भैया, ये आत्म-कहानी है।
इसमें, मुझ को प्रिय-जन तुम को इक सच्ची बात बतानी है ।
करने वाला "यंत्री प्रभु" है, हम सब हैं मात्र यंत्र "उनके" ।
अपने जीवन के अनुभव से यह बात तुम्हें समझानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
हमसे ज्यादा है फ़िक्र "उसे" हम सबकी ये तुम सच मानो ।
हम इस जीवन की सोच रहे "वह" तीन काल का ज्ञानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
जो भी प्रभु इच्छा से होगा वह हितकर होगा हम सब को ।
मत समझो उसको ही हित-कर जो तुमने मन में ठानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
बाहर से जो मीठा लगता वह कड़वा भी हो सकता है ।
मानव बाहर की देख सकें, अंतर की किसने जानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
मुझ को दोषी मत कहो स्वजन, है सारा दोष मदारी का ।
भोला बंदर मैं क्या जानूँ अंतर "मयका-ससुरारी" का ।
रस्सी थामे मेरी, मुझसे वह करवाता मनमानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
करता हूँ केवल उतना ही जितना "मालिक" करवाता है ।
लिखता हूँ केवल वो बातें जो "वह" मुझसे लिखवाता है ।
मेरा कुछ भी है नहीं यहाँ सब "उसकी" कारस्तानी है ।।
भैया, ये आत्म-कहानी है।
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