के उपदेश
अपने सन्देश # ३०८ में मैंने अपनी क्षमताओं के परे जाकर सद्गुरु स्वामी सत्यानंद जी के उपदेशो का सारांश समझाने का प्रयास किया ! दो दिन जूझता रहा ,इस बीच एक सम्पूर्ण आलेख तैयार भी हो गया पर वह हमारे सेंसर बोर्ड को पसंद नहीं आया और वह पूरा का पूरा लेख ही अदृश्य हो गया !
उसे तैयार करने में मैंने बड़ी बुद्धि लगायी थी , बहुत समय लगाया था कम्प्यूटर के आगे इस ८२ वर्ष की काया को कमर से झुका कर एक एक अक्षर को खोज कर टाईप करने में ! पर सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को नकारना भला मुझसे कैसे हो पाता ? जब हमारे "पी. एम्" साहिब के लिए यह सम्भव न हो सका तो मुझ जैसे अधमाधम प्राणी की क्या मजाल ? प्रियजन , मैं भी अपनी गलती स्वीकार करता हूँ और उसका दायित्व अपने सिर लेता हूँ ! प्रभु से यह प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे इसी तरह टोक दिया करें जब भी मैं अधिक ऊंची उडान भरने की कोशिश करूँ !
प्रेरणा है कि आपको उस एक ग्रन्थ का परिचय दे दूँ जिसके पढने से आपको मानव की सम्पूर्ण: १)अपेक्षाओं व आवश्यकताओं की २) उसके कर्तव्यों की और ३)उसे उपलब्ध सब साधनों की पूरी जानकारी मिले ( देखें संदेश # ३०८ ) और उनके समुचित उपयोग से मानव जीवंन का समग्र विकास तथा आध्यात्मिक उत्थान हो सके !
प्रियजन , वह गागर में सागर सा छोटा सा , केवल ९३ पदों का ,५-७ मिनट में पूरा पढ़ा जाने वाला स्वामी जी महराज द्वारा रचित ग्रन्थ है :
"अमृतवाणी"
इस ग्रन्थ की महानता के विषय में कुछ कहने का प्रयास कर के मैं एक बार फिर वैसा दुस्साहस नही करूंगा की मुझे दुबारा क्षमा मागनी पड़े ! मैं केवल प्रार्थना करूंगा की आप स्वयम उस ग्रन्थ को एक बार पढ़ें !
आपको अमृतवाणी पुस्तिका तथा उसके सस्वर गायन के केसेट /सी.डी आदि किसी भी श्री राम शरणम से प्राप्त हो सकते हैं ! मैं मुख्यालय का पता तथा इंटर नेट पर सम्पर्क करने के लिंक्स नीचे दे रहा हूँ :-
श्री राम शरणम ,
८ ए रिंग रोड,
लाजपत नगर -IV
नयी दिल्ली -११००२४
इंटरनेट के द्वारा निम्नांकित लिंकों से आप अमृतवाणी की पूरी शब्दावली पढ़ सकते हैं
तथा संगीत मय गायन भी सुन सकते हैं
लिंक <info@shreeramsharnam.org>
ई मेल - shreeramsharnam@hotmail.com
आशाही नहीं पूर्ण विश्वास है की आपको आपकी सब शंकाओं का समाधान इसके पाठ एवं श्रवण से मिल जायेगा ! मेरा तो बस एक अनुरोध है की आप दिवस में केवल एक बार ही मन से अमृतवाणी का पाठ करें या उसका गायन सुने और देखे उसका प्रभाव !
अमृतवाणी का नित्य गाना , रामराम मन बीच रमाना !
देता संकट विपद निवार , करता शुभ श्री मंगलाचार !! (अमृतवाणी - पद # ९१)
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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