अनुभवों का रोजनामचा
संत शिरोमणि - परम हनुमंत भक्त - बीसवीं शताब्दी में श्री हनुमान जी के अवतार
नीम करौली बाबा
परम प्रिय पाठकगण , हम सब ही अपने जीवन में पल पल प्यारे प्रभु की अहेतुकी कृपा के अनूठे अनुभव करते रहते हैं ! कठिनाई यह है कि हम अपने प्रिय लगने वाले अनुभवों का कारण और कर्ता ,स्वयम अपने आप को मान बैठते हैं और उस प्रिय उपलब्धि के लिए किसी के प्रति आभार व्यक्त करना तो दूर रहा हम उसके लिए अपने प्यारे प्रभु को भी धन्यवाद नहीं देते हैं ! दूसरी ओर जीवन में घटने वाली प्रत्येक अप्रिय घटना को प्रभु द्वारा किया अन्याय समझकर हम अक्सर उस परम कृपालु प्रभु को बुरा भला ही कहते रहते हैं !
हमारे बाबा नीम करौली ने बड़े बड़े चमत्कारी कृत्य किये ,जिनके कारण विश्व के जाने माने मनीषियों और हनुमत - भक्तों नें उन्हें बीसवीं सदी के साक्षात् श्री हनुमान जी का अवतार तक घोषित कर दिया ! सत्य तो यह है कि अपनी रहनी करनी में बाबा ने कहीं भी स्वयम को कर्ता नहीं माना और न जनता -जनार्दन को मानने दिया ! वह जब तलक इस धरती पर बिचरे एक अति साधारण जीव के समान अपने "परम इष्ट" ( हनुमान जी के भी इष्ट ) "श्री राम" जी को ही सिमरते रहे और जिज्ञासु जनसाधारण से भी केवल "राम नाम" का ही सिमरन , ध्यान और जाप करवाया ! हनुमानजी की भंति ही तन्मय हो कर राम धुन के प्रेमोन्माद में रम कर नाचते गाते रहे !प्रियजन , हनुमान जी के समान ही सिया राम की जोड़ी हृदय सिंहासन पर बैठाए वह हर घड़ी "राम नाम का जाप" किया करते थे !
राम दुवारे तुम रखवारे , होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहें तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना
गोस्वामी तुलसीदास के उपरोक्त कथन को सत्य करते हुए बाबा ने ,हनुमानजी की तरह सब आर्त जनों के काम बनाये ,पर कभी भी यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह उपकार या कृपा उन्होंने की !उन्होंने कभी भी अपने को कर्तानहीं माना ! उन्होंने पेशकार के समान सब दुखियों की अर्जियां "श्री राम" दरबार में पेश कीं ! अर्जियों पर निर्णय और कार्यवाही श्री राम जी के इच्छानुसार ही होती थी! उनके ऐसे कृत्यों से इस कथन की पुष्टि हुई कि वह सचमुच इस युग के साक्षात श्री हनुमान जी के अवतार थे ! उपरोक्त विधि से बाबा की कृपा से उन सभी व्यक्तियों का कल्याण हुआ जो कभी भी उनके सम्पर्क में आये !
प्रियजन , मैं भारत के उसी क्षेत्र (यू पी) का हूँ जो बाबा की प्रमुख लीला स्थली है जहाँ पर बाबा का जन्म हुआ और जहाँ वह समाधिस्थ हुए ! इस क्षेत्र में बाबाजी की प्रेरणा और आशीर्वाद से हनुमानजी के अनेक अतिभव्य मन्दिर निर्मित हुए ! हमारे कानपूर में भी बाबा द्वारा एक विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ ! सुना है बाबा ने स्वयम उसका उद्घाटन किया और उसके बाद हजारों कानपुर वासियों के साथ बैठ कर प्रसाद पाया ! उस विशेष दिन जो कुछ भी हुआ वह एक दिव्य चमत्कार था ! उस चमत्कार की कथा,जो मैंने सुनी आपको सुनाने जा रहा हूँ !
जब कानपूर के मन्दिर का उदघाटन होने को था बाबा उन दिनों प्रयाग (इलाहबाद) में थे ! बाबा के साथ के लोगों ने बाबा को याद दिलाया कि उन्हें कानपूर में मन्दिर का उदघाटन करना है और वहां के भक्त उत्सुकता से बाबा की प्रतीक्षा कर रहे होंगे ! अस्तु उन्हें वहां जाना चाहिए ! बाबा उनकी बात अनसुनी कर के भीतर के कमरे में जा कर लेट गये ! लोगों ने उन्हें कुछ देर बाद उसी कमरे में कम्बल ओढ़े गहरी नींद में सोये हुए देखा ! उस दिन सुबह से देर रात तक वह चौकी से उठे ही नहीं ! सारे दिन रात उन्होंने कुछ खाया पिया नहीं ! थक हार कर लोगों ने यह सोच कर कि शायद बाबा अस्वस्थ हैं उसके बाद बाबा से कुछ कहा भी नहीं !
अगले दिन कानपूर से एक जीप पर बड़े बड़े बर्तनों में भर कर उद्घाटन का प्रसाद ले कर कानपूर के कुछ भक्त आये ! उन्होंने आते ही पूछा " बाबा आ गये न ? कल उदघाटन के बाद बाबा वहां रुके नहीं, जल्दी में लौट आये थे ! हमें आदेश दे आये थे कि इलाहबाद वालों के लिए "प्रसाद" हम आज पहुंचवा दें ! सो हम आप सब के लिए प्रसाद ले आये हैं ! कहाँ हैं बाबा ?" ! इलाहाबाद के भक्त आश्चर्य चकित थे ! बाबा ने इलाहाबाद छोड़ा नहीं था , बाबा अपनी कोठरी से पूरे दिन पूरी रात निकले तक नहीं थे और कानपूर वाले कह रहे थे कि उन्होंने कल मंदिर का उद्घाटन किया था ,हज़ारों भक्तों के साथ पायत में बैठ कर लंगर खाया था ! वास्तव में ये दोनों बातें ही सत्य थीं ,बाबा एक ही समय में दोनों जगह मौजूद थे ! दोनों जगह के प्रत्यक्ष दर्शी बाबा के परम भक्त थे जिन्हें झुठलाना असंभव था !
एक साथ कई कई जगहों पर ,एक ही समय में मौजूद होना ,केवल वैसे असाधारण जीव ही कर सकते हैं जिन्हें आठ में से एक विशेष दिव्य सिद्धि प्राप्त होती है ! हमारे बाबा आठों सिद्धियों के धनी थे ! जीवन भर उनके चमत्कारों द्वारा यह प्रदर्शित होता रहा ! एक बड़ा उपन्यास तैयार हो जायेगा यदि बाबा के सब चमत्कारों को अंकित किया जाये !
प्रियजन ! यह एक घटना मेरे अपने शहर कानपूर की थी इसलिए मेरे " प्रेरणास्रोत प्यारे प्रभु " ने मुझे पहिले उसकी ही याद दिलाई और मैंने आपको सुना भी दी ! अभी तो इसके अतिरिक्त और बहुत सी कहानियाँ याद आ रही हैं , देखिये "वह" कल क्या लिखवाते हैं !
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क्रमशः
निवेदक :- व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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