सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 3 1

हनुमत कृपा 
अनुभव 

उन दिनों  कानपुर के श्रेष्ठतम संगीतज्ञ  थे श्री एस. एस . बोडस जी ,श्री बलवा जोशी जी और नेत्रहीन  वाद्य संगीत शिक्षक श्री जोगलेकर जी ! हम इन में से किसी से भी  संगीत सीखने का सामर्थ्य नहीं रखते थे  क्योंकि वे सब किसी न किसी स्कूल से जुड़े थे और घर पर आ कर शिक्षण देने का समय उनके  पास  नहीं था ! वे कानपुर के बड़े बड़े ब्यापारियों के घर सिखाने जाते थे उन सेठों की सवारियों पर बैठ कर और  जितनी फीस उन्हें वहां मिलती थी ह्म नहीं चुका सकते थे !

ऐसे में  ह्मारे पहले संगीत गुरू हुए श्री दत्तात्रेय केलकर जी ! वह  ग्वालियर के माधव संगीत विद्यालय के स्नातक थे जहाँ उन्होंने भातखंडे  पद्धाति से संगीत शिक्षा प्राप्त की थी ! वह श्री कृष्णराव शंकर पंडित जी के गायन से बहुत प्रभावित  थे ! संगीत शिक्षण द्वारा आजीविका कमाने के लिए केलकर जी नये नये ही कानपुर में आये थे और हरि कृपा कहें या इत्तफाक , वह ह्मारे घर के पास ह़ी एक लोज मे रहने लगे ! हम चारोँ में  संगीत सीखने की तीव्र उत्कंठा देख कर और हमें  सुर ताल का समझदार पा कर वह तुरत ही हमें लगभग निःशुल्क ही संगीत सिखाने को राजी हो गये !एक के लिए पैसे लेकर वह ह्म चारोँ को ही संगीत सिखाने लगे !  प्रियजन, क्या कहेंगे आप इसे ?  ह्म पर  क्या यह श्री हनुमान जी की एक अति विशिष्ट कृपा नहीं  है  ?

सो इस प्रकार हमारे कुलदेव की कृपा ह्म पर हो गयी !

नित्य प्रति अमृत  बेला में शुरू हो जाती थी हमारे घर में  संगीत की साधना ! बड़े भइया अँधेरे में ही उठ कर ह्म सब को जगाते थे ! बहनें फटाफट चाय बना कर पेश करती थीं और सुबह पाँच बजे तानपूरा छिड़ जाता था ! छः बजे तक बड़े भैया अपना निजी रियाज़ करते थे ! ह्म वह एक घंटा अपनी पढ़ाई  में लगाते थे ! स्कूल का होम वर्क पूरा कर के एक एक कर ह्म तीनों (दोनों बहनें और मैं) भी थोड़ी थोड़ी देर के लिए स्वर साधना करते थे ! 

हमारी  स्वर साधना की एक विशेष पद्धति थी ! तानपूरा छेड़ कर ह्म खरज के "सा" के स्थान पर  "ॐ" का उच्चारण करते थे ! इस प्रकार नित्य प्रातः काल ह्मारे घर से उठा  "प्रनवाक्षर" का  वह मधुर नाद  न केवल ह्मारे घर आँगन का माहौल वरन पूरे मोहल्ले के वातावरण को ही पवित्र कर देता था ! हम़ारा दिवस तो, ब्रह्म मुहूर्त में प्रभु सुमिरन के फल स्वरुप बन ही जाता था ,आस पास वाले भी उतने ही लाभान्वित होते थे और पडोस की माँ 
दादी बुआ चाची के आशीर्वाद हमे बिना मांगे ही मिलते रहते थे ! देखा आपने कितनी कृपा थी ह्म पर ह्मारे इष्ट देव की ?

क्रमशः:
निवेदक: व्ही. एन.श्रीवास्तव "भोला" 

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 3 0





हनुमत कृपा                                                                                                        
                          अनुभव 







"सूखे पेड़ की ड़ार डार है रस की भरी पिचकारी "



ग्रीष्म काल में भारत के और शीतकाल में अमरीका के पेड़ पौधे 


पत्र पुष्प  विहीन होकर एकदम सूखे से दिखते हैं ! लेकिन , इन व्रक्षों की, निर्जीव दिखने वालीं सूखी टहनियों में   "आशामृत" बारहों महीने प्रवाहित होता रहता है !



इसी प्रकार ,हम प्राणियों के जीवन में आये निराशा के शुष्क क्षण केवल बाहर से ही सूखे   दीखते है ! विश्वास करिये प्रियजन बड़ी से बड़ी निराशा की घड़ी में भी "आशा" की तीसरी सरस्वती धार हमारा साथ नहीं छोडती !खेद है क़ि साधारण प्राणी उस अदृश्य अम्रूत निर्झर को पहचान नहीं पाते !लेकिन आस्थावान पर 







यथासमय भागवत कृपा होती ही है 



"आस की दामिनी दमका देगी यही बदरिया कारी"



भैया के जीवन गगन पर घिरी  



निराशा की काली घटाओं में आशा की दामिनी दमकी और धीरे धीरे  भैया को समझ में आ गया क़ि उन्हें क्या करना चाहिए ! उन्होंने बाबूजी की कम्पनी में मेनेजेर का पद सम्हाल लिया ! प्रातः दस से सायं  पाँच बजे तक काम करना था !दफ्तर घर के पास ही था ! काफी समय मिलता था ! अपने फिल्मी सपने साकार कर पाने की आशा में बड़े भैया  ने play back singing की तैयारी में बाकायदा "केलकरजी   से सुगम शाश्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी  ! बड़े भायी के नेतृत्व में ह्म तीनो भाई बहनों का रियाज़ भी जोर शोर से चालू हो गया




बड़े भैया हर चार छे महीने  मे फिल्मों में अपनी तकदीर आजमाने के लिए बंबई आतेजाते   रहते थे जिसके कारण उनका रियाज़ तो बीच बीच में रुक जाता था लेकिन ह्म तीनो का रियाज़ चलता रहा !




प्रियजन बम्बई में भैया को मिली उस भयंकर निराशा के बाद 









इस संगीत शिक्षा द्वारा ही हमारा मनोबल पुष्ट हुआ और सच तो यह है क़ि श्री महाबीर जी की कृपा से ही हमे संगीत की देवी माँ सरस्वती शारदा की असीम करूणा आजीवन प्राप्त होती रही  ! 



































 ज्यों ज्यों आगे बढ़ेंगे देखेंगे क़ि कैसे कैसे सुफल मिले इस साधना से ! 




क्रमशः 



निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव :"भोला"