"मेरे प्यारे प्रभु" ने मुझे जो काम सौंपा, मैंने उसे शिरोधार्य किया ।
कानपुर से दिल्ली आने पर मै कुछ दिनों तक अपने मौसेरे भाई श्री आनंद स्वरूप सिन्हा के परिवार के साथ किदवई नगर में रहा । फिर १९६७ की विजयदशमी पर कॄष्णा और बच्चों के आ जाने पर, बाबूजी के साथ इंद्रपुरी में मकानमालिक श्री सचदेव के मकान में, फिर ६ महीने बाद एक सरकारी अफसर श्री आहूजा जी के मकान में किरायेदार की भाँति रहा ।
गंगाराम हॉस्पिटल रोड पर २२/५ राजेन्द्र नगर के घर से हमारा ऑफिस और श्रीदेवी, राम, राघव, प्रार्थना, माधव का बाल भारतीय पब्लिक स्कूल एकदम पास में ही था, सबको आने जाने में पांच-सात मिनट लगते थे । दिल्ली का प्रसिद्ध बाज़ार करौल बाग़ भी हम सब पैदल दस मिनट में पहुँच जाते थे । हमारे पालनहार, रक्षक प्रभु ने सभी प्रकार की सुख-सुविधा प्रदान कर दीं । कहो उरिन कैसे हो पाऊँ, किस मुद्रा में मोल चुकाऊँ, केवल तेरी महिमा गाऊँ ।
दिल्ली में कार्यरत रहते हुए, श्री चन्द्रनारायण मुडावल, जो व्यापार-उद्योग मंत्रालय के डायरेक्टर थे और क्वालिटी एन्ड इंसपैक्शन विभाग से सम्बद्ध भारत सरकार की ओर से एक्सपोर्ट इंस्पैक्शन कौंसिल के सेक्रेटरी थे, उनसे मेरा घनिष्ठ मित्र भाव दृढ़ हो गया और मैं समय समय पर उनसे सलाह भी लेता रहा ।
बिना किसी आर्थिक लाभ की आशा से या बिना किसी रिश्वत की कमाई किये एक्सपोर्टर की समस्या को हल करना और उन्हें उपयोगी सुझाव देना मेरा सहज स्वभाव रहा । आस्तिक विचारों के धनी एक्सपोर्टर श्री गुलाबरायजी, श्री वैष्णवदासजी, फुटवियर के एक्सपोर्टर सरदार जीवन्त सिंह जी से परस्पर सदव्यवहार के नाते हमारे आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो गए ।
मेरा प्रमोशन हुआ, फिर फरवरी १९७० में मेरा स्थानांतर मुम्बई हो गया ।
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