बुधवार, 16 मार्च 2022

सरकारी नौकरी का अंतिम पड़ाव - कोचीन

गुरुजन के आशीर्वाद एवं प्यारे प्रभु की अहेतुकी कृपा के कारण, हमारे पूरे परिवार का यह दृढ विश्वास है कि ईमानदारी के साथ, सच्ची लगन से, पूर्ण मनोयोग से, अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं का यथोचित उपयोग करते हुए, अपने निर्धारित काम करते रहने वाले को उसके "इष्ट" कभी निराश नहीं होने देते । प्यारे प्रभु, समय आने पर, उनकी सभी जायज़ आवश्यकताओं की पूर्ति कर देते हैं । सच पूछिए तो भगवत कृपा से आज तक मुझे अपने 'प्यारे प्रभु' के अतिरिक्त किसी और से कुछ भी माँगने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी और मेरे ही क्यूँ मेरे सभी प्रियजनों के भी सारे न्यायसंगत कार्य सिद्ध होते गए ।

टेफ्को कम्पनी छूटने के बाद, जब तक मेरी आगे की पोस्टिंग के बारे में, एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन कौंसिल का निर्णय पारित नहीं हुआ तब तक मैं कानपुर में अपने पैतृक घर ११ /२२६ सूटर गंज में ही रहा । देखा आपने हमारे "प्यारे प्रभु" ने अपने इस प्रेमी सेवक 'भोला" को सरकारी नौकरी के अंतिम पड़ाव में उसको अपने पैतृक घर में ही पहुँचा दिया और श्री प्रेमजी महाराज की आज्ञानुसार नियमित सत्संग लगाने की व्यवस्था भी कर दी । 

हमारा यह घर पूरे मोहल्ले का सबसे सुंदर घर था । उस एरिया के बाकी सब घर किराये पर उठाने की दृष्टि से बनाये गए थे । जहां एक एक प्लाट पर ६ से ८ छोट छोटे फ्लेट बने थे वहीं उतनी ही जमीन पर हमारा वह दुमंजिला घर बना था । हमारे घर का front elevation भी उस नगर में उन दिनों बन रहे अन्य मकानों से बहुत भिन्न और बड़ा ही आकर्षक था । सुनते हैं आस पास के नगरों से शौकीन लोग हमारे घर का नक्शा देखने को आया करते थे।

बलिया में "हरबंस भवन" और पुश्तैनी गाँव बाजिदपुर में खानदानी ऊंचे ऊंचे २४ नक्काशीदार सागौनऔर देवदार की लकड़ी के भव्य खम्भों पर खड़ी विशाल मर्दानी कचहरी और दो बड़े बड़े आंगनों वाले ज़नानखाने के २० कमरे होते हुए कानपुर में मकान बनाने की क्या ज़रूरत है, ऐसा सभी बुज़ुर्गों का विचार था । लेकिन फिर भी सब स्वजन-सम्बधियों की बातें अनसुनी करके, अम्मा ने वह घर कानपुर में बाबूजी के पीछे पड़कर ज़बरदस्ती बनवा ही लिया था । आज भी विरासत में मिला यह घर हमारी पैतृक सम्पदा है ।

गयाना से वापसी के बाद हमारी पोस्टिंग, ११ वर्षों तक देश के विभिन्न नगरों - नयी दिल्ली, कोचीन, आगरा, जालंधर, कानपुर, कोचीन आदि में होती रही । हमारे परिवार के लिए ये स्थानांतर कितने कष्टप्रद रहे होंगे, आप अनुमान लगा सकते हैं । परन्तु यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमारे परिवार के किसी भी सदस्य ने ऐसे तबादलों के कारण कभी कोई क्षोभ प्रगट नहीं किया और न किसी ने कभी कोई एतराज़ ही किया । हम भी और अपने पाँचों बच्चों की टीम के साथ स्वदेश-विदेश भ्रमण करते रहे । हंसते गाते मौज मनाते सर्वत्र आनंद ही आनंद लूटते रहे ।

हमारी एहिक प्रगति और आध्यात्मिक उत्थान की गतिविधि के पहिये साथ साथ चलते रहे । जब हमारे पैतृक ऑफिस से यह आदेश पारित हो गया कि हमारी पोस्टिंग जॉइंट डायरेक्टर के पद पर ई. आई. ए. कोचीन हो गयी है, हम सपत्नीक तिरुपति बालाजी का दर्शन करते हुए कोचीन पहुंचे । 

कोचीन ऑफिस ज्वाइन करने के एक सप्ताह बाद ही अपने सहकर्मी जॉइंट डायरेक्टर श्री स्वयंप्रकाश और उनकी पत्नी के साथ दक्षिण भारतीय मीनाक्षी मन्दिर के दर्शनार्थ चल दिए। हम चारों में न कोई आडम्बर था न दिखावा, सहज सुगम योजना के अनुसार वहां से त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी और श्री रामेश्वरम तीर्थ स्थानों के दर्शन करके तीर्थ यात्रा का स्वर्गिक आनद लेते हुए पन्द्रह दिन में वापिस आ गए। उसके बाद एक सप्ताह वहां और रहे फिर कानपुर वापिस आ गए ।

हमारी प्यारी बेटी श्रीदेवी का विवाह संस्कार यू. एस. ए. के तिरुपति मंदिर, पिट्सबर्ग में १०-५-८५ को सम्पन्न होना निश्चित था । अतएव उसकी तैयारियां करने के लिए हमने छुट्टियां ले लीं । अन्ततः स्वेच्छा से सरकारी नौकरी से २०-४-१९८५ को जॉइंट डायरेक्टर, एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन एजेंसी, कोचीन के पद से सेवा निवृत हो कर निश्चिन्त हो कर अमेरिका गया ।

आजीविका अर्जन के लिए मैंने छत्तीस वर्ष सरकारी नौकरी की । १९५० में अस्थायी लिपिक से अर्थोपार्जन के क्षेत्र में प्रवेश करके १९८९ में उत्तर प्रदेश के एक सेन्ट्रल पी. एस. यू. के सी. एम. डी. के विशिष्ट पद से रिटायर हुआ । इसमें मेरा सामर्थ्य कुछ नहीं, केवल मेरे प्यारे प्रभु की अनंत कृपा का प्रसाद रहा, जिसके फलस्वरूप मैं अपने जीविकोपर्जन के सभी साधन, "राम काज" समझ कर, अपनी पूरी क्रिया शक्ति लगाकर सम्पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ निर्भयता से करता रहा । 

प्यारे प्रभु की अनन्य कृपा आजीवन मुझ पर बनी रही और मैंने अपने आपको अपने किसी भी कर्म का कर्ता समझा ही नहीं । जीवन में पल भर को भी यह भुला ना पाया कि वह "सर्वशक्तिमान यंत्री", मुझे संचालित कर रहे हैं ।


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