रविवार, 6 जून 2010

तीर्थ यात्रा का अन्तिम मुकाम

गतान्क से आगे

श्री हनुमानजी की कृपा से प्रेरित
पितामह बाबा जी की तीर्थ यात्रा

आप की उत्सुकता का अन्दाज़ा हमे है आप शीघ्रातिशीघ्र जानना चाहते हैं कि आगे ऐसा क्या हुआ जिसमे हमें  महावीर जी के परंम भक्त हमारे पितामह पर हनुमान जी की किसी विशेष कृपा का दर्शन हो रहा था । बात ऐसी है कि मै स्वयं अगली बात बताने से पहले साहस बटोर लेना चाहता हूँ,  आगे की कथा कुछ ऐसी ही है.

स्टेशन से परदे वाली सवारी पहिले आयी। नियमानुसार वो ज़नानखाने के दरवाज़े पर कोठी के पिछले भाग मे लागायी गयी। अपनी ईया (दादी माँ) से हमने सुना है कि दादी माँ के उतरते ही ज़नाने दालान मे जैसे कोहरांम सा मच गया । औरतो के रोने की आवाज़ दूरदूर तक सुनायी दे रही थी।बाहर का सब जन समुदाय सुन्न हो गया था ।

तब् तक मेनेज्रर मिसिर जी भी माल असबाब लिये स्टेशन से आगये । बाहर बारामदे मे उनके साथ बहुत से टोळे मोहल्ले के लोग जमा हो गये। इस बीच दोनो बेटे हरबन्स बाबू और गोपाल सरन जो काम काज से कही बाहर गये थे वापस आये । दूर से ही मिसिर जी को राम राम कह् कर दोनो ने घर के अन्दर प्रवेश किया। दोनो ही जल्दी से जल्दी बाबू जी (पितामह बाबाजी) और अम्मा ( दादीमाँ ) को प्रणाम करना चाहते थे, जो वह विगत दो महीनो से नही कर पाये थे । वह उनसे इस यात्रा का पूरा विवरण भी सुनना चाहते थे ।

आगन का नज़ारा बहुत ही दर्दनाक था । उनके आते ही दादी माँ ज़ोर से सिसक सिसक कर रोने लगी। दोनो को उन्होने गले से लगाया और विलाप करती हुई बोली "ए बाबू तोहार बाबुजी त चल गैले। हम सब के अनाथ करि गैले। अब त कुल तोहरे कन्धा पर बा। तोहरे के सम्हारे के बा।" इतना कह् कर दादी माँ बेहोश हो गयी । बेहोशी मे उनकी बन्द हथेली मे थी बाबाजी के निजी तिजोरी की चाभी .

होश आने पर दादी जी ने चाचा और सभी बच्चो को पास बुलाया । चाभी उन्हे दे कर दादी जी ने कहा - "तिजोरिया मे बाबुजी कुल कागज पत्तर रख देले बारे । घबरा मत महाबीर जी जोन करिहे आच्च्हा ही करीहे"

देखा आपने विश्वासी व्यक्ति सकट मे भी भरोसा नही तजता । आगे की कथा से आपका - हमारा दोनो का ही विश्वास और दृढ होगा इस आशा के साथ ....



--निवेदन :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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