मंगलवार, 15 मार्च 2022

प्रतिनिधि नियुक्ति -- दिल्ली, आगरा, जालन्धर, कानपुर

स्वदेश आने पर हमने विदेश मंत्रालय को छोड़ पुनः अपने पैतृक विभाग एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन कौंसिल में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर अधिष्ठित हो पहिली जून १९७८ से राजेन्द्र नगर, दिल्ली के ऑफिस में काम करना प्रारम्भ कर दिया । स्नेही स्वजन प्रमोद गीता के सहयोग से अशोक विहार फेज़ ३, नयी दिल्ली में यथोचित किराए के मकान में हम रहने लगे। जैसे ही घर गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर आई, हमारा फिर ट्रांसफर हो गया । 

मैं फिर से प्रतिनिधि-नियुक्ति पर २-८-७९ से ११-६-८१ तक भारत लैदर कॉर्पोरेशन, आगरा में कार्यरत रहा जहां लैदर उद्योग के विकास और उससे निर्मित वस्तुओं के बाज़ार के लिए "मान मछेरी" प्रोजेक्ट तैयार किया, जो सर्व सम्मति से मान्य रहा ।

परम प्रभु की अहैतुकी कृपा से व्यापार वाणिज्य मंत्रालय ने पंजाब टैनरी लिमिटेड और पंजाब फुटवियर लिमिटेड जालन्धर, इन दोनों इकाइयों का मैनेजिंग डायरेक्टर और जनरल मैनेजर के पद पर आसीन करके मुझे प्रतिनिधि-नियुक्ति पर जालन्धर, पंजाब भेज दिया । १२-६-८१ से २३-११-८२ तक मैंने उसके विकास का, उसके प्रशासनिक और आर्थिक पहलुओं के उन्नयन का उत्तरदायित्व सम्भाला ।

जालन्धर में, कम्पनी की ओर से हमारी रहने की व्यवस्था मोतासिंह नगर में हो गयी, जहां हमारी भेंट हुई स्वामी सत्यानंदजी महाराज के एक अति प्रिय साधक प्रोफेसर महावीर अग्निहोत्री जी से एवं उनके भाई श्री बलदेवजी से, जो घर के पास चार कदम की दूरी पर ही रहते थे । उनके यहां रविवार को साप्ताहिक सत्संग होता था । प्रोफेसर साहेब के पिताजी के निवास स्थान गुरुदासपुर में, स्वामी सत्यानंदजी जी महाराज अक्सर आते जाते थे, राम राम जपने की प्रेरणा देते रहते थे । गुरुदेव प्रेम नाथ जी महराज भी प्रोफेसर साहेब पर बहुत कृपालु थे, उनका बहुत सम्मान करते थे । ऐसे वरिष्ठ साधक बड़े भाई-तुल्य प्रोफेसर महावीरजी के सम्पर्क में आने पर वर्षों से 'श्री राम शरणं' से भटका हमारा मन पुनः 'गुरु मंत्र' में लग गया । उनके सत्संग में हमें श्रद्धेय श्री प्रेम नाथ जी महाराज के निकट आने का, उनके सन्मुख भजन की स्वरांजलि प्रस्तुत करने का सौभाग्य मिला । हमारे जीवन में प्रेमाभक्ति की एक अविरल धारा प्रवाहित हो गई ।

जालन्धर में अमृतवाणी सत्संग में सम्मिलित होने के फलस्वरूप हमारा परिचय श्रीरामशरणम के सिद्ध साधकों और उनके परिवारों से हो गया, जिन्होंने बरसाया निःस्वार्थ भाव से अनंत प्यार, बढाया हमारा भक्ति भाव, कराया आनंद-रस का पान । उनमें से कुछ परिवार -- श्री राणा परिवार, श्री केवल कृष्ण परिवार, नरेंद्र साही परिवार, प्रदीप भारद्वाज परिवार आज भी निरंतर प्रगाढ़ प्रेम की वर्षा कर रहे हैं । उनके अपार स्नेह को, आदर-भाव को, आत्मीय सम्बन्ध को और भजन-सन्ध्या में राम-रस बरसाने को कैसे व्यक्त करूँ, कैसे अपना आभार प्रकट करूँ, किन शब्दों में मोल चुकाऊं ? केवल सत्संग की महिमा गाऊँ और मुझे कुछ भी न आता, दाता राम दिए ही जाता ।

हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक रुचि को निरख कर और परख कर हमारे ड्राईवर श्री ज्ञानसिंह हमें ले गये जालन्धर के निकट स्थित गाँव के आश्रम में और दर्शन कराये योगप्रवर बाबा मोहनदासजी के । ये हठयोगी बाबा नवरात्रि भर समाधिस्थ रहते थे, इनकी योगसिद्धि का प्रभाव भी अद्भुत था । हमने इन्हें न तो कभी दान दिया न दक्षिणा, न कभी इन्होंने हमसे माँगा, न हम उनके कभी शिष्य बने और न कभी किसी आयोजन को व्यवस्थित करने में साझीदार बने । फिर भी पाया उनका असीम प्यार, लाड-दुलार, पाया उनके आशीष भरे वरद हस्त का अहसास और पाया उनके मन्दिर के सन्मुख बैठ कर मन्दिर का महाप्रसाद । उनके सामीप्य में जो अनिर्वचनीय आत्मिक आनंद मिला उसे अपना या अपने परिवार के पूर्वजन्मो के संचित पुण्यों का प्रताप कहूँ या जन्म जन्मातर का उनसे पुराना कोई सम्बन्ध कहूँ या आध्यात्मिक चेतनाओं को जागृत रखने की अपने आराध्यदेव की कृपा कहूँ, यह हमारी समझ के बाहर है ।

आजीविका अर्जन का कार्य लगन से करते हुए, भजन-सत्संग से प्रभु को रिझाना हमारा और हमारे परिवार का सहज स्वभाव रहा है । हमारा सदा का अनुभव रहा है कि समय समय पर जीवन में सम-विषम भाव से उत्पन्न समस्याएं अपनी जटिलता लिए हुए पग पग पर खड़ी रहतीं हैं, विघ्न बाधाओं से भरी घटनाएं भी घटित होती रहती हैं, ऐसे में सर्वशक्तिमान प्रभु की कृपा अनेकों रूप धारण करके आत्मशक्ति जागृत करती है, निराश मन में आशा का संचार करती है, आगे बढ़ने का सही मार्ग प्रशस्त करती है ।

सन्त शिरोमणि सद्गुरु स्वामी सत्यानंदजी महाराज के निर्वाण दिवस, १३-११-८१ को धनतेरस के दिन, कुछ ऐसी ही परिस्थिति आ खड़ी हुई । चीफ एक्ज़ीक्यूटिव की हैसियत से पंजाब टेनरी और फुटवियर की तकनीकी और आर्थिक इकाइयों के विकास और उनकी प्रगति के लिए मैं योजना तैयार कर रहा था, उद्योग मंत्रालय में इस पर विचार विमर्श हो रहा था, कि अनायास ही राजनीतिक दबाब से हताहत हो, मुझे पंजाब सरकार के उद्योग विभाग, चंडीगढ़ में धनतेरस के त्यौहार पर स्तीफा देना पड़ा । उस समय श्रीदेवी टाटा बरॉज, बम्बई में कार्य रत थी और रामजी आई. आई. टी. दिल्ली में और राघव बी. एच. यू. आई. टी. में, प्रार्थना और माधव केंद्रीय विद्यालय, जालन्धर में पढ़ रहे थे । सभी बच्चे दीपावली की छुट्टियों में घर आये थे । उनसे अपना सुख दुःख बाँटा फिर तत्काल ही हम परिवार सहित अपने सद्गुरु के निर्वाण दिवस पर आयोजित सत्संग में पहुँच गए, वहां, भजन-कीर्तन किया, प्रसाद ग्रहण किया, सब साधकों को दस दिन के अंतराल में पंजाब टेनरी छोड़ कर जाने की सूचना भी दे दी ।

अब प्रश्न था, अब अगली पोस्टिंग कहाँ होगी, कहा करूँ कित जाऊं? जब मैं अपने पैतृक विभाग ई. आई. सी. दिल्ली के ऑफिस पुनः कार्यरत होने की अर्जी देने पहुंचा तो अद्भुत घटना घटी, चमत्कार सा हुआ । उद्योग मंत्रालय, व्यापार-वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय के परिचित उच्चस्तरीय वरिष्ठ अधिकारियों से ज्ञात हुआ कि टेनरी फुटवियर कॉर्पोरेशन, कानपुर के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर मेरी नियुक्ति करने के मुद्दे पर केबिनेट में विचार-विमर्श हो रहा है । केबिनेट में मेरे प्रमाण-पत्र, योग्यता और कार्यक्षमता को, विभिन्न विभाग के कार्यकाल की गतिविधियों को आंका और परखा जा रहा है । कौन कर रहा है, कौन करवा रहा है, क्या हो रहा है, क्या निर्णय होगा, मैं इन सबसे अनभिज्ञ था । मेरी तकनीकी दक्षता, कार्यकुशलता, नीतिबद्धता, कर्तव्यनिष्ठता एवं सत्याचरण और सरकारी नौकरी के कार्यकाल के उत्तम रेकॉर्डों के आधार पर मुझे चुन लिया गया । 

परम प्रभु और मेरे कुलदेवता की ऐसी कृपा हुई कि भारत के राष्ट्रपति के आदेशानुसार मुझे दो वर्ष की अवधि के लिए टेनरी और फुटवियर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, कानपुर, जिसका अतीत के इतिहास में नाम फ़्लेक्स (FLEX ) था, का चैयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त कर दिया । मेरी इस नियुक्ति से मैं ही नहीं, मेरे सभी सम्बन्धी, हितैषी, अभिन्न मित्र गौरवान्वित हो गए । 

है न मेरे प्रभु की अपार कृपा, उनकी विचित्र संयोजना । मैंने न कोई प्रयास किया, न किसी की चापलूसी की, न किसी को रिश्वत दी, न कोई लिखा-पढ़ी की । उद्योग मंत्रालय की मेहरबानी से मैं अपने ही शहर कानपुर में टेफ्को कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर आसीन हो गया । अपने प्रभु की असीम अनुकम्पा का महाप्रसाद समझ कर मैंने इस पद को स्वीकार किया, और उनकी आज्ञा को मान कर १-१२-८२ से इसका कार्य-भर सम्भाला ।

कितनी विचित्र है प्रभु की लीला । बचपन में स्कूल आते जाते, अपने घर के पोर्टिको से फ्लैक्स कम्पनी के कार्यकर्ताओं को आते जाते जब देखता था तब मन में विचार उठता था इसमें काम करने का, स्वप्न देखता था इसका अधिकारी बनने का । मैं नही जानता था कि मेरे कुलदेवता, मेरे आराध्यदेव मेरे ऊपर इतने दयालु होंगे कि बिना मांगे ही मुझे इस पद पर आसीन  करेंगे । सांसारिक वैभव, मान-प्रतिष्ठा, राजसी ठाठ, टेफ्को हाउस नामी बड़ा बंगला, नौकर-चाकर, बाग़-बगीचा, बाहरी ताम-झाम, द्वारपाल, क्या क्या न दिया मेरे प्रभु, तुमने सबको अनुभव करा दिया कि जो प्रभु के आश्रित रहता है, उसकी झोली बिना मांगे ही भरते रहते हैं ।

वाह रे मेरे प्रभु, कौन कौन गुण गाऊँ मैं तेरे, सामर्थ्य से अधिक दिया, सांसारिक व्यवहार और परमार्थ को साथ साथ चलाया, व्यवहार से सुख और परमार्थ से परम सुख दिया, सांसारिक कार्य-कलाप करते हुए परमार्थ की साधना करते रहने का अनमोल वरदान दिया । 

जालन्धर छोड़ने और कानपुर में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद को ग्रहण करने से पूर्व जब मैं श्रीराम शरणं, दिल्ली में प्रेमजी महाराज का आशीर्वाद लेने गया तब उन्होंने "कानपुर में सत्संग लगाओ" का आदेश दिया । आदेश देते समय यह भी चेतावनी दी कि सत्संग में अपनी कम्पनी के अनइच्छित लोगों को मत बुलाना । यह चेतावनी मेरे बहुत काम आयी। 

कभी कभी जब सत्संग के बहाने मेरे पास आकर मेरे मित्र और सम्बन्धी अक्सर मुझे याद दिलाते रहते कि मेरे मातहत मकान बना रहे थे और मेरा कहीं कोई अपना मकान नहीं था । शुभचिंतक बताते कि मातहतों की बीवियों के पास रत्नजडित आभूषण हैं लेकिन हमारी बीवी के पास विवाह में मिले आभूषणों के अतिरिक्त और कोई ढंग का नया आभूषण नहीं । जन सहानुभूति जताते, कहते "पांच पांच बच्चों को पढाना है, दो दो लड़कियों का उद्धार करना है और भोला बाबू तुम इस कुर्सी पर बैठ कर भी दौलत कमाने की जगह, 'नाम ' की कमाई में जुटे हो"। तब प्रेमजी महाराज का आदेश कवच का काम करता, मुझे अपने धर्म पथ पर अडिग रहने की आत्म शक्ति प्रदान करता ।

टेफ्को हाउस में अभी तक जहां राजनैतिक मौज-मस्ती होती थी, वहां अब साप्ताहिक अमृतवाणी सत्संग होने लगा । प्रसिद्ध भजन गायक हरिओम शरणजी सपत्नीक आये, श्रीमती नीलम साहनी आईं, डागर बंधु और विनोद चैटर्जी आये । संगीतप्रेमियों और संगीत मर्मज्ञों के मधुर स्वरों की सरगम से टेफ्को हाउस का वातावरण सात्विक ऊर्जा से भर गया । आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होने लगे। स्वामी चिन्मयानन्दजी, जालन्धर के योगप्रवर बाबा मोहनदासजी, इसकोन के भक्त एवम प्रेमी गणों ने टेफ्को हाउस में पधार कर, आशीर्वाद दे कर हमारा जीवन आत्मिक आनंद से भर दिया । साधिका शांता दयाल, अंजना, वीरा प्रधान, मधुरिमा, मेघना, कल्पना, मधुलता विद्द्यार्थी, साधक संतू, श्री विचित्र नारायण निगम, गूबा कम्पनी के मालिक विजय भाई आदि के सहयोग से एच. बी. टी. आई. मरचेंट चैम्बर, प्रयाग नारायण शिवाला, तुलसी उद्द्यान, फूलबाग कानपुर में भजन-सन्ध्या के आयोजन होने लगे ।

हमारे इस कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल माननीय चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह ने हमारे बंगले टेफ्को हाउस में आने की और भजन सनने की इच्छा प्रकट की । राजकीय स्तर पर सारी तैयारियां हुईं । परम प्रभु ने अद्भुत लीला रची । राज्यपाल तो नहीं आए, कानपुर के जागेश्वर मन्दिर में विराजे जागेश्वर नाथ स्वयं पधारे । ऐसी अनहोनी हुई, जो कभी सम्भव नहीं थी । कहीं किसी मन्दिर से प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति किसी गृहस्थ के घर जाती है ? जागेश्वर मंदिर के देवता श्री जागेश्वर नाथ पधारे, तीन दिन रहे, भजन-सेवा स्वीकार की। पूजा,अर्चन, वन्दन, कुछ नहीं आता है हमें, यह तो उन्हें पता ही था । शबरी के झूठे बेरों का आस्वादन करने आये उसके आराध्यदेव । हमें कृतकृत्य करने आये श्री जागेश्वरनाथ । उसकी अनंत कृपा है, अनोखी लीला है । उनकी माया वही जाने ।

जब मैं ई. आई. ए. से प्रतिनिधि नियुक्ति (डेप्यूटेशन) पर टेफ्को कानपुर में कार्यरत हुआ तब मेरे परम हितैषी कर्तव्यनिष्ठ उच्चाधिकारियों ने सचेत किया था कि टेफ्को की दुर्दशा का कारण उसमें फैला हुआ भ्रष्टाचार है, जो मिस्त्री और कर्मचारी से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के बीच पनप रहा है, उससे सावधान रहना । 

अतएव इसके विरुद्ध मैंने पहिला कदम उठाया, बन्दूक धारी अंगरक्षकों से स्वयं को मुक्त किया, दूसरा कदम तकनीकी सुधार की ओर बढाया, तीसरा कदम आर्थिक संकट से इसे उबारने की कोशिश की । टेफ्को के विकास और सुधार के लिए सख्ती बरती, योजना बनाई, उन्हें कार्यान्वित करने की ओर ज्यों ही कदम बढाया, त्यों ही उद्योग मंत्रालय के सचिव गणों ने फैक्ट्री के विभिन्न विभागों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया । 

मैं असहाय था, न मुझे रिश्वत देना आता था, न लेना, न मुझमें मंत्रालय के अधिकारियों को निःशुल्क उपहार देने का सामर्थ्य था, न कम्पनी के खाते से उन्हें उपहार देना मुझे मंजूर था । न तो मैंने ऊपरी कमाई की और न मंत्रियों को पार्टी फंड के लिए दी । फलस्वरूप उनके छल-बल के सामने, मंत्रालय की कूटनीतियों के सामने घुटने टेक देने पड़े । अंजाम आप जानते ही हो, ९-११-८४ को स्तीफा दे कर मैं अपने पैतृक ऑफिस इ. आई. ए.  दिल्ली वापिस चला गया ।

यह परम सत्ता की अदृश्य शक्ति की अपार कृपा ही थी, जिससे मुझे कठिन से कठिन परिस्थिति से जूझने की क्षमता मिली और विषम से विषम कठिनाइयों में भी मैं अपने धर्म पथ से विलग नहीं हुआ । मुझे तो इन सभी क्रिया कलापों में अपने ऊपर प्यारे प्रभु की अनंत कृपा की वर्षा के दर्शन होते हैं, परमानंद का आभास होता है । 

यह अहैतुकी "कृपा" उसे ही मिलती है जो सब प्रकार से अपने इष्ट पर निर्भर हो, जिसे किसी और का आश्रय न हो । जैसे माँ अपने नादान शिशु को उंगली पकड़ कर उसे इधर उधर भटकने से रोकती है, उसे पथ भ्रष्ट नहीं होने देती, वैसे ही हमारा "प्यारा प्रभु" ऐसे कर्तव्य परायण जीव का पग पग पर मार्गदर्शन करता रहता है । और, जिस जन पर उसका इष्ट ऐसी कृपा दृष्टि डालता है उसका तो बस कल्याण ही कल्याण, मंगल ही मंगल होता है ।


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