मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

आत्म-कहानी

भैया, ये आत्म-कहानी है


*इसमें मुझको प्रियजन तुम को
इक सच्ची बात बतानी है ,*

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*करने वाला "यंत्री प्रभु" है,
हम सब हैं मात्र यन्त्र "उनके" *

*अपने जीवन के अनुभव से
यह बात तुम्हे समझानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*हमसे ज्यादा है फिक्र "उसे"
हम सबकी ये तुम सच मानो*

*हम इस जीवन की सोच रहे
"वह" तीन काल का ज्ञानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*जो भी प्रभु इच्छा से होगा
वह हितकर होगा हम सब को *

*मत समझो उसको ही हितकर
जो तुमने मन में ठानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*बाहर से जो मीठा लगता
वह कड़वा भी हो सकता है *

*मानव बाहर की देख सकें ,
अंतर की किसने जानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*मुझको दोषी मत कहो स्वजन ,
है सारा दोष मदारी का *

*भोला बन्दर मैं क्या जानू
अंतर "मयका-ससुरारी" का *

*रस्सी थामे मेरी, मुझसे
वह करवाता मनमानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *


*करता हूँ केवल उतना ही
जितना "मालिक" करवाता है*

*लिखता हूँ केवल वो बातें
जो "वह" मुझसे लिखवाता है*

*मेरा कुछ भी है नहीं यहाँ
सब "उसकी" कारस्तानी है *

*भैया ये आत्म-कहानी है * *



निवेदक :
व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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