गुरुवार, 17 मार्च 2022

सिडको लैदर्स - एक और अनुभव

श्रीदेवी के विवाहोपरांत कानपुर पहुँचने पर अगस्त के महीने कानपुर में यू. पी. एस. आई. डी. सी. के अंतर्गत बनी जॉइंट वेंचर में सिडको लैदर्स लिमिटेड में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर आसीन हो मैंने अगस्त १९८५ से काम करना प्रारम्भ कर दिया जो लगभग चार वर्ष तक करता रहा । 

इसमें सिडको लैदर्स के अधिकारियों श्री जफर उल्ला साहिब और इरशाद साहिब के साथ बड़ी लगन, निष्ठा और पुरुषार्थ से मैंने दिन रात एक करके काम किया । लेकिन दुनियावी दांव-पेच और छल-कपट के सामने मेरी सत्यनिष्ठ और कर्तव्यपरायण जीवन पद्धति उनको रास नहीं आई । राजकीय नियमों को तोड़ कर, धोखा धडी, भ्रष्टाचार और अनुशासन हीन कार्य पद्धिति को मैं सहमति नहीं दे सका । मेरे अनुभव, मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से आत्मीय संबंध, चमड़े के क्षेत्र में पायी प्रसिद्धि और कार्य कुशलता का उन्होंने भरपूर लाभ उठाया । जब तक सिडको लैदर्स चलाने के लिये सब क्षेत्रों से धनराशि प्राप्त कराने और उसको एकत्रित कराने में मैं सहायक रहा तब तक उन्होंने मुझे मान-सम्मान दिया, प्रतिष्ठा दी, मेरा आदर-सत्कार किया, मेरे यश और पद का लाभ उठाया, फिर जब आर्थिक सम्पदा मिल गयी तब २८-२-१९८९ को मुझे दूध में गिरी मक्खी की भाँति निकाल दिया ।

परमात्मा प्रतिपल हमारे साथ है, इसका अनुभव हम सभी को जीवन में हर क्षण होने वाली विविध घटनाओं के साथ होता रहता है, पर उसे हम नजरंदाज़ कर जाते हैं । 

जब हमारे जीवन में कोई ऐसी घटना घटती है जहाँ हमारा सामर्थ्य, हमारा बल, हमारा विवेक, हमारा विचार सभी निष्फल हो जाता है तब उस समय कोई अनजान अदृश्य शक्ति हमें उस आपत्ति से निकाल कर हमारी रक्षा करती है, गिरने से पहिले ही हमारा हाथ पकड़ कर हमें सम्भाल लेती है, भयंकर आपदाओं की मार से बचा लेती है। ऐसी दशा में ही हमें उसअदृश्य परम दिव्य शक्ति में अपने इष्ट या सद्गुरु की कृपा का दर्शन होता है । उसमें हमें भगवान की, अपने अपने कुलदेव की छवि दिखाई देती है।

एक मात्र "वह"- हमारा प्यारा सर्वशक्तिमान, परमकृपालु परमात्मा ऐसा औघड उपकारी है जो हमारी पात्रता के अनुरूप हमे आवश्यक सभी प्रेरणाएँ तथा सुविधाएँ प्रदान कर देता है । अर्थोपार्जन के चालीस वर्षों के कार्यकाल में काजल की कोठरी में से कैसे बिना दाग लगाए मैं उसमें से बाहर निकल आया, यही उसकी अनंत कृपा का प्रत्यक्ष दर्शन है । 

प्यारे प्रभु की कृपा तो देखिये, आजीविका-अर्जन के कार्यकाल मे जब जब किसी प्रतिद्वंदी ने मुझे प्रगति की सीढ़ी से उतारने का प्रयत्न किया, परम सत्ता की अदृश्य शक्ति ने मुझे उससे भी अधिक ऊंची सीढ़ी पर आरूढ़ करके मेरा किसी अन्य विभाग में उसका विकास करने के लिए स्थानांतर कर दिया । 

इस भय और आशंका से कि कहीं किसी दूषित कार्य पद्धति के चक्र व्यूह में न घिर जाऊं, मैंने साठ वर्ष की आयु में ही आगे किसी भी प्रकार की नौकरी न करने का निश्चय ले लिया । मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे द्वारा भूत काल में जो कर्म हुए हैं, जो वर्तमान काल में हो रहे हैं तथा जो कर्म भविष्य में होंने वाले हैं, वे सब के सब ही "इष्टदेवों" की कृपा से, "उनकी" आज्ञा से और "उनकी शक्ति" के द्वारा ही संचालित हो रहे हैं । वह "सर्वशक्तिमान यंत्री", मुझे संचालित कर रहे हैं ।


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