सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

सोमवार, 13 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR (Sep.14,'10)




हनुमत् कृपा - निज अनुभव 
गतान्क से आगे
अस्थिर बाह्य  जगत का क्षणभन्गुर वैभव और सौन्दर्य निहारने मे व्यस्त हमारी ये स्थूल आंखे उस "परम" को  सामने देख  कर भी न तो उसे जान सकती है न उसे पहचान ही सकती है। उसे जानने,देखने और पहचाने के लिये हमे अपने अन्तर के दिव्य चक्षु खोलने  का यत्न करना पड़ेगा ।  
यह कठिन तो है पर असंभव नही 
 
सदगुरु की कृपा के अतिरिक्त हमारे पूर्व जन्म की कमाई तथा इस जन्म मे किये सुकर्म-कुकर्मो का लेखा जोखा और ह्मारे वर्तमान जीवन के माता-पिता और पूर्वजों की पुन्याई , हमारे आत्म ज्ञान को जाग्रत करने में सहायक होते  है! 
 अपने पूर्व जन्म के कर्म
 
और अपने माता पिता के  की पुण्याई पर अब हमारा कोई भी नियंत्रण नही है पर इस जन्म मे तो हमे अपने कर्मो पर  पूरा कंट्रोल है ही !

 निश्चय ही उत्तम कर्म करने  से कोई भी  प्रभु का  प्रेम पात्र बन सकता  है! प्रभु की कृपा  से साधक का भाग्योदय हो जाता है जिससे उसको संत महात्माओं का दर्शन होता है तथा  सतत सत्संग का लाभ मिलता है ! गुरुदेव श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के शब्दो मे 
पथ मे  प्रगटे सद्गुरु  हस्त  पकड़  कर   आप 
ताप तप्त को शान्त कर दिया नाम का जाप !
भ्रम   भू ल मे  भटकते  उदय  हुए  जब  भाग 
मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन  की जाग !
सच्चे  संत  की  शरण मे ,बैठ  मिले   विश्राम 
मन   माँगा फल तब मिले जपे राम का नाम !
श्री गुरु की  कृपा से साधक  के ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं! वह  बाह्य जगत  से अधिक अपने  "अंतर" की दिव्य सुन्दरता निरखने लगता है ! अन्तःस्थल में ,साधक के सन्मुख  वह सूक्ष्म "परम" उसी क्षण अवतरित हो जाता है  ! गुरु कृपा से कैसा चमत्कार हो गया. ?


































अब प्रश्न यह है क़ि किसी साधक को ऎसी  गुरु कृपा कैसे  प्राप्प्त हो सकती है ?. अगले अंक में बताऊंगा ! 













निवेदक: व्ही. एन.. श्रीवास्तव "

JAI JAI JAI KAPISUR ( Sep.12/13,'10)


हनुमत्  कृपा -निज अनुभव 

गतान्क से आगे  

सो  जानहि जेहु  देहू जनायी 
जानात तोहि तुमहि हो जायी 

My Good Lord ! Only he ,to whom YOU reveal yourself ,knows YOU and on knowing YOU he becomes (like) YOU.

कभी कभी बडे  बडे महात्मा भी साक्षात सामने खडे परमात्मा को पहचान नही पाते। राम भक्त तुलसी  दास जी स्वयम् अपने सामने , सशरीर् खडे इष्ट देव श्री राम को तब तक नही पहचान पाये जब् तक ह्नुमान जी ने तोते का रुप धर कर (श्रीराम प्रेरणा से ही ) उनका परिचय श्री राम जी से नही कराया।तुलसी  के उपरोक्त सूत्र के अनुसार "परम " को वो ही पहचान (जान) सकता  है जिस पर "परम" की अनन्य कृपा हो और जिससे वह अपना परिचय स्वयम् करना चाहते हो ।

प्रियजन ! महात्माओ से सुना है कि परमात्मा संसार के सभी प्राणियो को प्रति पल किसी न किसी रुप मे दर्शन देते रहते  हैं।आवश्यक नही कि "वह" सशरीर दर्शन दे। मेरे जैसा साधारण जीवधारी प्राणी तो, उनका वह सशरीर "विराट स्वरूप् दर्शन" जैसा योगेश्वर् श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र मे अर्जुन को दिखाया था ,कतयी झेल  न पायेगा । 

उस  विराट स्वरूप् मे समस्त श्रिष्टि ही समायी हुई थी । हम सब उसी श्रुष्टि मे हैं, अस्तु हम उस "महान" के एक अभिन्न अंग  है और वह "परम्" प्रति पल हमारे अंग  संग है। हम फ़िर् भी उन्हे जान नही पाते। स्वजनों, ऐसा है कि बिजली का जेनेरेटर तो चालू हो गया है पर हम बिज्ली के बल्ब  तक क्नेकशन नही जोड पाये है। रोशनी कैसे होगी ?  कल बताएँगे.
    

निवेदक :व्ही   एन    श्रीवास्तव  "भोला"