गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

संकटमोचन महाबीर से प्रथम परिचय

 विक्रम बजरंगी महावीर जी से मेरा परिचय, मेरे जन्मते ही, मेरी प्यारी माँ की गोद में १६ जुलाई १९२९ के प्रातःकाल की मंगलमय ब्रहम मुहूर्त में हुआ । मंगलवार की भोर थी, हमारे जन्मस्थल के स्थान से ही महावीरी ध्वजा का जुलूस नगाडों की टंकार के साथ “जय श्री राम, जय हनुमान” का उद्घोष करते निकल रहा था । कदाचित मेरी अम्मा ने तत्काल ही मुझे श्री हनुमान जी के सुपुर्द कर दिया और तब से आज तक वह बिक्रम बजरंगी महावीर जी ही मेरे "परम आश्रय" बने हुए हैं ।

मेरा जन्म हरबंस-भवन, स्टेशन टाउन हॉल रोड, बलिया में हुआ था । बलिया सिटी में बिजली नही थी और उसके बाद भी १०-१२ वर्षो तक वहां बिजली नहीं आयी । अपना परिवार वकीलों और जज मजिस्ट्रेटों का था । अपनी बैठक आगन्तुको से भरी रहती थी, दरबार सा लगा रहता था । इसलिए रात के समय बाहर मर्दानखाने में तो लेन्टर्न और पेट्रोमेक्स की रोशिनी होती थी पर भीतर जनानखाने के कमरों में या तो मिटटी के तेल की ढिबरियां या सरसों के तेल के मिटटी के दिए ही जलाये जाते थे । आंगन गलियारा बिलकुल अँधेरा रहता था । पर बच्चों का भीतर बाहरआना जाना लगा ही रहता था । बेचारे कभी दादी जी का संदेश दादा जी को देने जाते तो कभी चाची के आदेश से चाचा को जर्देवाला पान पहुंचाते । उन्हें घने अँधेरे में जाना होता था । बचपन में हम हर गर्मी के अवकाश में बलिया सिटी जाते थे । और वहां कभी कभार मुझे भी यह ड्यूटी बजानी पडती थी । हम कानपूर से जाते थे जहाँ बिजली ही बिजली थी (आज नही, उन दिनों) । आप समझ सकते हैं कि एक शहरी बालक उस अँधेरे घर में कैसे बिना डरे रह सकता था । सो मैं भी अंधकार से भयभीत हो कर उस प्रकार से सेवा करने से कतराता था ।

मेरी प्यारी अम्मा मेरी कमजोरी भांप गयीं । उनके भोला की बदनामी हो रही थी । गोरखपुर, इलाहबाद, मैंनपुरी से आये अपने ही परिवार के बच्चे दौड़-दौड़ कर बड़ों की सेवा कर रहे हैं, भोला डरकर अम्मा से चिपके बैठे हैं ।

अम्मा ने तभी हमारा परिचय हमारे "कुलदेवता" महावीर जी से कराया । उँगली पकड़ कर वह हमे घर के एक पक्के आँगन में ले गयीं । जहाँ चबूतरे के बीचोबीच एक बहुत ऊँचा हरे बांस का झंडा गडा था जो अपने घर की ऊँचाई से भी ऊँचा था । उस बांस की चोटी पर लहरा रही थी एक लाल रंग की पताका जिस पर हनुमान जी का अति चमकीला सुनहरा कट आउट सिला हुआ था ।

अम्मा ने कहा, जिस घर में ऐसी महाबीरी ध्वजा लहराती है उस घर मे "भूत पिशाच निकट नहीं आते, महावीर जी के सिमिरन मात्र से रोग और भय दूर हो जाते हैं - "नाशे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा"और उस दिन हीअम्मा ने हमे कंठस्थ कराया "जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश तिहुँ लोक उजागर" । श्री हनुमान चालीसा के पाठ से हमारी अम्मा ने ही महाबीर विक्रम बजरंगी से मेरा परिचय कराया और मुझे उनके आश्रय में सदा सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया । 

इस प्रकार बाल्यावस्था में ही मेरी पहली गुरु, मेरी मार्ग दर्शिका माँ ने मुझे निर्भयता का पाठ पढ़ा कर मुझे अपने पैरों पर खड़ा कर के मुझे हरबंस भवन के प्रांगण में विराजे महाबीरी ध्वजा वाले श्री हनुमानजी के सुपुर्द कर दिया ।


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