रविवार, 19 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.19,'10)

सब हनुमत कृपा से ही क्यो ?
चलिये आपके उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करे। आपको बता ही चुका हू ,श्री हनुमान जी से ह्मारे परिवार का शताब्दियो पुराना सम्बन्ध है।  हमारे पूर्वजो पर पुरातन काल मे और हम सब् पर आज तक भी श्री हनुमान जी अनवरत अपनी कृपा वर्षा कर रहे हैं ।

निज अनुभव
अभी अभी मन ने निश्चित किया कि परिवार् मे और किसी के बजाय ,मै हनुमत् कृपा के निजी अनुभव ही आप को सुनाऊ और इसके साथ् ये प्रेरणा भी हुई कि सबसे पहले अपने जीवन के मध्य काल का कोई अनुभव पेश करू।
तो चलिये २००८ के अनुभव सुन लेने के बाद थोडा पीछे चले और अब १९७५-७६ (लगभग ३०-३५ वर्ष पीछे) का एक अनुभव सुने।प्रियजन जैसा मै पह्ले बता चुका हू क़ी तब मैं विदेश मे पोस्टेड था 
एक मध्य रात्रि मेरे पास उस देश मे भारत के राजदूत महोदय का फ़ोन् आया कि किसी आवश्यक कार्य के लिये मुझे अगली सुबह् ही  उस देश के मन्त्री के साथ् सुदूर दक्षिण के एक प्रदेश मे टूर पर जाना है।हाई कमिशनर साहेब् ने काम की अहमियत समझाते हुए उस देश के राष्ट्रपति के साथ् अपने देश के प्रमुख अधिकारियों की कथित घनिष्ठता पर भी अपूर्व  प्रकाश डाला और यहाँ तक बताया यह टूर इनफेक्ट उनको करना था और मेरे लिए ये बड़े इज्ज़त की बात थी क़ी मुझे  यह काम करने का सुनहरा अवसर मिल रहा था ! कहानी  लम्बी है ! आज इतना ही !

निवेदक:- व्ही . एन. श्रीवास्तव  "भोला"

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