सोमवार, 6 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR (Sep.6,'10)





हनुमत कृपा-निज अनिभव 


गतांक से आगे



सद्गुरु स्वामी श्री 
सत्यानन्द जी महाराज ने एक साधना सत्संग में कहा था "हमारा 
मस्तक यंत्र है. यहाँ भगवान की कृपा आयेगी .अवश्य आएगी! प्रकाश ,शब्द ,आनंद  का अनुभव ,ये सब भगवान की कृपा और  उनके साक्षात् दर्शन के प्रतीक हैं. ह्मारे मस्तक का यह यंत्र  वायरलेस और बिजली सा है,जो 
प्रकाश और ध्वनि तरंगों को ऊंचे से ऊंचे स्वर्ग से धरती पर उतार लाता है."







होस्पिटल में स्ट्रेचर पर मेरे  नेत्र बंद थे, दोनों कान खुले तो थे पर ध्वनि की  तरंगे कोई प्रतिध्वनि नहीं उपजा पातीं थीं, तन निश्चेष्ट था..ऐसे में ,मेरी बंद आँखों के रजतपट पर जो प्रकाश पुंज था वह कदाचित भगवान् की कृपा का स्वरूप ही रहा होगा .

मैं कल आपको उस दिन ही रिलीज़ हुए मेरे जीवन पर आधारित नये चलचित्र के एक  सुखद दृश्य का वर्णन सुना रहा था. मैं देख रहा था .एक अति आनंद प्रदायक चमत्कारिक कलाकृति जिस में  निहित था हमारे प्यारे प्रभु का मंगलमय स्वरूप जो  सृष्टि के कण कण को हृदयग्राही सौन्दर्य प्रदान  कर रहा था.

कृष्णा जी (धर्मपत्नी ) के भिंड निवासी नानाजी मुंशी हुब्बलाल  साहेब (राद)  की एक रचना  के कुछ अशार जो इन्ही भावनाओं को संजोये है  नीचे  पेश कर रहा हूँ. 

जहां देखा तुझी को खालिके अर्ज़ोसमा देखा  
O Lord -Creator of the earth & sky ,Where ever I look I see U  &  U only .
न  कुछ तेरे सिवा पाया न कुछ तेरे सिवा देखा !!
I have neither found nor seen any thing else (in life beyond U)
मैं कब था होश में जब जलव्ए  हैरत फिजा देखा 
I never recovered my senses since viewing those exciting scenes 
कहे क्योंकर की तेरे देखने वाले ने क्या देखा 
For-the viewer it is impossible to describe the beauty he percieved 

नाना जी ने कितना सच.कहा है




अचेतन अवस्था में अपनी बंद आँखों से जो  प्रकाश पुंज मैंने देखा उसमे समाहित संकलित थी  हमारे "प्यारे प्रभु" की समग्र अलौलिक रचना प्रियजन इसके अलावा मुझे और कुछ भी नहीं दिख रहा था.
श्री स्वामी जी महाराज के कथनानुसार यह परमानंद  प्रभु का दर्शन ह़ी है


समापन अभी नहीं हुआ है.अभी तो मैं उस भव्य प्रासाद के सन्मुख खड़ा आँखे फाड़ फाड़ कर वह अलौकिक सौंदर्य निहार रहा हूँ  .कल देखें आगे क्या होता है..

निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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