सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

मंगलवार, 25 मई 2010

श्री हनुमान जी की प्रत्यक्ष कृपा

कृपा के उदाहरण - गतांक से आगे

आज मंगलवार के लिए विशेष
श्री हनुमान जी की प्रत्यक्ष कृपा

पिछले अंक में बचपन की आप बीती घटना बतायी थी. आज अपने जन्म से पहले की एक घटना बता रहा हूँ इसलिए क़ि मुझे पूरा विश्वास है क़ि यह कथा अक्षरश: सत्य है. प्रियजन. मैंने इसकी सत्यता के जीवंत प्रमाण स्वयं अपनी आँखों से देखे हैं इसलिए इसे सुनाने का साहस कर रहा हूँ .

आज से लगभग एक डेढ़ शताब्दी पहले की बात है. हमारे पूर्वज बलिया सिटी में बस चुके थे. आज जैसी भव्यता तो अवश्य ही नही होगी उन दिनों पर कम से कम कोठी की बाहरी मर्दाना बैठक तो अवश्य ही ज़ोरदार रही होगी जहाँ हमारे बाबा -परबाबा तहसील वसूली के लिए दरबार लगाते रहे होंगे . हाँ तो शायद उन्ही दिनों ,१८८० - १८९० में घटी होगी, यह प्रत्यक्ष हनुमंत -कृपा दर्शाती ,चमत्कारिक घटना.

कचहरी में गरमी की छुट्टियाँ हो गयी थी. अग्रेज़ी सरकार के देशी मुलाजिम भी छुट्टियाँ बिताने इधर उधर जा रहे थे.. कोई अपने गाँव, कोई अपनी रिश्तेदारी की शादी में शामिल होने और कोई सुसराल में सासू अम्मा के हाथ की स्वादिष्ट जलेबी और पूरी - आलू दम का भोग लगाने की योजना बना रहा था .

अपनी कोठी हरवंश भवन के मरदानखाने में रोनक इस लिए थी क़ि बड़े मालिक (तहसीलदार साहब )अपने चंद मित्रों के साथ तीरथ यात्रा पर निकलने वाले थे. उस समय बाबाजी , कोठी के बड़े आँगन में महाबीरी ध्वजा के सन्मुख , हाथ जोड़े , आँख मूंदे खड़े यात्रा से सकुशल वापस आ पाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे . आगन में दूर एक कोने में खड़ी दादी माँ भी सजल नेत्रों से कुछ ऎसी ही प्रार्थना कर रहीं थीं. वह बहुत दुखी थीं .बाबा उन्हें इस यात्रा में अपने साथ क्यों नहीं ले जा रहे थे ? यह प्रश्न उनको बार बार कचोट रहा था..पर बाबा जी से कौन पूछे. सब उनसे छोटे थे .


शेष कथा कल सुनाऊंगा.


--निवेदन: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"