारों और मध्यम बर्ग के जन समुदाय ने जितना बन पाया उतने की सेवा '"माँ के श्रीचरणों पर अर्पित की!

स्वयं मैंने उस अवसर पर क्या किया ? प्रियजन यदि आप मुझसे यह न पूछें तो ही बेहतर होग़ा !

प्रियजन वास्तविकता यह है क़ि मैं स्वयं कुछ कर ही नहीं पाया ! कहते हैं न क़ि "छूछा चना बाजे घना"! अधजल गगरी की तरह मैं छलकता रहता हूँ ! दूसरों को उपदेश देता रहता हूँ और स्वयं कुछ नहीं करता ! आप तो जानते ही होंगे अंग्रेज़ी की वह प्रसिद्ध कहावत "It is easier to preach then to practice " So I choose the easier way और आज मैं उसी लोकोक्ति को चरितार्थ कर रहा हूँ ! क्यों कर रहा हूँ मैं ऐसा ?

इसका कारण ,मैं बहुत पहले यह "ब्लोग " लेखन शुरू करते समय, बता चुका हूँ ! मुझे नवजीवन देकर हॉस्पिटल के Critical Care Unit में ही प्रभु ने सूक्ष्म रूप मे मेरे चिन्तन और मेरी भावनाओं में प्रगट होकर मुझे आदेश दिया था क़ि मैं उनसे प्राप्त जीवन दान के इस Extended Life Term में समय बितानें के लिए अपनी आध्यात्मिक उप्लाबधियों का लेखन कर डालूँ ! जब मैंने "उनसे" यह कहा क़ि "मेरी तो कोई उपलब्धि ही नहीं है ! मेरे पास लिखने को कुछ है ही नहीं !मैं नाना विकारों से युक्त एक अधमाधम प्राणी हूँ !-- ,"कवि न होऊं नहि चतुर कहावौं , मति अनुरूप राम गुण गावों"!

मैं कुछ भी नहीं लिख पाऊंगा!"

प्रभु ने तब मुस्कुराते हुए मुझसे प्रश्न किया था " तुम लिखोगे ? ये मुगालता भी कैसे हो रहा है तुम्हे ? करने
कराने वाला कौन है ? यह भी नहींजानते"! इसके अतिरिक्त उन्होंने मुझे आश्वासन दिया क़ि वह मेरे सभी लेखों के प्रेरणा स्रोत बनेंगे ! और उन्होंने अपना वह वादा भली भांति निभाया भी !

आज मैं २१२ वां ब्लॉग लिख रहा हूँ और आज भी वह अपने वादे पर अटल हैं ,वादा निभा रहे हैं ,प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं ! मेरे इस आलेख में भी वह ही मेरे मन में भाव भर रहे हैं ,और उन्हें भाषा का जामाजोड़ा पहना रहे हैं ! आज अभी भी कम्पूटर पर बैठते ही मेरी उंगलियाँ "उनसे" ही प्राप्त जानकारी को संदेश में परिणित कर रहीं हैं !

एक बात और बताऊँ ,अगर कभी कभी मेरा मानव मन इधर उधर भटक कर कुछ लम्बी हाकने लगता है तब ह्मारे प्यारे भगवान जी निःसंकोच, तुरत ही मेरी अनाप शनाप बातों को कम्प्यूटर से ऐसा गायब करते हैं क़ि फिर उसको खोज पाना असम्भव हो जाता है ! यहाँ तक क़ि उन भावों और शब्दों की भी ऎसी विस्मृति हो जाती है क़ि उसे दुबारा लिख ही नहीं पाता !इस प्रकार प्रभु मुझे एक गलत काम करने से बचा लेते हैं.!

हंसना नही भाई उनकी इस जबर्दस्त "केंची क्रिया" के कारण मैं मजबूरन आजकल उनको अपने संदेशों का Editor in Chief (प्रमुख सम्पादक) कह कर संबोधित करता हूँ

भैया ! सोंच के बैठता हूँ क़ि पिताश्री के अनुभव लिखूँगा और "उनकी" कैंची चल जाती है , कुछ और ही लिखवा देते हैं !

आशा है अगले अंक में अनुभव कथा आगे बढ़ा पाउँगा !

क्रमशः





निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"