सोमवार, 14 जून 2010

journey from FAITH to SURRENDER




विश्वास से समर्पण तक
पितामह की परमधाम यात्रा 

प्रपितामह की तीर्थ यात्रा की कथा ,अटल विशवास से समग्र समर्पण तक पहुँचने  की कथा है .मानव जन्म का लक्ष्य है- श्रीहरी के श्री चरणों का आश्रय लेना (श्रीमद भागवत अध्याय ७/६२ ) उन्हें  अपने इष्ट हनुमान जी की प्रेरणा से श्री जगन्नथजी के श्री चरणों में परम विश्राम प्राप्त हुआ. उन्हें अटल विश्वास था क़ी अजनबी आगंतुक कोई और नहीं  उनके इष्ट देव हनुमानजी ही थे.इसी कारण उनकी रहस्यमयी भविष्य वाणी सुन  कर वह न तो आवेश में आये ,न उनको अपशब्द कहे,न उनकी अवज्ञा की बल्कि उनकी  वाणी को देव वाणी ही मान लिया और अपनी जगन्नाथ पुरी क़ी परम धाम गमन यात्रा सपत्नीक की.सच तो यही है क़ी अपने इष्ट की दया दृष्टि भी ईशकृपा से ही मिलती है--  

                         
                             संत विसुद्ध मिलहिं पर तेही     
                             चितवहिं रामकृपा करि जेहीं

कब किस रूप में,कहाँ और कैसे जीवन की महा यात्रा अंतिम विश्राम लेगी यह तो कोई नह़ी जानता.तत्व की बात यह है क़ी  .विश्वास से निर्भयता आती है,धैर्य रखना आता है आत्म शक्ति प्रबुद्ध होती है,मानसिक संतुलन बना रहता है और अंततः चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है.विश्वास प्रभु क़ी कृपा से  ही अचल  रहता .है  सच्चा भगत  सदैव अपने इष्ट देव के आश्रित ही रहता है.सत्कर्म और सत्संग से वह परमात्मा के परमधाम में पहुँच कर परम आनंद को प्राप्त करता  है.

                     तुलसी  या  संसार  में   पांच रतन हैं    सार 
                     संत मिलन अरु हरिभजन दया धर्म उपकार 

पितामह ने आजीवन उपरोक्त पांचो रत्नों को अपने आचार विचार से विलग नहीं होने दिया.परिजनों के समक्ष उन्होंने कभी कोई उपदेशात्मक प्रवचन नहीं दिया. ,उन्होंने अपने जीवन जीने की धर्म मय शैली से ,अपने नित्यप्रति के कार्य कलाप से और अपनी परोपकरी प्रवृत्ति  से अपने परिवार के सभी स्वजनों को  जनसेवा और सत्कर्म करने  को प्रेरित किया उन्होंने सब स्वजनों को एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए प्रेम के
साथ एक सूत्र में बंधे रहने का आशीर्वाद दिया.
                             
                   सच्चे  तेरे  कर्म  हों ,    सच्चा  हो    आचार,
                   सत्य सुनिश्चय हो सदा ,हो सच्चा व्यवहार 
         
निवेदन:डाक्टर श्रीमती कृष्णा एवं विश्वम्भर श्रीवास्तव "भोला"












मर्पन 

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