मंगलवार, 1 जून 2010

हरबंस भवन का इतिहास

गतन्क से आगे:
बाबा दादी की तीरथ यात्रा :
श्री हनुमान जी द्वारा मार्ग दर्शन

जी मे आ रहा है कि यात्रा मे आगे चलने से पहले आपको "हरबन्स भवन" के निवासी "हरिवंश" के विषय मे कुछः कहूँ । शताब्दियो पहले एक खेतिहर परिवार किसी श्रीनगर नामक स्थान से विस्थापित होकर बलिया के परगना " दोआब " - दीय्रर में  (जो तब यू पी प्रोविन्स के गाजीपूर ज़िले मे पडता था) आकर बसा।

पूर्वज सभी राम भक्त रहे होंगे, तभी तो हमारे पूर्वजो के नामो मे " हरि नाम , राम नाम " का भरपूर समावेश था। हमारे वंशवृक्ष मे मुझ से १० पीढी पहले के बाबाजी का नाम "लाला राम", उसके बाद ९ वी का "मनसा राम", इसी प्रकार "राम प्रसाद दास" , "राम हित दास" आदि नामो के बाद, उनके  पुत्रो मे "श्री हरबन्स सहाय" और "श्री गोपाल सरन लाल" के नाम उल्लेखनीय हैं, जिनके पुत्र "हरिहर प्रसाद" और भतीजे "बदरी नाथ" ने अपने पिता / चाचा "श्री हरबंस सहाय जी" की पुण्य स्मृति में "हरबंस भवन" का निर्माण और नामकरण करवाया।

यह लम्बी नामावली आपको यह विश्वास दिलाने के लिये दी कि हमारे जीवन मे "नाम" का कितना महत्व है। केवल "अजामिल" जैसा पापी ही नहीं वरन हमारे जैसे अपराधी भी केवल अपने बाल बच्चो का "नाम" ही प्रेम सहित पुकार कर भव सागर सुगमता से पार कर सकते हैं।

"हरबन्स भवन" केनिर्माण का इतिहास अकारण नही बताया। पितामह बाबा राम हित लाल के सुपुत्र हरवन्श सहाय और गोपाल शरण लाल,  दोनो ही, अपने पिता राम हित लाल के समान ही उत्तम गृहस्थ भक्त थे। प्रभु के प्रेमी तो थे ही उनके हृदय मे संसार के अन्य प्राणियो के प्रति अपार करुणा और प्रेम भरा था।

संयोगवश अनुज गोपालसरन का देहान्त कच्ची उम्र मे ही हो गया । लगभग ५०-६० प्राणियों से भरेपूरे परिवार की परवरिश का सारा भार बडे भाई हरवन्श सहाय के कन्धो पर आ गया। पितामह बाबा रामहित लाल जी  काम काज से अवकाश ले चुके थे. ज़्यादा समय पूजा पाठः मे लगाते थे। लेकिन एक काम वह आजीवन कभी न भूले ।  वह था - रात्रि का भोजन पाने से पहले नित्य प्रति घोड़े पर सवार हो पूरे गाँव का चक्कर लगाना और गाँव मे सभी की कुशलता जानना, विशेष कर ये जानना कि सबने भर पेट खाना खाया या नहीं.  सब की कुशलता जानने के बाद ही वह भोजन पाते थे । प्रेम- भक्ति की यही पद्धिति उनके पुत्र हरवन्श जी ने अपनायी थी ।

हनुमान जी की विशेष कृपा इस परिवार पर क्यो थी, यह तो आपको उपरोक्त वर्णन से पता चल ही गया होगा। उस समय (१८५०-१९०० ईसवी) के इस परिवार के मुखिया- पितामह बाबा रामहित लाल जी की अति महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा के विषय मे ही यह लेख है। श्री हनुमान जी ने किस प्रकार बाबा दादी जी की इस यात्रा में  उनका मार्ग दर्शन किया कल परसों तक आपको पता चल जायेगा .


क्रमश :

निवेदन : व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"

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