भैया, ये आत्म-कहानी है *इसमें मुझको प्रियजन तुम को इक सच्ची बात बतानी है ,* *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*करने वाला "यंत्री प्रभु" है, हम सब हैं मात्र यन्त्र "उनके" * *अपने जीवन के अनुभव से यह बात तुम्हे समझानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*हमसे ज्यादा है फिक्र "उसे" हम सबकी ये तुम सच मानो* *हम इस जीवन की सोच रहे "वह" तीन काल का ज्ञानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*जो भी प्रभु इच्छा से होगा वह हितकर होगा हम सब को * *मत समझो उसको ही हितकर जो तुमने मन में ठानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*बाहर से जो मीठा लगता वह कड़वा भी हो सकता है * *मानव बाहर की देख सकें , अंतर की किसने जानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*मुझको दोषी मत कहो स्वजन , है सारा दोष मदारी का * *भोला बन्दर मैं क्या जानू अंतर "मयका-ससुरारी" का * *रस्सी थामे मेरी, मुझसे वह करवाता मनमानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
*करता हूँ केवल उतना ही जितना "मालिक" करवाता है* *लिखता हूँ केवल वो बातें जो "वह" मुझसे लिखवाता है* *मेरा कुछ भी है नहीं यहाँ सब "उसकी" कारस्तानी है * *भैया ये आत्म-कहानी है * *
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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