गुरुवार, 16 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.17,'10)

हनुमत् कृपा --  ही क्यो ?

आप मे से अनेको के मन मे यह् प्रश्न उठ रहा होग़ा कि अपनी हर उपलब्धि को मै "हनुमत कृपा" कह कर ही क्यो संबोधित करता हू।प्रियजन !बात ऐसी है कि मेरी निजी जानकारी मे  पिछ्ली चार पांच पीढ़ियों से  हमारे परिवार के "कुल देवता" श्री हनुमान जी महाराज है। पहले केअनेक संदेशो मे मैने अपने परपितामह पर लगभग डेढ़ शताब्दी पूर्व हनुमान जी द्वारा की हुई ,एक बड़ी ही  विचित्र और चमत्कारिक अहेतुकी क्रुपा का सविसतार वर्णन किया है और आगे भी अपने अन्य पूर्वजो की ऐसी ही कृपा प्राप्ति के अनुभव की कथाये सुनाउंगा ! मेरे निजी हनुमत् कृपा के अनुभव भी मुझे अभी  आपको सुनाने हैं ! लेकिन पहले मैं आपको अपनी एक रचना सुना रहा  हू :-

इतनी  कृपा  करी  है तुमने  कैसे  धन्यवाद दू तुमको ,                                                       
मोल चुकाऊ किस मुद्रा मे सब उपकारो का मै तुमको !! 

लख चौरासी योनि घुमाकर ,तुमने दिया हमे नर चोला ,
बुद्धि विवेक ज्ञान भक्ती दे,मेरे लिये मुक्ति पथ खोला !!

ऐसे कुल मे जन्म दिया जिस पर ईश्वर् की दया बडी है,
महावीर् रक्षक है ,अपने आँगन उनकी ध्वजा गडी  है  !! 

बिन मांगे  हनुमत देते है फ़िर् काहे को अ न त जाइये  
हम से ज़्यादा उन्हे ज्ञात है हम को क्या सौगात चाहिये !!

प्रियजन !  पिछली बार "हनुमत् कृपा" की कहानी "उन्होने", THE END के छोर  से शुरु करवा दी थी। और आज अभी तक "उन्होने" मुझे  अपने निजी अनुभव सुनाने के लिये न तो हरी झण्डी दी न ये बताया कि मै किस क्रम मे अपनी कथा सुनाऊ ।आज रात मे अवश्य ही "वह्" कोई इशारा करेंगे अब बस एक रात की बात है ,आप थोडी प्रतीक्षा करलें ,मै भी कर रहा हू।  फ़िर् कल मिलते हैं।

निवेदक :- व्ही .  एन  . श्रीवास्तव "भोला" 

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