रविवार, 26 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 172

सब हनुमत कृपा से ह़ी क्यों ?
निज अनुभव 

अब जब इष्ट देव की प्रेरणा से कृपा कथाओं का प्रसारण स्वतः शुरू हो गया है मैं अपनी ओर से कोई व्यवधान नह़ी डालूँगा ! निज अनुभव कथा ही आगे बढ़ाऊंगा !

अष्ट सिद्धि नव निधि के स्वामी ह्मारे इष्ट देव श्री हनुमान जी महाराज इस त्रिलोक के सर्व  श्रेष्ठ नट हैं ,सबसे चतुर बहुरुपिया हैं ! जहाँ एक तरफ  वह अपने सूक्ष्मतम रूप में निराकार रह कर सतत अपना निर्धारित राम काज (राम भक्तों की सेवा) करते रहते हैं वहीं दूसरी ओर कभी कभी वह "साकार" बन कर सज्जनों के काज सवारते हैं! अवश्य ही अक्सर हमें यह विश्वास नहीं होता क़ि ह्मारे इष्ट ने ही हमारी मदद की !यह इस लिए क़ि ह्म "उन्हें" पहचान नही पाते ! भैया, नही पहचाना तो  कोई बड़ी बात नह़ी ! इतना अच्छा मेकओवर करता है उनका मेकअप मेंन क़ि एक बार"विप्र रूप"मे सामने खड़े हनुमानजी  को उनके स्वामी भगवान श्रीराम भी नही पहचान पाए थे ! फिर ह्म किस खेत की मूली हैं
   
पवनपुत्र ने,ह्मारे विमान की रक्षा के लिए कौन सा रूप धरा होग़ा यह तो वह ही जाने! पर मेरे ख्याल से  हनुमान जी अति सूक्ष्म रूप मे "प्रेरणा" बन कर ह्मारे विमान - चालक के मस्तिष्क मे प्रविष्ट कर गये होंगे,(वैसे ही जैसे वह सुरसा के मुख मे चले गये थे) और वही से ह्मारे चालक को एयर कंट्रोल टावर मे बैठे कंट्रोलर के समान "सेफ लेन्डिंग" की उचित  हिदायते दे रहे होंगे ! 

प्रियजन, ह्म ऐसा ,आज ३५ वर्ष बाद सोच रहे हैं ! लेकिन उस दिन तो वहाँ किसी को ये सोचने की फुर्सत ही नह़ी थी !उस दिन ,सारा एयर पोर्ट स्टाफ , सब अधिकारी ,सब यात्री गण  सुरक्षित बच जाने की खुशी मनाने मे लग गये थे ! एक बार फिर "He is a jolly good fellow "का कोरस एयर पोर्ट के लाउंज में गूंज उठा था,बोतलें खुल गयीं थीं और फर्राटे से बियर व्हिस्की और शेम्पेन चल रही थी! मैं एक कोने मे तन्हा बैठा अति कौतूह्ल से यह सारा दृश्य देख रहा था ! कदाचित संस्कार वश मैं अपने आप को उस माहौल से सर्वथा भिन्न पा रहा था !मेरा मन कर रहा था क़ि काश थोड़ी शांति हो,लोगों का नशा उतरे ,मैं मिनिस्टर साहब से यह जानकारी लूं क़ि वह कौन सा अति आवश्यक काम है जिसके लिए यह मजमा जमा किया गया था!

आगे क्या हुआ ,अब कल ही बताउँगा 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला",


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