सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.22.'10)

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ? 
निज अनुभव
गतांक से आगे 

घर से नित्य की भांति परिजनों के समवेत स्वरों में  " प्रबिस नगर कीजे सब काज़ा, हृदय राखि कोसलपुर राजा" का गायन सुन कर निकला था तथा दैनिक "हनुमानचालीसा" पाठ की टेक "ह्म़ारे राम जी से राम राम राम कहियो जी हनुमान"के स्पष्ट बोल तब भी मेरे कान में तरंगित हो रहे थे ! उधर हेंगर से तैमूरलंग के समान डेढ़ टांग से लंगडाते हुए वह भीम काय डकोटा विमान  खटर-पटर करते हुए ह्म़ारे सन्मुख खड़ा कर दिया गया ! उसका रंग रूप और उसकी जर्जर चरमराती काया को देख कर मुझे पूरा विश्वास हो गया क़ी या तो यह उडन खटोला वहाँ से उड़ ही नहीं  पायेगा और यदि इत्तेफाक से उड़ भी गया तो हमें  जहाँ उतारेगा उसका निश्चय केवल पवनपुत्र हनुमान जी ही करेंगे!


प्रतीक्षालय में  सवारियों से दुआ सलाम में  पता चला क़ी प्रत्येक पुरुष अफसर की लेडी P.A.अपने बॉस   के साथ यात्रा कर रही हैं और दोनों मिनिस्टर अपनी पत्नियाँ के साथ हनी मून पर जाते जान पड़े ! मुझे तो बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे लंकेश रावण अपने परिवार सहित  पुष्पक बिमान से कहीं पिकनिक पर जा रहा है!


यहाँ उस विमान पर चढ़ते समय मेरी दृष्टि अनायास ही उसके लंगडाते चरणों (पहियों) पर पड़ गयी!  विश्वास करिये ,उस क्षण मेरे ही चरण डगमगाने लगे ! मुझे ऐसा लगा जैसे वह हालाडोले वाली सीढ़ी मेरे पैरों तले से खिसकी जा रही है! मैंने क्या देखा ? विमान एक  ओर झुका हुआ है और उस ओर के पहिये में हवा का दबाव दूसरे पहिये से बहुत कम है !यह निश्चय कर के क़ि जैसे ही कोई विमान कर्मचारी दिखाई देगा उसे बता दूंगा मैं विमान की एक खाली कुर्सी पर बैठ गया !


जहाज़ के कप्तान साहेब आये तो,पर दरवाज़ा बंद करते करते केवल हाय हेलो पुकारते हुए कौक  पिट मे घुस गये !थोड़ी देर में स्वयम बाहर आकर यात्रिओं का स्वागत करते हुए उस यान के सामरिक इतिहास से हमें   अवगत कराया ! यह भी बताया क़ि कैसे १९४५ तक रोयल एयर फ़ोर्स में  अपना शौर्य प्रदर्शन करने के बाद लगभग २५ वर्षों तक अन्य मित्र देशों की सेवा कर के वह विमान अब इस देश की सेवा कर रहा था. उन्होंने अपना प्रवचन यह वाक्य कह कर समाप्त किया -  "Despite its age this war veteran has never failed its masters .So best of luck to us all."और वह पुनः अपने कोक पिट में  घुस गये.


मैं चुपचाप अपनी सीट पर बेल्ट बाँध कर बैठ गया ! आप अंदाज़ा लगा सकते हैं क़ि मैं  उस समय क्या सोच रहा हूँगा ! उस फ्लैट होते हुए टायर को देखने के बाद ,मेरे पास सिवाय  अपने इष्ट देव को याद करने के और क्या काम हो सकता था !मैं शांति पूर्वक मन हि मन "सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामय नमः"का जाप करने लगा !आप  चिंतित न होना ,यदि कुछ हुआ भी तो मुझे कुछ नहीं होग़ा !आप तो जानते ही हैं :-


जब जानकी नाथ सहाय करे तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो
जाकी सहाय करे करुणानिधि ताके जगत मे भाग बडोरे
रघुबंसी  संतन  सुखदायी  तुलसीदास  चरनन को चेरो 


शेष कल ,
निवेदक :व्ही .एन श्रीवास्तव "भोला"

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.21,'10)

सब "हनुमत कृपा" से ही क्यों? 
निज अनुभव  
सब हनुमत कृपा से ही क्यो ?
चलिये आपके उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करे। आपको बता ही चुका हू ,श्री हनुमान जी से ह्मारे परिवार का शताब्दियो पुराना सम्बन्ध है।  हमारे पूर्वजो पर पुरातन काल मे और हम सब् पर आज तक भी श्री हनुमान जी अनवरत अपनी कृपा वर्षा कर रहे हैं ।
अभी अभी मन ने निश्चित किया कि परिवार् मे और किसी के बजाय ,मै हनुमत् कृपा के निजी अनुभव ही आप को सुनाऊ और इसके साथ् ये प्रेरणा भी हुई कि सबसे पहले अपने जीवन के मध्य काल का कोई अनुभव पेश करू।तो चलिये २००८ के अनुभव सुन लेने के बाद थोडा पीछे चले और अब १९७५-७६ (लगभग ३०-३५ वर्ष पीछे) का एक अनुभव सुने।
 एक मध्य रात्रि मेरे पास भारत के राजदूत महोदय का फ़ोन् आया कि किसी आवश्यक कार्य के लिये मुझे अगली सुबह् ही  उस देश के मन्त्री के साथ् सुदूर दक्षिण के एक प्रदेश मे टूर पर जाना है।
रात  भर इसी सोच मे पड़ा रहा क़ी कदाचित जिस आवश्यक कार्य के लिए मुझे इतनी शोर्ट नोटिस दे  कर मंत्री महोदय के साथ सुदूर प्रदेश के दौरे पर भेजा जा रहा है ,दोनों ही राष्ट्रों के हित मे किसी महत्वपूर्ण सामरिक स्तर की समस्या को  हल करने के लिए होगा! . 

जैसे तैसे रात कटी! नित्य प्रति के निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रातकालीन प्रार्थना पूरे  परिवार ने एक साथ की! ह्म सब ने मिलजुल कर ,संकट मोचन श्री हनुमान जी की सेवा मे पुरज़ोर आवाज़ मे अपनी अर्जी लगा दी!  हमारी मांग केवल इतनी सी थी- "हमें ऎसी बुद्धि और शक्ति दो क़ी हम ,अपना कर्तव्यपालन ,लगन उत्साह और प्रसन्न चित्त से अथक करते रहे! हमसे कोई ऐसा कर्म न हो जिसमे ह्मारे विवेक का विरोध हो "
बच्चों को स्कूल पहुचाने लेआने की व्यवस्था पड़ोसियों के सहयोग से हो गयी!चिन्त्मुक्त हो कर मैं वहाँ के सैनिक हवाई अड्डे पर पहुच गया! अन्डर डेवेलपड देश था ,कुछ  वर्ष पहले ही स्वतंत्र हुए थे ! अभी उस देश की वायु सेना का समुचित गठन ही नही हुआ था ! किसी विकसित देश से ,विश्व युद्ध दोयम का एक टूटा फूटा माल वाहक विमान दान मे मिला था ! मिनिस्टर  साहब ने बताया क़ी हमे आज वही जर्जर विमान अपनी यात्रा पर ले जाने वाला था ! उस विमान मे वहाँ  के एक मंत्री एक गवर्नर और अनेक उच्च अधिकारी  मेरे साथ यात्रा करने वाले थे ,डरने की कोई बात न थी !अस्तु मैं निर्भय था !


लेकिन थोड़ी देर में ,एक ट्रेक्टर के द्वारा खिंच कर हेंगर से बाहर होता हुआ विमान देखते  ही हमारा माथा ठनक गया! ऐसा लगा जैसे वह विमान अभी मैदाने जंग से लौटा हो !अभी तक वह अपने सामरिक रंग रूप का ही था ! उसकी चाल देख कर ऐसा लगता था जैसे कोई घायल सैनिक लंगाडाता हुआ "रन वे" पर "वाकर" के सहारे चल रहा हो ! 


आज इतना ही ,शेष कल 
निवेदक :-व्ही . एन. श्रीवास्तव  "भोला"
.