कौन है वह जो अज्ञान के गहन अंधकार से अंगुली पकड़ कर हमें बाहर निकालता है, हमारा उचित मार्ग दर्शन करता है और हमारी हर गलती पर टोक कर हमें सुधरने की प्रेरणा देता है ? वह अपने इष्ट के सिवाय और कौन हो सकता है ? अपनी शैशवावस्था और किशोरावस्था के मोड़ पर बड़े भैया की निराशा में डूबी मनोवृत्ति से दुखित हो कर मेरे मन में बार बार यही प्रश्न उठ रहा था कि श्रीहनुमान जी महाराज की यह कैसी करुणा है, कैसी कृपा है कि उन्होंने पहले तो बड़े भैया को फिल्मी दुनिया के बड़े बड़े फले फूले हरे भरे बाग़ दिखाये और फिर जब प्रारब्ध ने उन्हें बेदर्दी से काँटों के झाड़ पर फेंक दिया तब उन्हें असहाय छोड़ कर अंतर्ध्यान हो गये । मेरे इस प्रश्न का उत्तर दिया मेरे कुलदेव विक्रम बजरंगी ने, मगर एक अप्रत्यक्ष अनुभव के साथ । हम जीवन में क्या करना चाहते हैं, और वास्तव में क्या करते हैं ?
मैं ८ वीं कक्षा में पढ़ता था । महात्मा गांधी का "असहयोग" तथा "अंग्रेजों भारत छोड़ो" आन्दोलन देश भर में जोर शोर से चालू हो चुका था । जगह जगह पर गरम दल के देश भक्त युवक तोड़ फोड़ भी कर रहे थे । पूर्वी यू. पी. में उपद्रव अधिक हुए थे । यहाँ तक कि कुछ दिनों के लिए हमारा बलिया जिला स्वतंत्र हो गया । जिलाधीश महोदय ने जिला जेल का दरवाज़ा खुलवाकर सब आन्दोलनकारी कैदियों को आज़ाद कर दिया और उनके नेता चीतू पण्डे के हाथ जिले की बागडोर सौंप कर जिले के काम काज से अपने हाथ धो लिए । हाँ, बहुत दिनों तक नहीं चला बलिया में वह अपना राज । शायद एक सप्ताह के अंदर ही गवर्नर ने केप्टन स्मिथ के नेतृत्व में फ़ौजी हमला करवा कर बड़ी बर्बरता से आन्दोलनकारियों का दमन कर दिया । काफी दिनों के बाद हमने समाचार पत्रों से यह जाना जब लखनऊ से यू. पी. के गवर्नर सर मौरिस हेलेट ने ब्रिटिश सरकार को यह समाचार दिया कि "अंग्रेज़ी फौजों ने बलिया फिर से फतेह कर लिया" । समाचार के अंग्रेजी के शब्द हमें अभी तक याद हैं, 'British Forces Conquer Ballia".
उन्ही दिनों दुर्गापूजा की छुट्टियों में यूनिवरसिटी के फाइनल इम्तहान देने वाले टेक्निकल विद्यार्थी औद्योगिक इकाइयों का भ्रमण करने निकलते हैं । ऐसे ही एक टूर पर मेरे एक हनुमान भक्त बड़े भैया बनारस यूनिवरसिटी के विद्यार्थियों के साथ कानपुर आये । इत्तेफाक से उनके टूर के दौरान मंगलवार पड़ा और वह हम सब को भी अपने साथ लेकर पनकी में श्री हनुमान जी के दर्शन करने गये । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उन सभी बी. मेट. के विद्यार्थियों ने उतनी ही श्रद्धा भक्ति से पनकी में श्री हनुमान जी के दर्शन किये जितनी श्रद्धा से वे परीक्षा के दिनों में अपने गेट के निकट ”नगवा“ वाले संकटमोचन मन्दिर के हनुमान जी का दर्शन वन्दन करते थे । पनकी मन्दिर में मैं भी उनके साथ खड़ा खड़ा यह मनाता रहा कि हनुमान जी दया कर मुझ पर ऐसी कृपा करे कि समय आने पर मैं भी उन लोगो की तरह ही, बी. एच. यू. के कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी में दाखिला पा सकूं । उन लोगों की अर्जियां मंजूर हुई, सब को हनुमान जी ने न केवल उच्च अंकों से पास करवाया, वे सब भैया लोग अच्छी अच्छी नौकरियां भी पा गये । हनुमत कृपा से समय आने पर मैं भी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी में भर्ती हो गया ।
इस कार्य को विधिवत अंजाम देने के लिए हनुमानजी ने मेरी शकुंतला भाभी को अपना पात्र चुना । २६ जून १९४६ में पटना निवासी राय साहिब इन्द्रदेव नारायण सिन्हा की पुत्री शकुंतला देवी के साथ मेरे बड़े भैया का विवाह बड़े धूम-धाम के साथ सम्पन्न हुआ था । मेरी भाभी डॉ सच्चिदानंद की पौत्री थी जहाँ सर्वमान्य अतिथियों की श्रंखला में उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरु की भी आव भगत की थी । वह परिवार की गरिमा एवं प्रतिष्ठा के प्रति संकल्प बद्ध थीं, घर के प्रबंधन में बाबूजी की प्रमुख सलाहकार थीं । जब मैंने डी .ए .वी . कॉलेज कानपुर से इंटर पास कर लिया तब उन्होंने बाबूजी से आग्रह किया कि वे मुझे उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी प्रख्यात शिक्षण संस्थान में भेजे । बड़े भैया के हतोत्साहित जीवन को देख कर उनकी धारणा दृढ़ हो गयी थी कि कानपुर में रह कर उनका एकमात्र देवर “भोला“ बबुआ-दुलरुआ ही बना रह जाएगा । मुझे स्वावलम्बी, प्रगतिशील और पुरुषार्थी बनाने की मेरी भाभी की अभिलाषा को साकार करने की विधि का भी अनावरण हुआ, हनुमत-कृपा से ।
मेरे बाबूजी को समाचार मिला कि बच्चा भैया के छोटे पुत्र अवध बिहारी जिन्होंने मेरे साथ ही इंटर की परीक्षा दी थी और जिन्हें परीक्षाफल में मुझसे भी कम अंक प्राप्त हुए थे उनका एडमिशन बी. एच. यू . के साइंस कॉलेज में भूगर्भ विज्ञान के डिग्री कोर्स में हो गया है । हम दोनों ही सेकंड डिवीजन में पास हुए थे । इससे प्रेरणा पाकर कोशिश की गयी और हनुमत कृपा एवं शुभचिंतकों के सहयोग से मेरा एडमीशन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी में हो गया जहां से इंडस्ट्रियल केमेस्ट्री तथा जनरल एंड केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर मैंने १९५० में स्नातक की डिग्री हासिल की । यह वह सुदृढ़ नीव थी जिस पर मेरे भविष्य की इतनी खूबसूरत इमारत खडी हो पायी, मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सका, मेरे जीवन जीने की एक राह निश्चित हो गयी ।
इतनी कृपा करी हनुमत ने, फिर किसको मैं याद करूं ।
करुणासागर उनसा पाकर, अब किससे फरियाद करूं ।।
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