गुरुवार, 3 जून 2010

परहित सरिस धरम नहि भाई

बाबाजी की तीर्थ यात्रा
हनुमानजी द्वारा मार्ग दर्शन


परहित सरिस धरम नहि भाई

तुलसी - मानस की इस अर्धाली मे बतायी "धर्म" की परिभाषा को चरितार्थ करते हुए पितामह बाबाने अपना पूरा जीवन् जिया। गांव के हर घर मे जब तक चूल्हा नही जला उन्होने स्वयम् भोजन नही किया। उनकी प्रजा कभी भूखी न सोयी । उन्होने एक मात्र यही धर्म निभाया।यही उनकी पूजा थी, यही आराधना l

ऐसे धर्म परायण व्यक्ति पर उनके कुल- देवता हनुमान जी तो अवश्य ही प्रसन्न होंगे. महावीर जी, जो स्वयम् पूर्णतः समर्पित हैं सदा सदा ,समस्त मानवता के कल्याण हेतु, वह क्यो उनके जैसे ही भक्त को अपनी कृपा दृष्टि से वन्चित रखेंगे ?

अस्तु यात्रा प्रारम्भ करने से पहले बाबा जी ने सपरिवार जो प्रार्थना की थी वह क्या अनसुनी रही होगी? कदापि नही ,महाबली हनुमान जी ने अवश्य ही उन्हे अपने आशीर्वाद से नवाज़ा होगा।क्या रहा होगा वह आशीर्वाद? क्या केवल मार्ग दर्शन अथवा कुछ और? , चलिये आगे पता चल ही जायेगा .

लगभग चार सप्ताह बीत गये, बाबा जी की यात्रा के विषय मे कोई समाचार नही मिला।सब जानते थे इतनी जल्दी कोई खबर नही मिल सकती । फिर भी चिन्ता करना मानव का जन्म सिद्ध अधिकार मान कर , केवल घर वाले ही नही वरन सभी गाँव वाले भी बाबाजी की चिन्ता कर रहे थे। गाव के नन्हे नन्हे बालक अपनी माँ से रात मे पूछते "ए माई, घोड़ा वाला बाबा कहा चल गैले , कब अइ ह्इ ?"

फिर एक दिन एक कार्ड आया, इस शुभ समाचार के साथ कि यात्री श्री गंगासागर पहुँच गये, वहाँ सागर मे स्नान किया और विधिवत पितरो का तर्पण भी कर लिया। एक गन्गाजली मे गंगा सागर का पवित्र जल भी भर लिया है । अब चारों यात्री श्री जगन्नाथ पुरी की ओर प्रस्थान करने वाले हैं। सबकी कुशलता का समाचार जान कर सारा परिवार या यूँ कहिये सारा गाँव ही खुश हो गया । पर इसके बाद बहुत दिनो तक कोई समाचार नही मिला ।

आँगन के महाबीरी ध्वजा के नीचे रोज़ रोज़ की पूजा , हनुमानचालीसा का पाठ और साप्ताहिक सत्य नारायण व्रत कथा विधिवत होती रही । सब् प्रियजन अगले समाचार की प्रतीक्षा मे रहे । और एक दिन किसी ने समाचार दिया कि यात्रीगण वापिस आ रहे हैं ।

शेष कल....

निवेदक- व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"

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