हनुमत् कृपा - निज अनुभव
गतान्क से आग
गतान्क से आग
उस समय तो असक्त था पर पुन :चेतनता पा जाने के बाद भी मै अपने कृपण मन की गुप्त तिजोरी मे वह सारा आनन्द जो अचेतन अवस्था मे मुझे प्राप्त हुआ था सन्जोये रहा । मैने किसी से इस विषय मे वार्ता भी नही की। प्रियजन ! प्रश्न यह था क़ि जिस विषय को मैं स्वयम् नही समझता उस विषय मे किसी अन्य से क्या चर्चा करेता । अतएव सचेत होने के बाद भी ,मै बहुत समय तक इस चिन्तन मे व्यस्त रहा कि पुरातन काल से आज तक सिद्ध आत्माओ ने कठिन तपश्चर्या के पश्चात जिस "परम" का अनुभव किया वह कैसा था ? और मैंने -=इस मरनासन्न साधारण मनुज ने जो अपने क्षणिक अनुभव में देखा,वह स्वरुप (यदि सच्चा परम था) तो वह उन महात्माओं को दीखे परम से कितना भिन्न था ?
प्रियजन! सर्व विदित है कि आपका यह "भोला" स्वजन न तो संत है, न ग्यानी, न विरागी , न जोगी ! शायद आप सब् ही सोच रहे होङ्गे कि मेरे जैसे अति साधारण प्रानी पर इतनी असाधारण कृपा, परमेश्वर् ने यदि की, तो क्यो कर की ? अपनी पात्रता अपात्रता के विषय मे स्वयम कुछ कहना उचित नहीं, केवल यह ही कहूँगा कि जो मझे मिला वह मेरे किसी निजी गुण-अवगुण के कारण नही ,बल्कि उस देनेवाले की अहेतुकी कृपा के कारण मिला। मै स्वयं चकित हू कि मेरे किस गुण से प्रसन्न हो गये है वह! मेरी इस दशा का चित्रण भक्त कवी बिन्दू जी ने इन शब्दों में किया है.
यही हरिभक्त कहते हैं यही सदग्रंथ गाते हैं -
न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते है
न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते है
नही स्वीकार् करते है निमन्त्रन नृप सुयोधन का
विदुर के घर पहुच कर भोग छिलकों का लगाते हैं
न आये मधुपुरी से गोपियो की दुःख व्यथा सुन कर
द्र्पद्जा की दशा पर द्वारका से दौड़ आते हैं
न रोये बन गमन मे जो पिता की वेदनाओ पर
उठा कर गीध को निज गोद मे आसू बहाते हैं
प्रियजन ! विश्वास् कीजिये मेरे पास कोई ऐसा विशेष गुण नही है जिसके कारण मै उनकी ऐसी असाधारण कृपा का पात्र बना! जो अपना एक मात्र गुण बता सकता हू वो ये है कि मझे मेरे गुरुजनो का स्नेहिल आशीरवाद जीवन के एक एक पल मे प्राप्त होता रहा हैऔर उसके साथ साथ मुझे लगातार मिल रही है ,आप सब प्रेमी स्वजनो द्वारा प्रेषित आपकी हार्दिक शुभ कामनाये । मेरे प्यारे स्वजनों ये आपका ही प्रेम है आपकी ही साधना है जो परम् प्रभु की कृपा के रूप मे इस दासानुदास को प्राप्त हो रही है.आप सब को कोटिश धन्यवाद!
आशा है शीघ्र ही यह प्रसंग समाप्त हो जायेगा।उसके बाद मैं आपको बताऊँगा कि मैं प्रभु की हर
कृपा को "हनुमत कृपा" क्यों कहता हूँ!
निवेदक:-व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
कृपा को "हनुमत कृपा" क्यों कहता हूँ!
निवेदक:-व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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