हनुमत् कृपा - निज अनुभव आगे
नवम्बर २००८ से ही मै इस सोच में पड़ा हूँक़ीअचेनता,बेहोशी,मदहोशी,को मैं किस नाम सेपुकारूँ ? ।वास्तव में वह था क्या ? मैंअभी भी इसका निर्णय नहीं कर पा रहाहूँ । पर इतना तो मुझे अच्छी तरह याद है कि अस्पताल में भर्ती होने से पहले घर में ही स्वजनो के बीच मै कितने घंटों तक उसी अर्ध सुप्त अवस्था मे पड़ा रहा था। अस्पताल में शायद वह तन्द्रा अधिक गहन हो गयी होगी । प्रियजन !ये क्या ,मै इतिहास के पन्ने पलटने लगा।चलिये बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि ले ली जाये।
हाँ मैं कहाँ था ? - मै याद करने का प्रयास कर रहा था कि उस अचेतनता में मुझे क्या अनुभव हुआ था। वह खुला हुआ विशाल सिंहद्वार और धवल प्रकाश पुन्ज से आवृत वह वैभवशाली प्रासाद जिसकी चमक धमक मेरी बन्द आँखो को भी चकाचौन्ध कर रही थी।
मै देख रहा था उस प्रासाद के घेरे को ,जिसमें संपूर्ण सृष्टि का विशिष्ट वैभव और सौन्दर्य समाहित था । इतना मनमोहक था वह दृश्य कि उससे नज़रे हटाने की इच्छा ह़ी नहीं होती थी। मेरी आत्मा के नेत्र खुले के खुले रह गये, पल भर को भी मेरी पलके नहीं झपकी थी।।उस विलक्षण प्रासाद में प्रवेश पाने को मेरा मन और व्याकुल हो उठा था।
मैं दरवाजे के बाहर ही खड़ा रहा।मैं उतना साहस बटोर न पाया कि बिना आज्ञा के भीतर घुस जाऊं और न कोई भीतर से आया मुझे अन्दर ले जाने को। मै खड़ा का खड़ा रह गया।उस राज प्रासाद का वैभव, उसकी विलक्षण सुन्दरता, उसके नन्दन बन के समान कुसुमित सुरभित और सुगन्धित उद्यान और उसमे कूकती कोयल तथा चहचहाती अन्य चिड़ियों का मधुर कलरव।
पर ये क्या हुआ ,अचानक वह द्वार धीरे धीरे बन्द होने लगा ।उसके बाहर झांकती प्रकाश की किरणें क्षीण होने लगी और मेरी बन्द आँखो के आगे से शनै : शने: अन्धकार उतरने लगा।मेरे कानों में मुरली की मधुर धुन के समान एक धुन बजने लगी, ऐसा लगा जैसे कोई कह् रहा हो ,"अभी समय नहीं हुआ, लौट जाओ।यात्रा पुन: शून्य से प्रारम्भ करो " मेरे कान में वह एक शब्द "शून्य" तब तक गून्जता रहा जब तक मै पूरी तरह सचेत नहीं हो गया। ये तो मझे भली भान्ति याद है क्युओंकि होश मे आने पर मैने जो पहला शब्द बोला था वह था "शून्य" ।
प्रियजन ! वह ज्योति और श्रुति का समग्र दर्शन और उसके साथ साथ अकस्मात ही मेरा स्वस्थ होना प्रारम्भ हो जाना क्या दर्शाता है ? इस अनसुल्झी पहेली के साथ हनुमत कृपा का यह् प्रसंग यही समाप्त करने की आज्ञा दें ।
"हनुमत् कृपा" क्यो ? आगे के अंकों में प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा ।
निवेदक : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
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