सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

गुरुवार, 24 जून 2010

HIS grace + ones EFFORT= SUCCESS


"प्रभु कृपा" व् "निज-पुरूषार्थ"से सिद्धि
   



प्रियजन , यह बिलकुल सच है क़ि मैं कोई इकलौता ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो  पढ़ाई   के लिए लन्दन गया या जिसे साऊथ अमेरिका के एक पिछड़े देश में औद्योगिक विकास हेतु भेजा गया.और जिसे वहाँ अनेकों ऎसी सुविधाएँ मिलीं जो उसे उसके अपने देश में नहीं उपलब्ध थीं. 

संसार में अनगिनत ऐसे व्यक्ति हुए हैं जो विषम से विषम परिस्थिति  में जन्म ले कर भी अपने आत्म विश्वास और पुरुषार्थ के बल से भौतिक प्रगति के शिखर तक पहुँच गये .मैं .विदेश के अरबपति  वारेनबुफेट्स ,बिल गेट्स और कार्लोस स्लिम के विषय में अधिक नहीं जानता,,पर इसी श्रेणी के भारत में ,उन्नीसवीं शताब्दी (१८५७ के   स्वतंत्रता संग्राम के  बाद) जन्मे अनेक महापुरुषों के विषय में खूब जानता हूँ जो घर बार छोड़ कर , केवल एक लोटा डोरी लिए जीविकोपार्जन करने निकले और वह कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता था .ऐसे घरानों में सबसे अधिक सराहनीय है.गुज़रे जमाने के उद्योगपति सेठ घनश्यामदास बिरला जी और उनका परिवार, धीरुभाई अम्बानी और उनके दोनों पुत्ररत्न .इसके अतिरिक्त टाटा समूह, लक्ष्मी मित्तल ,नारायण स्वामी ,स्वराज पौल ,जिंदल, माल्या ऐसे अनेक उद्योगपति हैं जिन्होंने सराहनीय भौतिक प्रगति की है और देश का गौरव बढाया है .
  
उपरोक्त सभी उद्योग पतियों की अप्रत्याशित प्रगति के पीछे है उनका आत्म विश्वास, उनका अपना पुरषार्थ एवं अथक परिश्रम.  इसके अतिरिक्त इन सभी व्यक्तियों के पास एक अन्य गुण भी है,वह है उनकी "इष्ट भक्ति"और अपने इष्ट पर उनका अखंड भरोसा हमारे समय के एक अतिशय सफल उद्योग परिवार के मुखिया ने मुझे बताया था  क़ि " अपने इष्ट का  स्मरण कर के कार्य प्रारम्भ करो और फिर देखो कैसी कैसी प्रेरणाएं आप से आप आतीं हैं.इष्ट स्वयम आपका मार्ग दर्शन करते  हैं , आपका बोझा निज काँधे पर ले लेते हैं और आप सफल हो जाते हैं,  इष्ट को भुलाया तो अनिष्ट होगा."

आवेदक: वही एन  श्रीवास्तव  "भोला"

NIJ ANUBHAV GAATHA (prathm katha)

माँ का आशीर्वाद 
प्रथम विदेश यात्रा 
अमेरिकन पोस्टिंग 


अमरीकी पोस्टिंग (१९७५) के विषय में बात करते करते १९६२ में अम्मा की अंतिम घड़ी तक वापस आगया था. फिर मन में यह   विचार आया क़ि सबसे पहले अम्मा की शुभ कामनाओं और आशीर्वाद से की हुई अपनी प्रथम  विदेश यात्रा की कहानी आपको सुना दूँ  आपको यह बतला दूँ क़ि उस पहली यात्रा की कल्पना और उसके विषय में मेरे मन में तीव्र उत्कंठा कब और कैसे जागृत हुई और कैसे  तात्कालिक परिस्थियों में असंभव लगने वाली यह घटना (पढ़ायी के लिए मेरी इंग्लेंड यात्रा) अचानक घट भी गई 
मैं अपने जून २१  के लेख  में क़ह रहा था क़ि जब १९६२  में मेरी प्यारी माँ अपने जीवन के अंतिम पडाव पर थीं.ह्म सब उनको कीर्तन सुनाते थे .और वह अपने नैनो से बूंद बूंद प्रेमाश्रु  बहा कर अपने मन मन्दिर में बाल पन से बिराजे लड्डू गोपाल के चरण पखारतीं रहतीं थीं.इतनी प्रबल थी उनकी हरि प्रीति .यूँ  ही भजन कीर्तन सुनते सुनते उन्होंने एक दिन मुझे अपने से चिपका लिया (मेरे पास उस दिन.की वह फोटो अभी भी है)और मेरे कान में धीरे से बोलीं "होखी बबुआ कुल होखी ,तू पढ़े खातिर बिलायत जइब ,तोहार सीसा के बडका चुका बंगला होखी ,बड़का बडका बिलायती कार पर तू घुमबा." अचानक माँ को कैसे मेरे बचपन में मुझे दिया हुआ वह आशीर्वाद, संसार छोड़ते समय याद आगया .तब उनसे पूछ न सका क्योंकि  उसी शाम ---अम्मा यह संसार छोड़ कर अपने गोपालजी के धाम चली गयीं.   और फिर ---------.

अम्मा के निधन के साल भर के भीतर ही मैंने एक कार खरीद ली और तब ही मेरे पास लन्दन से सूचना आयी क़ि मेरा एडमिशन वहाँ के एक टेक्निकल कालेज में हो गया है और मुझे शीघ्रातिशीघ्र लन्दन पहुच कर अपनी पढ़ायी शुरू करनी है.

मैं तब रक्षा मंत्रालय के एक आयुध बनाने वाले कारखाने में काम करता था. मुझे दो वर्ष के लिए स्टडी लीव मिल सकती थी  लेकिन  इसी बीच एक पड़ोसी देश ने भारत पर आक्रमण कर दिया .कर्मचारियों को लीव से वापस बुलाया जाने लगा,नये लोगों की भर्ती शुरू हो गयी. .ऐसे में मुझे स्टडी लीव कौन देता?नीचे से ऊपर तक मैं जिन जिन से क़ह सकता था मैंने कहा ,पूरी कोशिश कर ली ,पर कुछ नहीं हुआ .सब ने मना कर दिया

पर मुझे विश्वास था क़ि जब अम्मा का एक वचन सत्य हुआ ,(मेरा एडमिशन लन्दन में हो गया) तो उनका सम्पूर्ण कथन ही सच होगा.हुआ भी ऐसा ही एक दिन कारखाने के जनरल मेनेजर ने मुझे अपने ऑफिस में बुला कर कहा क़ि मिनिस्ट्री ने मेरी दो वर्ष की स्टडी लीव सेंक्शन करदी है इतनी विषम परिस्तिथि में यह सब हुआ कैसे? इसका उत्तर न मेरे पास था न मेरे जी एम् महोदय को ही ज्ञात था. इस प्रकार मेरी प्यारी माँ का आशीर्वाद उनके जाने के एक वर्ष के अंदर ही सत्य हो गया.मैं लन्दन पहुँच गया ,पढ़ायी चालू हो गयी.लन्दन में रहने को जो हॉस्टल मिला उसमे चारो ओर शीशे ही शीशे थे .

प्रियजनों अपने घर में ही माता पिता और गुरुजनों के स्वरुप  में साक्षात् हमारे इष्ट देव  विराजमान हैं. बस शीश झुका कर  दर्शन करना है. उनका आशीष पाना  है.


निवेदक : व्ही एन  श्रीवास्तव "भोला"