शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR (Sept 10,'10)




हनुमत कृपा -निज अनुभव 
गातांक से आगे 



तेरे  मेरे रामजी   सभी    निराले  खेल 
पीड़ा रोग वियोग में भी होता तव मेल 
(गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज)

कितना निराला खेल चल रहा था .हॉस्पिटल के बेड पर मै ,अति गम्भीर और चिंताजनक अवस्था में अचेत पड़ा था .आस पास उदास चिंताग्रस्त स्नेही सम्बन्धी बैचैनी से टहल रहे थे. मेरी बंद आँखों के सामने वह धवल प्रकाश पुँज अपनी मनमोहिनी छटा  से मेरे मन को एक ऐसा आनंद प्रदान   कर  रहा था.वो बयान के बाहर है..ब्रह्मानंद जी की ये ग़ज़ल ज़रूर कुछ हद्द तक मेरी उस समय की  मन: स्थिति बयान कर पायेगी :-

किस देवता ने आज मेरा दिल चुरा लिया
दुनिया क़ि खबर ना रही तन को भुला दिया

रहता था पास में सदा लेकिन छुपा हुआ 
करके दया दयाल ने पर्दा उठा दिया 

सूरज न था न चाँद था बिजली न थी वहां
इक दम वो अजब शान का जलवा दिखा दिया






करके कसूर माफ़ मेरे जनम जनम के  



ब्रह्मानंद अपने शरण में मुझ को लगा लिया 



न तब समझ पाया था न आज  क़ि वह स्वप्न था अथवा जागृत अवस्था का एक सच्चा अनुभव !.जो भी रहा हो .मेरे पूरे शरीर में ,अब भी उसकी याद आते ही आनंद की एक लहर दौड़ जाती है  वैदिक
काल से आज तक जानकार मनीशियों ने इस प्रकार के ज्योति दर्शन को विभिन्न परिभाषाएँ दीँ  
हां ह्मारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने भी ऐसे ही दिव्य प्रकाश रूपी देवता को संबोधित कर के कहा है:-






" हे प्रकाश स्वरुप देव !.  ह्म रात्रि के आरम्भ में और रात्रि के अंत में आपको नमस्कार करते हैं ! न कोई देव ,न मनुष्य तेरी शक्ति को जान सकता है ! तू अनंत है ! तू अपनी 
शक्तियों से ही बनता है.!"






और कुछ नह़ी तो आइये ह्म भी उस परमज्योति से अपने मन का दीप जगा ले!.









आज इतना ही कल  फिर मिलेंगे !









निवेदक:-व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"











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