गुरुवार, 30 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 176

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 
इधर स्टेज पर बैठा हुआ मैं इस विचार से चिंतित हो रहां था क़ि क्या आज नियति सचमुच मुझसे कोई अनुचित कार्य करवाने वाली है ?  क्या मुझे "बलि का बकरा" बनाया ही जायेगा ?  
प्रियजन ,आपको विदित है क़ि मेरा लालन पालन भारत के घनी आबादी वाले बड़े नगरों में हुआ है जहां रिहायशी मकानों में बड़े जानवरों को रखना कानूनन अपराध है !अस्तु पशु पालन के नाम पर मैंने इस पूरे जीवन में दो-तीन बार श्वान (कुत्ता) पालने का प्रयास
किया और कुछ वर्षों तक बाबूजी की सवारी में जुतने के लिए घर में एक अति सुंदर अरबी घोड़ा भी रखा गया इसके अतिरिक्त हम्रारा पशु धन से और कुछ लेनादेना नहीं था! 
इस विषय में ,एक बात  उल्लेखनीय है ,वह यह है क़ि घर में पलने वाले इन सभी पशुओं से मुझे अतिशय लगाव था ! स्कूल कॉलेज,खेल कूद और गाने बजाने से बचा हुआ समय मैं इन  पशुओं के साथ ही बिताता था ! लेकिन १९४७  में पढ़ाई  के लिए बनारस जाने के साथ साथ मेरा पशु-प्रेम प्रकरण समाप्त होगया !पर १९७६ के उस दिन, लगभग ३० वर्ष बाद, स्थिति यह थी क़ि मैं एक ऐसे समारोह में भाग ले रहा था जिसमे "पशुवध" मुख्यतः "गौ हत्या"  में काम आने वाले ,इंग्लेंड मे बने आधुनिकतम उपकरणों के विषय में चर्चा होनी थी और उनके व्यावहारिक प्रयोग का प्रदर्शन होना था !
नीचे पंडाल के दूसरे छोर पर खूटे से लम्बी रस्सी द्वारा बंधी एक बहुत ही स्वस्थ चमकीले सफेद काले पशम वाली अति सुंदर छोटी सी गाय ,मस्ती से उछल कूद कर रही थी! स्टेज पर आसीन सभी सम्मानित अतिथिगण उस गाय का मनमोहक प्रदर्शन देख कर आनंदित हो रहे थे !
तभी,उस देश के मिनिस्टर साहेब ने गाय के मनोरंजक प्रदर्शन मे रुकावट का खेद प्रकट करते हुए मेज़ पर रखी बंदूक उठा कर मेरी ओर बढ़ा दी और अंग्रेज़ी में एलान किया "Now Comrades ,our chief guest -the Indian lndustrial Advisor- Comrade Srivastav will demonstrate the proper  opertion tchnique of the two machines " मेरे पैरों तले की जमीन सरक गयी ! मैंने मन ही मन कहा ,"आखिर मैं बलि का  बकरा बन  ही गया !" 


कल देखियेगा क़ि आगे क्या हुआ !
निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

बुधवार, 29 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 7 5

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव  

मिनिस्टर महोदय का अचानक मुझसे यह अनुरोध करना क़ि आगे का कार्यक्रम अब मैं संचालित करूं ,कुछ मेरी समझ में  नहीं आया ! मैं सोच में  पड़ गया क़ि मेरे जैसा अहिंसक और शांति प्रिय व्यक्ति उस "बूचरखाने" का कार्य कैसे टेकओवर कर पायेगा ! सोचने की बात भी थी क़ि साउथ अमेरिका के इस देश की मूलतः मांसाहारी जनता को भोजन के लिए हांइजिनिक शुद्ध "गौ -मांस" उपलब्ध  करवाने के उस अभियान में  मैं निजी रूप से एक पूर्णतः शाकाहारी व्यक्ति और मेरा विश्वविख्यात "गौरक्षक"मत-समर्थक देश भारत  क्या योगदान दे सकता है !

उधर पंडाल के दूसरे छोर पर जो नाटक चल रहा था उसे देख कर मैं पहले तो विस्मित हुआ और फिर मेरा मन और अधिक विचलित हो गया  !उस दृश्य की याद आते ही, आज भी मैं   अपने आप को सम्हाल नहीं पाता मेरा मन द्रवित हो जाता है ,आँखों में आंसूं  छलछला आते हैं !नहीं बयान कर पाउँगा ,शब्दों में,अपनी तत्कालीन उद्विग्नता की गहराई !

भैया ! न मैं स्वयम किसी गौरक्षक समिति का सदस्य हूँ न उस से जुड़े किसी अभियान का समर्थक ! पर अब तक आप मेरे विषय में इतना तो जान ही गये होंगे क़ि (बिना मेरे किसी प्रयास के , एकमात्र  हरि इच्छा से ही  ) कदाचित  मेरे पिछले जन्म जन्मान्तर से अर्जित संस्कारों और इस जन्म मे जननी माँ व गुरुजनों की शिक्षाओं के कारण अब मेरी सोच कुछ ऎसी बन गयी है क़ि जिसमें  मुझे इस संसार की कोई भी जड़ चेतन वस्तु अथवा व्यक्ति अपने से भिन्न लगता ही नहीं! सारी सृष्टि मुझे अतिशय प्रिय स्वरूपा लगती है! अब तो जिधर देखता हूँ उधर केवल "वह ही वह" दिखाई देता है !

सोचता  हूँ ,नाना जी मरहूम के कुछ आशार सुना के माहौल कुछ हल्का फुल्का कर लूं !इधर बहुत ऊंची ऊंचीं बाते हो चुकीं !

जहां देखा तुझी को खालिके  अर्ज़ोसमा देखा 
न कुछ तेरे सिवा पाया न कुछ तेरे सिवा देखा 
Where ever I looked I saw U & U only MY LORD -creator of the entire universe Neither I found nor could I see any one else but you .
तेरी  जल्वानुमायी  में   करिश्मा ये नया देखा  
तुझे हर शय में देखा और हर शय से जुदा देखा 
In your manifestations I saw a new miracle .On one hand I perceived your holy presence in every thing  on the other U looked completely detached from all. 

प्रियजन!"बलि के बकरे" की शेष कथा कल अवश्य सुनाऊंगा ,यदि "उनका"आदेश हुआ !

निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 174

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव

स्थानीय स्टील बेंड की टंकार भरी धुनें सुनते हुए हम ऊपर स्टेज पर लाये  गये ! बड़े आदर सत्कार सहित मुझे चीफ गेस्ट की बीच वाली ऊंची कुर्सी पर बैठाया गया! मेरा औपचारिक स्वागत  हुआ ,ताज़े फूलों का एक सुंदर बूके प्रदान किया गया ! मैं ये समझ नहीं पा रहा था क़ि मुझे उतना आदर- सम्मान किस कारण मिल रहा है !लेकिन उस समय वह सब बहुत अच्छा लग रहा था ! इतनी प्रतिष्ठा  अनायास ही मेरी झोली में पड़ रही थी!  परम पिता की इस विशेष अनुकम्पा के लिए मैं मन ही मन उनका स्मरण करके उन्हें धन्यवाद दे रहा था ! पर मुझे तब तक यह नहीं  ज्ञात था क़ि मुझे वहाँ कौनसा विशेष कार्य करना है !इस कारण यह भी डर लग रहा था क़ि कहीं मुझे "बलि का बकरा" तो नहीं  बनाया जा रहा  है ! 

अभी मैं "बलि के बकरे" वाली बात सोच ही रहा था क़ि मिनिस्टर साहेब ने अपनी तकरीर में एलान कर  दिया क़ि "ब्रिटिश और भारत सरकारों के आर्थिक और तकनीकी मदद से देश की जनता को खाने के लिए उत्तम क्वालिटी का हाइजीनिक साफ़ पशु-मांस उपलब्ध कराने के लिए एक आधुनिक उपकरणों से युक्त नया Slaughter House,उसी स्थान पर  बनेगा जहाँ ह्म  उस समय बैठे थे !इस बूचर खाने में पशुओं पर कोई अत्याचार नही होग़ा और जानवरों को कम से कम कष्ट देकर ,सुन्न (बेहोश) करने के बाद  जबह किया जाएगा और उसके बाद उनकी खाल उतारी जायेगी" !

प्यारे स्वजनों ! मुझे क्षमा करना भक्तिरस की कथा  सुनाते सुनाते आपसे यह वीभस्त रस की  चर्चा करने लगा ! भैया ,अपना माँनव जीवन बड़ा विचित्र है ,यहाँ हमे जब जो भी करने का आदेश ऊपर मुख्यालय से मिले उसका पालन करना ही पड़ता है !किसी की अपनी तो यहाँ चलती ही नही, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है !

उसके बाद बगल की मेज़ पर रखा रंगीन गिफ्ट रेप पेपर मे लिपटा बड़ा सा डिब्बा मंगवाया    गया और  प्रादेशिक गवर्नर महोदय ने उसका रिबन काटा ! डिब्बा खुला तो उसमे इंग्लॅण्ड की बनी हुई एक ,एक नली बन्दूक और एक ऐसा यंत्र निकला जिसमे से हवा का जेट बहुत ही वेग के साथ निकलता था ! इन दोनों यंत्रों को प्रदर्शित करने के बाद मंत्री महोदय ने मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए कहा  " नाऊ कॉमरेड श्रीवास्तव यूं मे टेक ओवर " मुझे धीरे धीरे विश्वास हो रहा था क़ि आखिर मैं "बलि का बकरा" बन ही गया !

कहानी मे आगे मुझे जो अनुभव हुआ वह सुनने योग्य है ! आपको कल सुनाऊंगा  .

निवेदक: वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"



सोमवार, 27 सितंबर 2010

AI JAI JAI KAPISUR # 173


सब हनुमत कृपा से ही क्यो ?
निज अनुभव 

ऐयर पोर्ट के लाउंज में जो जश्न मनाया जा रहा था ,मेरा मन वहां नहीं था। मेरा मन एक ऐसे एकान्त की खोज  में था जहाँ  चुपचाप बैठ कर  मैं उस अदृश्य-निराकार शक्ति का आवाहन करता जिसने अतुल्य करुणा कर के  उस भयंकर हादसे से  हम सब यात्रिओ की जीवन रक्षा की। कठिन है आँक पाना कि कितना बृहद उपकार हमारे इष्ट ने उस दिन हमें बचाकर स्वयं हमारे ऊपर और हमारे परिजनो पर किया था।क्या कोई अपने "इष्टदेव" का इतना बड़ा उधार कभी चुका सकता है:  

ऐसे में घर की याद आती ही है! विचार आया,कि भारत में यह समाचार सुनते ही हमारा सारा परिवार,माता पिता भाई भाभी और सभी स्वजन तुरन्त ही हनूमान जी की ध्वजा के नीचे खड़े हो जाते, "उनके" प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए !सारा परिवार मिल कर बार बार हनुमान चालीसा का पाठ करता और सारे टोले मोहल्ले मे प्रसाद वितरित  करवाया जाता। उस दिन वहाँ साउथ अमेरिका के खास उस प्रदेश में मैं बिलकुल अकेला ही था ! मेरे साथ वहाँ हनुमान चलीसा का पाठ करने वाला और कोई न था ! मैं मन ही मन "श्री रामाय नम:" का जाप करता रहा और अपने इष्ट को मनाता रहा और उनके प्रति अपना हार्दिक अनुग्रह व्यक्त करता रहा !

इस यात्रा में  हुए प्रथम अनुभव का स्वाद ,जैसा आपने देखा, बाह्य रूप में  बहुत मधुर नहीं  था,पर आध्यात्मिक दृष्टि में
 
 वह जितना सरस था ,चखने वाला ही बता सकता है।  सुरक्षित बचा  हुआ प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति अपने रोम रोम पर अपने इष्ट के वरद हस्त का स्पर्श महसूस कर रहा था कम से कम मुझे  तो ऐसा लग ही रहा था! मुझे याद आ रहा था  वह क्षण जब मेरे गुरुदेव ने मेरी विदाई के समय मुझे  दुबारा अपने पास बुला कर गले से लगाया था और मेरे सिर पर अपना वरद हाथ फ़ेर कर मेरे इस फोरेन असाइनमेंट की सफलता के लिए बहुत शुभ कामनाएं की थीं और मुझे  बहुत बहुत आशीर्वाद दिये थे । महाराज जी के हस्तकमल का वह जीवनदायी स्पर्श मुझे उस पल भी उतना  ही 
सुखद अनुभव दे रहा था।

गवर्नर हाउस मे मुंह हाथ धोकर ह्म तुरत ही वहाँ गये जहाँ वह विशेष  कार्यक्रम होने वाला था जिसमें  भारत के राजदूत को अध्यक्षता करनी थी !पर अब वह कार्य मेरे कंधे पर डाल 
दिया गया था।
एक बडा पंडाल था जिसमे सुन्दर बैनर्स और कागज़ की रंग बिरंगी झंडियाँ लगी थी ,खाने पीने के लिए टेबल कुरसियाँ 
बाकायदा मौजूद थीं! एक स्टेज बना था जिस पर मुख्य अतिथि तथा मिनिस्टर और गवर्नर आदि के बैठने की व्यवस्था थी !ह्मारे पहुचते ही पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर बार बार एलान होने लगा क़ि कार्यक्रम शीघ्र ही शुरू होने वाला है !

स्टेज के आगे नीचे जमीन पर 
लाल नीली यूनिफ़ोर्म में पोलिस के सिपाही अपने चमचमाते स्टील बेंड पर झूम झूम कर अति मधुर एंग्लो एफ्रिकन 
धुने बजाने लगे ! माहौल ऐसा था जैसे किसी के विवाह का आयोजन हो! 
 
कल बताउंगा क़ि वास्तव मे वहाँ क्या कार्यक्रम हुआ !अभी केवल् इतना ही
!

निवेदक:-व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

रविवार, 26 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 172

सब हनुमत कृपा से ह़ी क्यों ?
निज अनुभव 

अब जब इष्ट देव की प्रेरणा से कृपा कथाओं का प्रसारण स्वतः शुरू हो गया है मैं अपनी ओर से कोई व्यवधान नह़ी डालूँगा ! निज अनुभव कथा ही आगे बढ़ाऊंगा !

अष्ट सिद्धि नव निधि के स्वामी ह्मारे इष्ट देव श्री हनुमान जी महाराज इस त्रिलोक के सर्व  श्रेष्ठ नट हैं ,सबसे चतुर बहुरुपिया हैं ! जहाँ एक तरफ  वह अपने सूक्ष्मतम रूप में निराकार रह कर सतत अपना निर्धारित राम काज (राम भक्तों की सेवा) करते रहते हैं वहीं दूसरी ओर कभी कभी वह "साकार" बन कर सज्जनों के काज सवारते हैं! अवश्य ही अक्सर हमें यह विश्वास नहीं होता क़ि ह्मारे इष्ट ने ही हमारी मदद की !यह इस लिए क़ि ह्म "उन्हें" पहचान नही पाते ! भैया, नही पहचाना तो  कोई बड़ी बात नह़ी ! इतना अच्छा मेकओवर करता है उनका मेकअप मेंन क़ि एक बार"विप्र रूप"मे सामने खड़े हनुमानजी  को उनके स्वामी भगवान श्रीराम भी नही पहचान पाए थे ! फिर ह्म किस खेत की मूली हैं
   
पवनपुत्र ने,ह्मारे विमान की रक्षा के लिए कौन सा रूप धरा होग़ा यह तो वह ही जाने! पर मेरे ख्याल से  हनुमान जी अति सूक्ष्म रूप मे "प्रेरणा" बन कर ह्मारे विमान - चालक के मस्तिष्क मे प्रविष्ट कर गये होंगे,(वैसे ही जैसे वह सुरसा के मुख मे चले गये थे) और वही से ह्मारे चालक को एयर कंट्रोल टावर मे बैठे कंट्रोलर के समान "सेफ लेन्डिंग" की उचित  हिदायते दे रहे होंगे ! 

प्रियजन, ह्म ऐसा ,आज ३५ वर्ष बाद सोच रहे हैं ! लेकिन उस दिन तो वहाँ किसी को ये सोचने की फुर्सत ही नह़ी थी !उस दिन ,सारा एयर पोर्ट स्टाफ , सब अधिकारी ,सब यात्री गण  सुरक्षित बच जाने की खुशी मनाने मे लग गये थे ! एक बार फिर "He is a jolly good fellow "का कोरस एयर पोर्ट के लाउंज में गूंज उठा था,बोतलें खुल गयीं थीं और फर्राटे से बियर व्हिस्की और शेम्पेन चल रही थी! मैं एक कोने मे तन्हा बैठा अति कौतूह्ल से यह सारा दृश्य देख रहा था ! कदाचित संस्कार वश मैं अपने आप को उस माहौल से सर्वथा भिन्न पा रहा था !मेरा मन कर रहा था क़ि काश थोड़ी शांति हो,लोगों का नशा उतरे ,मैं मिनिस्टर साहब से यह जानकारी लूं क़ि वह कौन सा अति आवश्यक काम है जिसके लिए यह मजमा जमा किया गया था!

आगे क्या हुआ ,अब कल ही बताउँगा 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला",


शनिवार, 25 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 171

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 

गन्तव्य स्थान के ऊपर विमान धीमी गति से काफी देर तक चक्कर लगाता रहा ! फिर वह  अचानक एक तरफ घूम गया और एक बहुत विशाल नदी के ऊपर उसकी धारा की दिशा में  उड़ने लगा! हमारा माथा पुनः ठनका ! चिंता और बढ़ गयी! क्या हमारा विमान उस सागर जैसी भयंकर नदी पर उतरने वाला है ? और मुझे तो तैरना भी नही आता है! विमान में ऎसी  परिस्थिति झेलने के उपकरण भी नहीं  थे! मन ही मन मैं अपने आप को जल समाधि लेने के लिए तैयार करने लगा !

तभी हमारी नाक में   पेट्रोल की तीक्ष्ण गंध आने लगी ! एक और चिंता हुई ! क्या हमें  जीते जी चिता में  जलना है ? इतने में  कप्तान ने एलान क़िया क़ि यान का पेट्रोल नदी में  गिरा कर उसे हल्का किया जा रहा है जिससे रनवे पर क्रेश लेंडिंग होने पर विमान में  विस्फोट  न हो और आग न लग जाये !चिंता थोड़ी घटी!प्रियजन !आपको अधिक चिंतित नहीं  करूँगा ! 

जैसे ही पेट्रोल की गंध आनी खतम हुई ,विमान घूम पड़ा और पुनः हवाई अड्डे के ऊपर उड़ने लगा.! अत्याधिक सावधानी बरतते हुए ,लगभग शून्य की गति से विमान ने रनवे को छुआ! !एक भयंकर धक्का लगा ! यात्री अपने आगे वाली कुर्सी पर बैठे यात्रियों से टकराये ! केबिन भयभीत यात्रिओं की चीखों से गूँज उठा !सेफ्टी बेल्ट खुल गये ,  और यात्रिओं ने अपने अपने भगवानो से अपनी अपनी भाषा मे स स्वर  कृतज्ञता प्रदर्शित की ! ह्मने भी मन ह़ी मन अपने इष्टदेव और गुरुजन को धन्यवाद दिया!शीघ्र ही विमान का द्वार खुल गया ! कापते कांपते एक एक करके सभी यात्री उतर गये !हमारा भयंकर स्वप्न टूट चका था !

आज आप ही क्यों हम भी सोच रहे हैं क़ि इसमें कौन सी बहुत बड़ी कृपा कर दी "उन्होंने" हमारे  ऊपर ? विमान के पायलेट की दक्षता और कार्य कुशलता के कारण संकट टल गया! भगवान ने क्या किया ? प्रियजन ! यह भाव हमें हमारा अहं सुझा रहा है ! हमारे ऐसे विचार ही हमें  रावण ,कंस ,दुर्योधन जैसे असुरों के सम कक्ष खड़ा कर देते  है ! हम भूल रहे है क़ि विपत्ति काल में  केवल मैंने ही नही बल्कि हमारे साथ के सभी आस्तिक नास्तिक यात्रिओं ने जाने-अनजानेमें ,चाहे-बिना चाहे ,अपने अपने ढंग से अपने अपने भगवान को पुकारा था ! मृत्यु हमारे  द्वार पर खड़ी थी , अपने  जीवन के अंतिम क्षण में हम सब अति आर्त भाव से ,सच्ची लग्न और विश्वास के साथ समवेत स्वर में प्रार्थना कर रहे थे !क्या  तुलसी के राम, मीरा के श्याम ,हजरत मोहममद साहेब के अल्लाह और ईसाइयों के GOD ऐसे में, चुपचाप ,दूर से ही अपने प्यारे बच्चों  की दुर्गति  देखते रहते ? अवश्य ही "प्रभु जी" निराकार रूप में  प्रगट  होकर हमारी रक्षा कर गये ! अहंकार का काला चश्मा लगाये, हम "उन्हें" पहचान न सके !

कितने भुलक्कड हो गये हैं हम सब ? कितनी आसानी से हम अपने प्यारे प्रभु को,अपने गुरुजन को ,उनसे प्राप्त ज्ञान को भूल गये ?  हम तो प्यारे प्रभु का वह वादा भी भूल गये: 

सुनु मुनि तोही कहहूं सहरोसा ,भजहि जे मोहि तज सकल भरोसा!!
करहु सदा तिनके रखवारी  ,जिमि बालक राखही महतारी!!  
सखा सोच त्यागहु बल मोरे ,सब बिधि घटब काज मैं तोरे !!

 प्रियजन !आज ८१ वर्ष की अवस्था में मुझे उपरोक्त कथन का भाव भली भांति समझ में आगया है जो आज से  ३०-४० वर्ष पूर्व १९७५ - ७६ में हमारी समझ से कोसों दूर था !

उस दिन निराकार ब्रह्म ने हमारी जीवन रक्षा की थी ! आगे सुनाऊंगा एक ऐसा अनुभव जिसमे हमारे इष्ट श्री हनुमान जी ने साकार रूप में उपस्थित होकर मेरा (जी हां मेरा ) उद्धार किया ! आपको थोड़ी सी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी!

निवेदक:  व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला". 

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 170

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 

हाँ सचमुच तब १९७५ में मुझे प्रभु की अहेतुकी कृपा पर ऐसा अटूट विश्वास नहीं था जितना  आज २०१० मे है ! उन दिनों शायद मुझे अपनी निजी क्षमताओं,सामर्थ्य, बुद्धि बल और पुरूषार्थ पर वैसा ही भरोसा एवं अहंकार रहा होग़ा जितना प्रभु की कृपा  से सद्गति पाने से पूर्व कदाचित पौराणिक काल मे गजराज को, त्रेता मे रावण को और द्वापर मे कंस और दुर्योधन को होगा ! प्रियजन! ऎसी स्थिति मे ही तो प्रभु का अवतरण होता है ! वह उन जैसे  निर्गुनियों को सुगति / सुमति प्रदान करने नंगे पाँव ही भाग कर आ जाते हैं !

विमान के उस पिचके हुए चक्के का ध्यान आते ही मन मे यह प्रश्न उठा ,क्या हमारी भी रक्षा करने "वह" आयेंगे ?  गजराज ने सरोवर में तैरता एक पुष्प अर्पण कर के उन्हें पुकारा था ,रावण और कंस  ने शत्रु भाव से ही सही उन्हें याद तो किया था ! प्रियजनों! सोचकर देखो क़ी ह्मने उनकी कौन सी ऎसी सेवा की है क़ी वह हमारी सहायता करें ?चलिए तुलसी का वह चमत्कारी दोहा याद करें जिसको सुन कर ह्म घर से निकले थे और जिसे ह्म उस विषम परिस्थिति में विमान पर बैठे बैठे ,अनेकों बार दुहरा रहे थे !उसकी प्रथम पंक्ति है 
"राम लखन कौसिक सहित सुमिरो करो पयान "  ह्मारे प्रश्न का उत्तर इसी में निहित है!उत्तर है क़ि - सुमिरो - स्मरण करो अपने इष्ट को (चाहे जिस नाम से उसे पुकारते हों ) सुमिरो अपने गुरुजन को (चाहे वह जो भी हों ) और फिर केवल मंगल ही मंगल होगा ! 
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प्रियजन आप सोच रहे होंगे क़ी अंततः वह विमान उड़ा क़ि नहीं? और उड़ा भी तो उसका हश्र क्या हुआ ! तो सुनिए-रनवे पर निर्धारित दौड़ लगा कर विमान ,क्या कहते हैं उसे- "एयर बोर्न" हो गया ! सह्यात्रीयों ने तालियाँ बजा कर अपनी प्रसन्नता दर्शायी और फिर "He is a jolly good fellow , He is a jolly good fellow" गा गा कर हमे लन्दन के अपने विद्या अध्ययन  काल क़ी याद दिला दी जब कोच पर केम्ब्रिज ऑक्सफोर्ड क़ी सैर करने जाने पर कोच के ड्राईवर को "जोली गुड फेलो"कह कह कर विद्यार्थी ग्ण थोड़ी बहुत मनमानी कर लेते थे !  हाँ यहाँ वायु यान मे सहयात्रिओं के उस कोरस र्संगीत से हमे तो बड़ा लाभ हुआ !कम से कम उतनी देर के लिए ह्मारे कान विमान के बाहरी गम्भीर गर्जन और उसके भीतरी अंजर पंजर और ढीले ढाले पूजों से निकलने वाली भयंकर खडखडाहट सुनने की  सज़ा से ह्म कुछ देर को बच गये !

जहाज़ उड़ता रहा और लगभग घंटे भर मे हमे आकाश से ही वह नगर जहां हमें पहुचना था दिखायी भी देने लगा! अपनी खिडकी से ही हमे थोड़ी दूरी पर जंगलों के बीच एक धुंधली पगडंडी भी नजर आ रही थी जिसे सहयात्री उस एयर पोर्ट का रनवे बता रहे थे !

ह्म मन ही मन भगवान को धन्यवाद दे रहे थे क़ि हमारी यात्रा का सुखद अंत हो रहा था क़ि ह्मारे कप्तान साहेब की आवाज़ विमान  के पब्लिक एडरेस सिस्टम पर सुनायी पड़ी , वह बहुत घबराये हुए स्वर मे एलान कर रहे थे "Comrades ! We have arrived our destination and shall be landing in a few minutes but there being some problems in the aircraft we have to make an emergency landing.The air port is fully prepared to receive us.Kindly keep your seat belts fastened and do not panic. Thank you "

तब तक एयर पोर्ट और साफ़ नजर आने लगा था ! विमान की रफ्तार शून्य सी थी !वह बहुत धीरे धीरे उस कच्चे रनवे पर उतरने का प्रयास कर रहा था! उस छोटे से एयर पोर्ट मे रेड क्रोस के एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ घंटा और सायरन बजाते हुए बेतहासा इधर उधर दौड़ रहीं थीं !  ह्म क्या सोच रहे थे ,प्रियजन कुछ आपभी तो सोचो !

क्रमशः 
निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"


गुरुवार, 23 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 169

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 

मैं विमान की कुर्सी पर बेल्ट बांधे अपनी दोनों आँखे बंद किये इष्टदेव को मनाता रहा !थोड़ी देर में यान के एनजिन चालू हो गये. प्रोपेलर घूमने लगे और वायुयान उसी तरह हिलता डुलता  नाना प्रकार की आवाजें करता हुआ अपनी लड्खडाती टेढ़ी चाल से रनवे पर सरकने लगा ! मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं पिछली शताब्दी के १९३०-४0 वर्षों मे छोटी लाइन की रेलगाड़ी (B&NWR) के सुरेमनपुर स्टेशन से अपने पुश्तैनी गाँव बाजिदपुर तक की यात्रा अपनी खानदानी खटारा घोड़ागाड़ी से कर रहा हूँ ! 

इस बीच मेरे मन में श्री हनुमान चालीसा का पाठ चलता रहा और मैंने कितनी ही बार यात्रा का सगुन बनाने के लिए बुजुर्गों से सुना हुआ संत  तुलसी का वह दोहा गुनगुनाया जो ह्मारे पूर्वज ह्म बच्चों को आशीर्वाद स्वरुप हमारी यात्राओं  की सफलता की कामना करते हुए प्रस्थान से पहले एक सिद्ध मंत्र की तरह बोलते थे ! वह दोहा था :-


राम लखन कौशिक सहित   सुमिरौ  करो पयान!
लच्छि लाभ जय जगत यश मंगल सगुन प्रमान!!


आधुनिक जेट विमानों पर सफर कर चुके यात्रिओं को उस मालवाहक डकोटा पर सफर करने मे कैसा लग रहा होगा आप समझ रहे होंगे! प्रियजन जरा आप मेरी दशा भी  सोचिए मैंने तो वह डिफ्लेट हो रहा पहिया भी देखा था! मेरा हाल बेहाल हो रहा था ! 


"Should I confess ? Dear Swajans!  At that time I was much younger. Till then my FAITH in GODs GRACE and KINDNESS  had  not grown so strong as it is now."


अब कल देखियेगा आगे क्या हुआ !


निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"





बुधवार, 22 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.23,'10)


सब हनुमत कृपा से ह़ी क्यों ?
गतांक से आगे 

विमान के चालक महोदय ने ट्रेक्टर के हट जाने के बाद जहाज़ के इंजिन चालू करने की दो चार कोशिशे कीं ! उन्हें सफलता मिली केवल इतनी ही क़ि इंजिन से भयंकर चीत्कार के स्वर निकले ,विमान की विशाल काया पहले तो जूडी(मलेरिया) से पीड़ित रोगी के समान कम्पायमान हुई और फिर प्राणहीन पिंजर क़ी  तरह शांत हो गयी ! इधर बाहर बून्दाबून्दी चालू हो गयी थी  ! मौसम पीने पिलाने वाला हो गया !फिर क्या था ,साकी था सागर था पैमाना था मौसम भी था और दीवाने भी थे ! मैखाना चल गया तो चलता ही रहा !

Dear ones ! I did wish to elaborate further on the above BUT it seems HE my इष्ट my LORD does not want that. HE has whispered  in my ears " Sonny! When your own people indulge in such disgraceful acts U have no right to comment on others" 

ठीक ही तो कहा "उन्होंने" ह्म कौन दूध के धुले हैं ? ,ह्म़ारे  सरकारी अधिकारी भी तो ऎसी हरकतें करते हैं. तभी तो स्टेडियम की फाल्स सीलिंग फिक्स होने के साथ ही गिर जाती है "फुटब्रिज" इनागुरेष्ण के कुछ दिन पहले एक लोहे के पिन की कमजोरी के कारण भसक जाता है और उच्चाधिकारी यह कह कर पल्ला झाड लेते हैं क़ी "वो पुल विदेशियों के लिए नही बल्कि भारत के (निरधन और असहाय )नागरिकों के लिए था"(जो अपनी टयोटा वहाँ  पार्क कर के नेहरु स्टेडियम मे प्रवेश करते ,उस दस करोड़ के "फुटब्रिज" पर चल कर) !देखा आपने कितनी मेहरबान है दिल्ली सरकार भारत की गरीब जनता पर ! 

प्रियजन !ये न सोचिये क़ी मैं उपासना से हट कर राजनीति की ओर झुक रहा हूँ.! भाई आप तो जानते ही हैं क़ी मैं स्वयम से ,अपनों से और "सो काल्ड" परायों से भी बराबर प्रेम करता हूं !(कम  से  कम  उसका  नाटक  तो  करता  ही  हूँ ) और  सबसे अधिक मैं अपनी दिवंगत माँ ,गुरुजन और भारत माता को प्यार करता हूँ.! मुझसे नहीं देखा जाता ,मुझे नहीं बर्दास्त होता यह सब ,इससे भडक उठता हूँ कभी कभी ! महापुरुषों ने कहा है क़ी यह भी भक्ति है !सो मैं भक्ति ही कर रहा हूँ !आप भी TRY कर के देखें ,वही मजा आयेगा !

निज अनुभव तो रह ही गया ! अगले अंक मे पढ़ लीजिएगा !
निवेदक:- व्ही, एन. श्रीवास्तव "भोला"

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.22.'10)

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ? 
निज अनुभव
गतांक से आगे 

घर से नित्य की भांति परिजनों के समवेत स्वरों में  " प्रबिस नगर कीजे सब काज़ा, हृदय राखि कोसलपुर राजा" का गायन सुन कर निकला था तथा दैनिक "हनुमानचालीसा" पाठ की टेक "ह्म़ारे राम जी से राम राम राम कहियो जी हनुमान"के स्पष्ट बोल तब भी मेरे कान में तरंगित हो रहे थे ! उधर हेंगर से तैमूरलंग के समान डेढ़ टांग से लंगडाते हुए वह भीम काय डकोटा विमान  खटर-पटर करते हुए ह्म़ारे सन्मुख खड़ा कर दिया गया ! उसका रंग रूप और उसकी जर्जर चरमराती काया को देख कर मुझे पूरा विश्वास हो गया क़ी या तो यह उडन खटोला वहाँ से उड़ ही नहीं  पायेगा और यदि इत्तेफाक से उड़ भी गया तो हमें  जहाँ उतारेगा उसका निश्चय केवल पवनपुत्र हनुमान जी ही करेंगे!


प्रतीक्षालय में  सवारियों से दुआ सलाम में  पता चला क़ी प्रत्येक पुरुष अफसर की लेडी P.A.अपने बॉस   के साथ यात्रा कर रही हैं और दोनों मिनिस्टर अपनी पत्नियाँ के साथ हनी मून पर जाते जान पड़े ! मुझे तो बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे लंकेश रावण अपने परिवार सहित  पुष्पक बिमान से कहीं पिकनिक पर जा रहा है!


यहाँ उस विमान पर चढ़ते समय मेरी दृष्टि अनायास ही उसके लंगडाते चरणों (पहियों) पर पड़ गयी!  विश्वास करिये ,उस क्षण मेरे ही चरण डगमगाने लगे ! मुझे ऐसा लगा जैसे वह हालाडोले वाली सीढ़ी मेरे पैरों तले से खिसकी जा रही है! मैंने क्या देखा ? विमान एक  ओर झुका हुआ है और उस ओर के पहिये में हवा का दबाव दूसरे पहिये से बहुत कम है !यह निश्चय कर के क़ि जैसे ही कोई विमान कर्मचारी दिखाई देगा उसे बता दूंगा मैं विमान की एक खाली कुर्सी पर बैठ गया !


जहाज़ के कप्तान साहेब आये तो,पर दरवाज़ा बंद करते करते केवल हाय हेलो पुकारते हुए कौक  पिट मे घुस गये !थोड़ी देर में स्वयम बाहर आकर यात्रिओं का स्वागत करते हुए उस यान के सामरिक इतिहास से हमें   अवगत कराया ! यह भी बताया क़ि कैसे १९४५ तक रोयल एयर फ़ोर्स में  अपना शौर्य प्रदर्शन करने के बाद लगभग २५ वर्षों तक अन्य मित्र देशों की सेवा कर के वह विमान अब इस देश की सेवा कर रहा था. उन्होंने अपना प्रवचन यह वाक्य कह कर समाप्त किया -  "Despite its age this war veteran has never failed its masters .So best of luck to us all."और वह पुनः अपने कोक पिट में  घुस गये.


मैं चुपचाप अपनी सीट पर बेल्ट बाँध कर बैठ गया ! आप अंदाज़ा लगा सकते हैं क़ि मैं  उस समय क्या सोच रहा हूँगा ! उस फ्लैट होते हुए टायर को देखने के बाद ,मेरे पास सिवाय  अपने इष्ट देव को याद करने के और क्या काम हो सकता था !मैं शांति पूर्वक मन हि मन "सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामय नमः"का जाप करने लगा !आप  चिंतित न होना ,यदि कुछ हुआ भी तो मुझे कुछ नहीं होग़ा !आप तो जानते ही हैं :-


जब जानकी नाथ सहाय करे तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो
जाकी सहाय करे करुणानिधि ताके जगत मे भाग बडोरे
रघुबंसी  संतन  सुखदायी  तुलसीदास  चरनन को चेरो 


शेष कल ,
निवेदक :व्ही .एन श्रीवास्तव "भोला"

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.21,'10)

सब "हनुमत कृपा" से ही क्यों? 
निज अनुभव  
सब हनुमत कृपा से ही क्यो ?
चलिये आपके उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करे। आपको बता ही चुका हू ,श्री हनुमान जी से ह्मारे परिवार का शताब्दियो पुराना सम्बन्ध है।  हमारे पूर्वजो पर पुरातन काल मे और हम सब् पर आज तक भी श्री हनुमान जी अनवरत अपनी कृपा वर्षा कर रहे हैं ।
अभी अभी मन ने निश्चित किया कि परिवार् मे और किसी के बजाय ,मै हनुमत् कृपा के निजी अनुभव ही आप को सुनाऊ और इसके साथ् ये प्रेरणा भी हुई कि सबसे पहले अपने जीवन के मध्य काल का कोई अनुभव पेश करू।तो चलिये २००८ के अनुभव सुन लेने के बाद थोडा पीछे चले और अब १९७५-७६ (लगभग ३०-३५ वर्ष पीछे) का एक अनुभव सुने।
 एक मध्य रात्रि मेरे पास भारत के राजदूत महोदय का फ़ोन् आया कि किसी आवश्यक कार्य के लिये मुझे अगली सुबह् ही  उस देश के मन्त्री के साथ् सुदूर दक्षिण के एक प्रदेश मे टूर पर जाना है।
रात  भर इसी सोच मे पड़ा रहा क़ी कदाचित जिस आवश्यक कार्य के लिए मुझे इतनी शोर्ट नोटिस दे  कर मंत्री महोदय के साथ सुदूर प्रदेश के दौरे पर भेजा जा रहा है ,दोनों ही राष्ट्रों के हित मे किसी महत्वपूर्ण सामरिक स्तर की समस्या को  हल करने के लिए होगा! . 

जैसे तैसे रात कटी! नित्य प्रति के निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रातकालीन प्रार्थना पूरे  परिवार ने एक साथ की! ह्म सब ने मिलजुल कर ,संकट मोचन श्री हनुमान जी की सेवा मे पुरज़ोर आवाज़ मे अपनी अर्जी लगा दी!  हमारी मांग केवल इतनी सी थी- "हमें ऎसी बुद्धि और शक्ति दो क़ी हम ,अपना कर्तव्यपालन ,लगन उत्साह और प्रसन्न चित्त से अथक करते रहे! हमसे कोई ऐसा कर्म न हो जिसमे ह्मारे विवेक का विरोध हो "
बच्चों को स्कूल पहुचाने लेआने की व्यवस्था पड़ोसियों के सहयोग से हो गयी!चिन्त्मुक्त हो कर मैं वहाँ के सैनिक हवाई अड्डे पर पहुच गया! अन्डर डेवेलपड देश था ,कुछ  वर्ष पहले ही स्वतंत्र हुए थे ! अभी उस देश की वायु सेना का समुचित गठन ही नही हुआ था ! किसी विकसित देश से ,विश्व युद्ध दोयम का एक टूटा फूटा माल वाहक विमान दान मे मिला था ! मिनिस्टर  साहब ने बताया क़ी हमे आज वही जर्जर विमान अपनी यात्रा पर ले जाने वाला था ! उस विमान मे वहाँ  के एक मंत्री एक गवर्नर और अनेक उच्च अधिकारी  मेरे साथ यात्रा करने वाले थे ,डरने की कोई बात न थी !अस्तु मैं निर्भय था !


लेकिन थोड़ी देर में ,एक ट्रेक्टर के द्वारा खिंच कर हेंगर से बाहर होता हुआ विमान देखते  ही हमारा माथा ठनक गया! ऐसा लगा जैसे वह विमान अभी मैदाने जंग से लौटा हो !अभी तक वह अपने सामरिक रंग रूप का ही था ! उसकी चाल देख कर ऐसा लगता था जैसे कोई घायल सैनिक लंगाडाता हुआ "रन वे" पर "वाकर" के सहारे चल रहा हो ! 


आज इतना ही ,शेष कल 
निवेदक :-व्ही . एन. श्रीवास्तव  "भोला"
.

रविवार, 19 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.20,10)



सब हनुमत् कृपा से ही क्यों ? 
गतान्क से आगे




सूरदासजी का एकअति भाव भरा पद है 
जिसे हम सब हरबंसभवन, बलिया (यू पी) कानपुर शाखा के इत उत,देश विदेश मे बिखरे हुए रत्न सरीखे वन्शज पिछले कितने दशको से आज तक अत्यन्त श्रद्धा के साथ गाते आ रहे है। यह पद हमें इसलिये प्रिय है क्योंकि इस पद मे  हमारी वास्तविक मनः    स्थिति व्यक्त है कि श्री हनुमत् जी की कृपाके अलावा 
जीवन मे हमारा कोई अन्य अवलम्ब है ही नहीं।   
आप भी सुनिये :-

तुम तजि और कौन पै जाऊ !
काके द्वार जाय सिर नाऊँ ,पर हाथ कहां  बिकाऊँ !!
(Where else can we go ,if you discard us -O Lord !,We see no other door to knock and no buyer capable to buy us.) 

ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊँ ! 
अन्त काल तुमिरो सुमिरन गति अनत कहूँ नहि पाऊँ!!
(Tell me O Lord! Who else is as generous as you are to quench our thirst of desires, specially the one to attain salvation ? while we know we can get मोक्ष simply by uttering your NAME once only before our soul moves out of our mortal body )

भव सागर अति देख भयानक मन में अधिक डेराऊँ! 
कीजे कृपा सुमिर अपनो पन "सूरदास" बलिजाऊं!!
(Looking to the fierce and turbulant ocean of life we are very scared and we pray that ,O Savior Lord ! Do Recall Your words "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत " Please  Be kind & Merciful on SURDAS who has surrendered himself wholly to YOUR HOLY FEET.)

वहा हरबंस भवन बलिया मे नित्य प्रातः काल हमारे परिवार का कोई न कोई सदस्य श्री महाबीर जी की ध्वजा के नीचे विधिपूर्वक हनुमान जी की आराधना करता है और या तो स्वयं जोर जोर से श्री हनुमान चालीसा का पाठ करता है या ज़ोरदार आवाज़ के साथ चालीसा का टेप या ग्रामाफोंन रेकोर्ड बजाता है जिसके स्वर हरबंस भवन मे चौबीसों घंटे गूंजते रहते  है और वहा के निवासियों को धर्मयुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देते है! 

परिवार के अन्य केन्द्रों (कानपुर ,इलाहाबाद,मैनपुरी और आजकल तो मुम्बयी ,दिल्ली , चेन्नयी ,नोयडा ,दुबई, हंगरी और यहाँ यू.एस.ए. में मेसेच्युटिस्ट के बोस्टन - ब्रूकलाइन और एंडोवर  मे भी हमारे परिवार के सभी स्वजन श्री हनुमान जी की अहेतुकी कृपा के संबल से ही जीवन का आनंद लूट रहे है! हमे पूरा विश्वास है क़ी सब केन्द्रों मे श्री हनुमान चालीसा का पाठ उतने ही उत्साह और विश्वास के साथ नित्य प्रति होता होगा !  

प्रियजन, यह न सोचिये क़ी मैं अपनी मर्जी से निज अनुभव की कहानी सुनाने मे विलम्ब कर रहा हूँ ! मैं तो उनकी मर्ज़ी से चल रहा हूं अपनी शिकायत उनसे ही करिए! 
मुझे क्षमा करें. कल जो लिखाएंगे लिख दूँगा 


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.19,'10)

सब हनुमत कृपा से ही क्यो ?
चलिये आपके उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करे। आपको बता ही चुका हू ,श्री हनुमान जी से ह्मारे परिवार का शताब्दियो पुराना सम्बन्ध है।  हमारे पूर्वजो पर पुरातन काल मे और हम सब् पर आज तक भी श्री हनुमान जी अनवरत अपनी कृपा वर्षा कर रहे हैं ।

निज अनुभव
अभी अभी मन ने निश्चित किया कि परिवार् मे और किसी के बजाय ,मै हनुमत् कृपा के निजी अनुभव ही आप को सुनाऊ और इसके साथ् ये प्रेरणा भी हुई कि सबसे पहले अपने जीवन के मध्य काल का कोई अनुभव पेश करू।
तो चलिये २००८ के अनुभव सुन लेने के बाद थोडा पीछे चले और अब १९७५-७६ (लगभग ३०-३५ वर्ष पीछे) का एक अनुभव सुने।प्रियजन जैसा मै पह्ले बता चुका हू क़ी तब मैं विदेश मे पोस्टेड था 
एक मध्य रात्रि मेरे पास उस देश मे भारत के राजदूत महोदय का फ़ोन् आया कि किसी आवश्यक कार्य के लिये मुझे अगली सुबह् ही  उस देश के मन्त्री के साथ् सुदूर दक्षिण के एक प्रदेश मे टूर पर जाना है।हाई कमिशनर साहेब् ने काम की अहमियत समझाते हुए उस देश के राष्ट्रपति के साथ् अपने देश के प्रमुख अधिकारियों की कथित घनिष्ठता पर भी अपूर्व  प्रकाश डाला और यहाँ तक बताया यह टूर इनफेक्ट उनको करना था और मेरे लिए ये बड़े इज्ज़त की बात थी क़ी मुझे  यह काम करने का सुनहरा अवसर मिल रहा था ! कहानी  लम्बी है ! आज इतना ही !

निवेदक:- व्ही . एन. श्रीवास्तव  "भोला"

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep18,' 10)

 - श्रुति - दर्शन 
प्रियजनों ! मैने अपनी हर सांसारिक और आध्यात्मिक उपलब्धि को "हनुमत कृपा" की संज्ञा क्यो दी ? मैने संदेशो की यह नयी श्रंखला कल से ही चालू की है और मैं आगे बढनेके लिये अपने इष्ट की हरी  झन्डी और उनकी ओर से नूतन प्रेरणा पाने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ !इसबीच मुझे एक महात्मा की वाणी सहसा ही सुनायी  दी
यह महापुरुष ,अस्पतालमें ,अचेत अवस्था  में  मेरी बंद आँखो को जो 'दिव्य -प्रकाश'    "दीखा  था और मेरे कानों को जिस सुमधुर "श्रुति" का श्रवण हुआ था ,बिलकुल कुछ  वैसे ही अनुभवों के विषय में  आध्यामिक प्रवचन दे रहे थे।उन्होने कहा कि संसार में  असंख्य साधको ने ध्यानावस्था में  ऐसे सुन्दर प्रकाश पुन्ज के दर्शन किये है। लाखों ने ही ऐसे -बिल्कुल सफ़ेद,चान्दी की तरह चमकीले , आँखो को चकाचौंध कर देने वाले रोशनी के गोले देखे हैं !
उन्होंने बताया क़ि किसी अमेरिकन आध्यात्मिक विषयों के शोध कर्ता ने अनेको ऐसे अनुभवी साधको से साक्षात्कार किया जिन्हें ध्यानावस्था में ऐसा प्रकाश दिखायी दिया था ! उन्होंने यह देखा कि उन साधको में  से लगभग पचास प्रतिशत ऐसे थे जो प्रकाश के उस दिव्य सौन्दर्य से ऐसे सम्मोहित हुए कि उस पर से नज़र हटा पाना उनके लिये मृत्यु को आलिंगन करने जैसा लगा।  उस सुन्दर दृश्य को वह किसी भी कीमत पर अपनी आँखो से दूर नहीं  करना चाहते थे।
प्रियजन ! अचेतन अवस्था में  वह आद्वतीय सुन्दरता देखने के बाद मै भी इतना संम्मोहित हो गया था कि उस निन्द्रा से जागना ही नहीं  चाहता था।मेरा अन्तर जिस परमानन्द का रसास्वादन कर रहा था ,उसके आगे स्थूल जगत का रूप इतना फ़ीका और रसहीन लग रहा था कि उसकी ओर देखने को भी जी नहीं  चाहता था! उससे किसी प्रकार की आनन्द प्राप्ति की आशा रखने का तो कोई सवाल ही नहीं   !


उन महापुरुष ने ये भी बताया कि उस अमरीकी शोधकर्ता के अनुसार उन पचास प्रतिशत अनुभवी साधको में  से बीस प्रतिशत ऐसे थे जिनका जीवन दर्शन ,उस अद्भुत "ज्योति - श्रुति -अनुभव"  के बाद बिल्कुल ही बदल गया। उनकी चाल ढाल,उनका रहन सहन,उनका काम काज - व्यवसाय, उनका खान पान सब कुछ  ही बदल गया। मुझे 
भी याद आ रहा है कि अचेतावस्था के उस अनुभव के बाद जब मैं उठा तो मुझे  ऐसा लगा जैसे मै अब वह व्यक्ति ही नहीं  हूँ जो मैं रुग्नावस्था से पहले था। 
द्वार् बन्द हो जाने के कारण मै "परम-धाम" में  प्रवेश नहीं  कर पाया और ,"उनके" कहे अनुसार यात्रा समाप्त करते करते मैं,पुनः यात्रा शुरू करने को मजबूर हो गया! मैंस्वस्थ   हो जाने के बाद ,बहुत दिनो तक अपने स्वजनो  से  कहता रहा कि " "परमधाम" के स्वामी "उन्होने" मुझे द्वार से ही वापस कर दिया पर यह नहीं बताया क़ि मेरे  नये जीवन मे अब "वह" मुझसे नया क्या करवाना चाहते हैं?"" 
प्रियजन ! आज उन महापुरुष के प्रवचन से ज्ञान प्राप्त करके मैने जो लिखा उसे अपने इष्टदेव से मिली "प्रेरणा" ही मानता हूँ । हाँ एक बात और है , मै उस अमरीकी शोधकर्ता के उन दस प्रतिशत अनुभवी साधको में  शामिल हो गया हूँ जिनका जीवन उस विलक्षन "ज्योति-श्रुति" दर्शन के बाद एकदम बदल गया ! कदाचित् आपको भी मेरे जीवन का यह् बदलाव नज़र आया होगा।